जरा सोचिए की प्राइवेट व्यापारियों को अनाज खरीदने के लिए एमएसपी की कोई न्यूनतम सीमा ना हो, और उन्हीं अंबानी अदानी टाइप व्यापारियों को अन्न भंडारण की असीमित शक्तियां दे दी जाएं, क्या हाल होगा देश में महंगाई का। मतलब कि किसान से दो रुपये किलो चावल खरीद कर अम्बानी अडानी टाइप लोग असीमित स्टोरेज कानून की वजह से पूरे देश का चावल अपने पास स्टोर कर लेंगे। और जब देश में चावल की कमी होगी तो वही दो रुपये किलो वाला खरीदा हुआ चावल अंबानी अडानी टाइप लोग दो हज़ार रुपये किलो में बेचेंगे जी। हां कुछ ऐसा ही है भारत के "अतिप्रिय" प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का नया किसान बिल।
पिछले न जाने कितने दिनों से किसान लगातार आंदोलन कर रहे हैं और दिल्ली को घेरे हुएप्र है। किसान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने का समय मांग रहे हैं । लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन सबसे परे बनारस में देव दिवाली मनाने का अति सुंदर प्रदर्शन करने में लगे हुए हैं। प्रधानमंत्री को कम से कम यह बात तो सोचनी चाहिए कि देश के लोग क्या सोचेंगे कि किसान दो महीने से भी ज्यादा समय से दिल्ली में धरना देकर बैठा हुआ है ।और नरेंद्र मोदी जी आकर देव दिवाली पर दिए जला रहे हैं ।देश के कई करोड़ किसानों के भविष्य को अंधेरे में डालकर नरेंद्र मोदी जी बनारस में देव दिवाली मना कर दिया जलाने का विश्व रिकॉर्ड बना रहे हैं।
हालांकि नरेंद्र मोदी जी कई मामलों में विश्व रिकॉर्ड बना चुके हैं ,इसमें भी वह बना ही रहे हैं ,अब वह क्या बना रहे हैं यह दुनिया को समझ में आ रहा है,। जब सरकार का विरोध कर रहे किसानों की तरफ मीडिया हाइप गया और किसानों के संघर्ष और उनके आंदोलन को मीडिया कवरेज मिलने लगा और देश के लोगों तक उनकी बात पहुंचने लगी, तब नरेंद्र मोदी जी ने देव दिवाली मनाने का दिखावा किया। और एक बार फिर से देश के असली समस्या को धर्म की चादर से ढक दिया । सारे पालतू गोदी मीडिया फिर मोदी जी के एक एक पोज को कवर करने में लग गई । जैसा कि ये पालतू जानवर हर बार करते हैं।
और सरकार इस आंदोलन को दबाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। चाहे वह अपने पालतू कुत्तों द्वारा आंदोलन को देशद्रोह बताने की कोशिश करवाना हो, या गोदी मीडिया द्वारा आंदोलन को भी विपक्षियों का साजिश बताना हो। और इन सबसे बढ़कर इस आंदोलन को दबाने की कोशिश में सरकार अन्नदाता किसानों के ऊपर लगातार लाठीचार्ज, बैरिकेडिंग, आंसू गैस के गोले छोड़ने से लेकर हर संभव प्रयास कर रही है। इस कांप कपाती ठंड में दिल्ली बॉर्डर पर बैठे किसानों के ऊपर सरकार ने अत्याचार और जुल्म की हर पराकाष्ठा पार करके अपने अत्याचार को दिखाया । किसानों को मारकर पीटकर भूखे रखकर वाटर कैनन की बौछार कर ,तरह-तरह के यातना देकर नरेंद्र मोदी की सरकार ने इस आंदोलन को दबाने का हर संभव प्रयास किया। लेकिन वह इसमें पूरी तरह से नाकाम रहे। क्योंकि इस बार नरेंद्र मोदी की सरकार का सामना देश के अन्नदाता किसान से है ।और इस अन्नदाता किसान ने मोदी सरकार की पूरी कैबिनेट को घुटने पर ला दिया है।
खैर यह जो सरकार ने किसान की हित के लिए जो तीन नए बिल लाए हैं वह केंद्र सरकार इसे ऐतिहासिक सुधार बोलकर किसानों को एक कुएं में ढकेल रही है। जैसा कि मोदी जी पहले भी ऐतिहासिक सुधार के नाम पर कर चुके हैं। देश ने ऐतिहासिक सुधार के नाम पर नोटबंदी को झेला । और भयावह परिणाम देखने को मिले। कई 100 लोगों की मौत लाइन में खड़े खड़े हो गई ,इस एक कदम से लाखों नौकरियां और सैकड़ों जिंदगियां खत्म हो गईं। लोगों के पास पैसों की अति भयंकर किल्लत हुई लोगों का देश की करेंसी से विश्वास उठ गया और सेविंग के नाम पर घर में औरतों ने जो दो चार हज़ार रुपये रखे थे वह बेकार हो गए, क्योंकि समय रहते उन नोटों को बदला नहीं जा सका।
टैक्स में अति ऐतिहासिक सुधार के नाम पर जीएसटी आधी रात में आ तो गया। जीएसटी को भारत की आर्थिक आजादी के रूप में दिखाया गया। दो फीसदी जीडीपी बढ़ाने का दावा किया गया।लेकिन, कभी जीडीपी को ऊपर नहीं बढ़ा पाया। अलग से अर्थव्यवस्था को और नीचे लेकर चला गया। व्यापारियों का एक दूसरे से विश्वास खत्म हो गया पूरे व्यापारी वर्ग को टैक्स चोर घोषित करने की कोशिश की गई। मजबूर और लाचार कई व्यापारियों ने आत्महत्या करने का रास्ता अपना लिया। लोगों ने अपने धंधे बंद कर दिए। खुद नरेंद्र मोदी जी अपने भाषण में कह चुके हैं कि जीएसटी के बाद तीन लाख कंपनियों को ताला लग गया। उन तीन लाख कंपनियों को ताला लगने से कितने लोगों की नौकरी गई इसका रिकॉर्ड ना तो प्रधानमंत्री जी के पास है ना ही उनके किसी का बिल कैबिनेट मंत्री के पास है।
कोविड-19 से लड़ने के नाम पर पूरे देश में महज 4 घंटे के नोटिस पर लॉकडाउन किया गया। 21 दिन की अभूतपूर्व लड़ाई बताई गई। कोरोना तो खत्म नहीं हुआ। लेकिन, हजारों प्रवासी मजदूरों की जिंदगियां देश की सड़कों पर खत्म हो गईं। बिना किसी प्लानिंग के लोगों को दर बदर भटकने के लिए छोड़ दिया गया । दिहाड़ी मजदूरों को भूखा मारने की पूरी साजिश रची गई । कोरोना के नाम पर देश के लोगों को इस सरकार ने इतना ज्यादा डराया की लोगों ने अपनो से बिल्कुल किनारा कर लिया । लाखों नौकरियां चली गईं। लोग दर बदर भटकने लगे । लोग हज़ारो किलोमीटर पैदल चलकर अपने गांव भागने लगे । रास्ते में लोग भूख से प्यास से तड़प तड़प कर मर रहे थे । कई सारी ऐसी भिवत्स तस्वीरें देखने को मिली कि आज भी उनको याद कर दिल रोने लगता है । 20 लाख करोड़ रुपए का बूस्टर कैप्सूल अर्थव्यवस्था को देने का जो ऐलान हुआ, उसका भी कुछ अता पता नहीं चला ।और परिणाम यह हुआ कि अर्थव्यवस्था निगेटिव हो गई।
अब इतिहास बनाने के नाम पर किसानों को चुना गया है। क्योंकि ना तो बैंकों के पास अब "ऐतिहासिक सुधार" की कूवत बची है , और ना ही व्यापारियों में एक और "ऐतिहासिक सुधार" को झेलने की हिम्मत बची है। इसलिए "ऐतिहासिक सुधार" के नए शिकार बन रहे हैं हमारे किसान । हो सकता हो अगली बार "ऐतिहासिक सुधार" सेना के जवानों में और लोगों की नौकरियों में किया जाए। जिसकी झलक हमें कोरोना वायरस के समय देखने को मिली। जब कई सारे बेसिक श्रम कानूनों को सरकार ने खत्म करके नौकरी का सारा अधिकार पूंजीपतियों के हाथ में दे दिया।
सदन में तमाम हो-हल्ले के बीच किसानों की नई आर्थिक आजादी की कहानी लिखी जा चुकी है। एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने द्वारा लाए गए सुधारों को नई आजादी के रूप में प्रचारित किया है। लेकिन, सच कितना है, इसे लेकर कई सवाल हैं। कई सारे बड़े सवाल हैं जैसे कि एमएसपी को अबकी बार कानूनी मान्यता या कानूनी सहारा नहीं दिया गया है । नए कानून में एमएसपी की कोई भी किसी तरह से कोई जिक्र नहीं है । साथ ही और जो सब दूसरी सबसे बड़ी कमी समझ में आ रही है वह यह कि सरकार ने असीमित भंडारण की छूट दे रखी है ।इसके अलावा आलू ,अनाज, दलहन, तिल और कई सारे वस्तुओं को अति आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटा दिया गया है। और इनकी असीमित भंडारण की छूट दे दी गई है। और सरकार सिर्फ विशेष परिस्थितियों में ही यानी कि आपातकाल या युद्ध के समय ही इसमें दखलअंदाजी दे सकती है। इसका मतलब साफ यह है कि सामान्य समय में कोई भी बड़ा पूंजीपति बहुत सारे अनाज का भंडारण कर उस अनाज का प्राइस खुद कंट्रोल कर सकता है।
पूर्व समय में भी कई बार इस बात का उदाहरण लोगों के सामने आया है , कि प्याज या दाल जैसी चीजों के दाम सिर्फ इसलिए बड़े क्योंकि उनका भंडारण चोरी-छिपे तरीके से बहुत ज्यादा कर लिया गया । और इसी वजह से बीस रुपये या तीस रुपये किलो बिकने वाली प्याज दो सौ रुपये किलो तक बिक रही थी। अब तो वह भंडारण की सीमा को इस कानून के माध्यम से पूरी तरह निकाल दिया गया है। और असीमित भंडारण की छूट दे दी गयी है। तो भंडारण करने वाले कि अगर क्षमता हुई कि वह पूरे देश के अनाज को खरीद सकता है तो वह खरीदेगा, जो क्षमता अंबानी और अडानी में है। तो वह पूरी बाजार से अनाज खरीद करके अपने पास स्टोरेज करेगा। और उसके बाद उस अनाज को मनमाने तरीके से बेचेगा। पूरे देश की आवश्यक वस्तुओं का प्राइस कंट्रोल इन चंद उद्योगपतियों के हाथ में होगा। ऐसा ही है कुछ नरेंद्र मोदी जी का किसान का नया कानून। इसको थोड़ा और डिटेल में समझने की जरूर जरूरत है।
केंद्र सरकार ने कोरोना संकट के बीच ऐसे कानून लाकर गलती है और वो माहौल को समझ नहीं पाई है। सरकार को लगा कि अगर वो इस वक्त कानून लाएंगे, तो कोई विरोध नहीं कर सकेगा। लेकिन उन्होंने ये गलत अनुमान लगाया और आज हजारों की संख्या में किसान सड़कों पर हैं। और सरकार को चारों तरफ से घेर करके देश के सामने एक्सपोज कर दिया है। सरकार की इस घटिया नियत और पूंजीवादी सोच को देश के सामने उजागर कर दिया । देश के कृषि मंत्री हर हाल में कृषि क्षेत्र में निजी क्षेत्र का दखल चाहते हैं। और वह इसकी वकालत भी लगातार कर रहे हैं। यह बात लोगों के सामने किसानों ने रख दी।
नए किसान कानून के एक्ट का क्लॉज 18 और 19, कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग एक्ट में दिक्कतें हैं , जो किसानों को किसी भी तरह की सुरक्षा नहीं देते हैं। भारत के संविधान का आर्टिकल 19 देश के लोगों को अपनी आवाज उठाने का अधिकार देता है। लेकिन कृषि कानून के ये एक्ट किसी भी तरह की कानूनी चुनौती देने से रोकते हैं। इसमें सिर्फ ये नहीं कि किसान नहीं कर सकते, बल्कि कोई भी नहीं कर पाएगा। इसका मतलब अपने साथ हुई नाइंसाफी और अपने साथ गलत रेट पर किए गए जबरदस्ती वाले व्यापार को किसान जल्दबाजी में कहीं भी चुनौती नहीं दे सकता । ना ही इन तरह की हरकतों को चुनौती देना अब किसान के लिए उतना आसान रह जाएगा।
दरअसल, इन क्लॉज के अनुसार अगर किसान और कंपनी में कोई विवाद होता है तो उसे 30 दिन में निपटाना होगा। ऐसा ना होने पर कानूनी रास्ता अपनाना होगा। इसमें भी किसान सीधे सिविल कोर्ट नहीं जा पाएगा, बल्कि ट्रिब्यूनल के सामने अपील करनी होगी। ट्रिब्यूनल का मतलब जिले के डीएम और एसडीएम के पास किसान को बार-बार दौड़ कर जाना होगा। अब जिला कार्यालय और तहसील कार्यालय में किसानों का क्या हश्र होगा या अभी तक क्या हश्र होता आया है या किसी से छुपा हुआ नहीं है। इसी बात को लेकर किसान संगठनों का कहना है कि अगर किसान हर मसले के लिए ऐसे चक्कर काटता रहेगा, तो उससे फायदा नहीं नुकसान होगा।
केंद्र सरकार ने कृषि से जुड़े कुल तीन कानून पास किए हैं, जिनके तहत किसान मंडी के बाहर अपनी फसल बेच सकेंगे। प्राइवेट कंपनियां कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर किसानों से खेती करवा सकेंगी। हालांकि, कानून में MSP को लेकर कोई ठोस नियम नहीं है। अब किसानों की ओर से इसी का विरोध हो रहा है, किसानों का कहना है कि मंडी में MSP और पैसों की गारंटी मिलती है लेकिन बाहर नहीं होगी। ऐसे में सरकार को MSP से नीचे फसल खरीदने वालों पर एक्शन का प्रावधान शामिल करना चाहिए। हालांकि, सरकार इसपर नहीं मान रही है लिखित में ही विश्वास क्यों चाहते हैं किसान? नए कानून को लेकर किसानों ने कई तरह की चिंता व्यक्त की हैं, किसान संगठनों के मुताबिक, इससे APMC एक्ट कमजोर होगा, जो मंडियों को ताकत देता है। ऐसा होते ही MSP की गारंटी भी खत्म होने लगेगी जिसका सीधा नुकसान भविष्य में किसान को उठाना होगा। किसानों के मुताबिक, कानून लागू होने के बाद कॉरपोरेट खरीदार अधिक दाम पर फसल ले सकते हैं लेकिन एक-दो साल बाद उनपर MSP का जब कोई दबाव नहीं होगा तो वो मनचाहा दाम लेंगे। और तब किसान के पास कोई ऑप्शन नहीं होगा
इस नए किसान कानून को यदि पहली नजर में भी देखा जाए, तो यह सीधा सीधा दिखाता है कि अब किसान कानून सरकार द्वारा बनाया गया पूंजी पतियों का हितैषी वाला कानून है। जिसमें किसानों की सारी शक्तियों और उनके अधिकारों को छीन कर पूरे बाजार का कंट्रोल पूंजीपतियों के हाथ में देने का एक षड्यंत्र रचा गया है। सरकार के मंत्री बार-बार कह रहे हैं कि एमएसपी से कोई छेड़खानी नहीं की जाएगी, एमएसपी बरकरार रहेगी । तो यह बात उनको इस कानून में लिखित रूप से देने में किस बात की शर्म आ रही है, इस बात का जवाब किसी के पास नहीं है। और अगर एक बार को एमएसपी की बात मान भी ली जाए तो सरकार के मंत्री और प्रवक्ता और सीमित भंडारण की बात को किस तरह से जस्टिफाई करेंगे, यह बात समझ से परे है। ये असीमित भंडारण न सिर्फ देश की महंगाई को एक अलग स्तर पर ले जाने की षणयंत्र के रूप में सामने आ सकता है बल्कि यह देश के किसानों को अपंग बना देगा । किसान जो अनाज पूजीपतियों को बेचेगा वही अनाज उसे कुछ समय बाद जरूरत पड़ने पर हजार गुनी रेट पर भी वापस मिल सकता है। यह सरकार द्वारा बहुत बड़ा षड्यंत्र है । देश में पूंजीवादी व्यवस्था को लागू करने और पूंजी पतियों के साथ मिलकर देश के लोगों को लूटने का योजना सरकार द्वारा बनाई जा चुकी है।
अब भले ही प्रधानमंत्री मोदी जी और उनके लोगों के पास किसानों द्वारा उठाए गए इन सवालों का कोई जवाब हो या ना हो। भले ही वह किसानों के हित के बारे में कुछ सोचा या ना सोचे। लेकिन अपने खिलाफ हो रहे विरोध को नया एंगल देने का तरीका मोदी जी ने बखूबी निकाला है । देश के अन्नदाता को देश का दुश्मन और गद्दार साबित करने के लिए अपनी आईटी टीम को लगा दिया है।
अमित मालवीय की टीम अन्नदाता के आंदोलन को और अन्नदाता को खालिस्तानी, आतंकवादी, देशद्रोही ,गद्दार पाकिस्तानी और न जाने क्या-क्या साबित करने पर लगे हुए हैं। इस सरकार के कुछ कथित चमचे किसान आंदोलन का कनेक्शन शाहिनबाग आंदोलन से जोड़ने पर लगे हुए हैं। इन्हीं चमचों से एक चमची कंगना रानौत ने एक के बाद एक कई फेक ट्वीट शेयर कर किसानों के आंदोलन को शाहीन बाग से जोड़ने की कोशिश किया। और शर्म की बात यह रही कि रीढ़विहीन बॉलीवुड में से किसी की हिम्मत नहीं हुई कि चरसी कंगना रानौत को कोई जवाब दे सके। यह काम पंजाबी इंडस्ट्री के सिंगर दिलजीत दोसांज को करना पड़ा। और दोसांझ में उस चरसी को ऐसा जवाब दिया कि उसे अपना ट्वीट डिलीट कर भागना पड़ा।
सरकार द्वारा और भारतीय जनता पार्टी की आईटी टीम द्वारा की गई इन हरकतों से जैसा समझ में आता है कि यह लोग अपनी कमियों और अपनी बदनियति को छुपाने के लिए देश के अन्नदाता को आतंकवादी खालिस्तानी गद्दार और न जाने किन-किन उपाधियों से नमाज ने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं। यह बात भी पूरी तरह समझ में आती है कि अगर सरकार के बस में इस आंदोलन को दबाने के लिए कोई भी कदम उठाने की छूट होती तो अब तक इन किसानों पर ना जाने कितने राउंड गोलियां फायर हो गई होती। और जवाब में यही आता कि वह आतंकवादी थे, खालिस्तानी थे , या यह कह दिया जाता कि वह धर्म विरोधी थे। क्योंकि फर्जी राष्ट्रवाद और फर्जी धर्म रक्षा ही इस सरकार के मुखोटे हैं।
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