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Showing posts from March, 2022
फिल्मे समाज को अक्सर सही रास्ता दिखाती आयी है, या यूं कहें कि फिल्मे समाज को आइना दिखाती आयी है। लेकिन समस्या इस बात की है कि कुछ लोग इन फिल्मों के सब्जेक्ट को अपनी अपनी सुविधानुसार दिखाकर या उसके भाव को मोड़कर अपने लिए प्रयोग कर लेते है। हाल फिलहाल कश्मीर फाइल्स इसी तरह के प्रयोग का शिकार हुई है।कश्मीरी पंडितों ने असहनीय दर्द सहे, अनगिनत अपमान झेले और अपना सब कुछ गवां दिया। लेकिन उन्होंने अपना आत्मसम्मान और अपनी आस्था जिंदा रखी। लेकिन फ़िल्म में सिर्फ राष्ट्रवाद को धर्म की चासनी में लपेट कर सिर्फ सोने का अंडा देने वाली मुर्गी से एक और अंडा लेने की कोसिस की गई है। जबकि ऐसे ही मुद्दों पर बनी अन्य फिल्मो को एक सिरे से नकार दिया गया। समाज के दबे कुचले वर्ग के दर्द को दिखाने पर उनको झूठा और फरेबी कहा गया।
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ये हार भी क्या कमाल है,ये हार भी क्या कमाल है
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