बस एक इंतेज़ार में
बस एक इंतेज़ार में रात बितती है, दिन ढलता है
फिर भी आँखों को दीदार उनका कहा मिलता है
अगर कभी दिल ने चाहा तो तुम लौट भी आना
मैं उसी गली में मिलुंगा जहाँ चाँद निकलता है
तुम्हारे ऐतबार पे हमने जमाने को रुसवा किया
फिर क्यों इन्तेज़ार में ये दिल आज भी जलता है
एक हकीकत थी ग़ालिब और मीर की ग़ज़लों में
उनके बिना इज़हारे इश्क़ का दौर कहाँ चलता है
मेरा दिल तो मेरे सीने में रुकता ही नही, बस
उनका पैगाम आता है और ये निकल पड़ता है
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