किसान
युद्धभूमि है सज रही तेरी हुंकार भर तू छाए जा
मातृ की ललाट को अपने रक्त से तू सजाएं जा
द्वंद का बिगुल बजे या अब शत्रु की पुकार हो
खड्ग के प्रहार कर अपना शीश तू कटाये जा
धरतीपुत्र तेरी ये धरा है जर्रे जर्रे पर तू लड़ा है
बन याचक क्यो अधिकार खुद का है मांगता
नैन अश्रु से सिसक रहे बेबस से वे बिलख रहे
छीन ले हक तेरा यूँ विरता से है क्यो तू भागता
वक्ष में आग भर रगों में इंकलाब तू जलाए जा
युद्धभूमि है सज रही तेरी हुंकार भर तू छाए जा
अंत है ये शब्द भी और अंत है ये प्रारब्ध भी
मौत का ये भय निज हृदय से तू निकाल दे
कुरुक्षेत्र की विसात है ये जंग भी प्रख्यात है
प्यासे इस रण में सिंह सा जाकर तू दहाड़ दे
तलवार की धार पर अशुद्धता तू मिटाए जा
युद्धभूमि है सज रही तेरी हुंकार भर तू छाए जा
किसी का प्रबुद्ध नही हर कोई यहाँ शुद्ध नही
जंग की रणभेरी अब वीरगति को है पुकारती
निर्माण की ये साख है, विध्वंश की पोशाक है
आवरण को इसके अब ललक रहा तू महारथी
रक्त की प्यासी इस चंडी को रक्त तू चढ़ाए जा
युद्धभूमि है सज रही तेरी हुंकार भर तू छाए जा
तेरा बाहुबल है प्रखर शौर्य से भी छोटा है शिखर
आस कर विजय की इस प्राण का मोह तू छोड़ दे
वीरो सा दिख रहा पराक्रम दृश्य बन रहा विहंगम
रास्तो को तू मोड़ दे चट्टाने राह की अब तो तोड़ दे
दिखा पराक्रम भुजा का माला जय की बनाये जा
युद्धभूमि है सज रही तेरी हुंकार भर तू छाए जा
रौद्र का ही एक अर्थ है याचना से मिला अनर्थ है
शक्ति ही एक समर्थ है,विनम्रता अब बनी व्यर्थ है
त्याग कर विलास तू ,बन सके तो बन मृत्यु वीर तू
विजय लालिमा के तिलक की एक यही तो शर्त है
छीन अधिकार खुद तू विजय पताका फहराए जा
युद्धभूमि है सज रही तेरी हुंकार भर तू छाए जा
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