वो कहावत पुरानी है, नालायक औलादे अपने पुरखों की अर्जित की हुई संपत्तियां बेच कर अपना गुजारा करती है।कुल मिलाकर ये एक ऐसी फिल्म थी जिसकी कहानी का पता नही था, सिर्फ एक जबरजस्ती बनाई गई नायिका थी। फ़िल्म का मैसेज समझ नही आया। फ़िल्म का स्क्रीनप्ले, स्क्रिप्ट, लोकेशन सब गायब था। फिर भी जबरजस्ती ये फ़िल्म सबको दिखाई गई । और खासियत ये बताई गई कि फ़िल्म की घोषित नायिका ने लगतार ढाई घंटे तक पेपर देख कर डायलॉग बोला।
अरे इस बार का बजट देखा क्या? समझा क्या ? कुछ खासियत रही बजट की, किसानों का लाभ ? छात्रों का लाभ ? व्यापारियों का लाभ ? जवानों का लाभ ? कुछ था इनमे से ? नही। लेकिन न्यूज़ चेंनल पर खासियत दिखाई जा रही है, की वित्त मंत्री ने सबसे लंबा भाषण पढ़ा, पूरे ढाई घंटे का।ये वैसा ही लॉलीपाप था जैसा कि पिछली साल वाला था, ब्रीफकेस हटा कर पोथी रखने वाला कांसेप्ट। कहा गया कि अब बजट नही बहीखाता लाया जाएगा, बजट पश्चिमी सभ्यता की निशानी है।
अरे मूर्खो बजट और बहीखाता में अंतर तो समझ लो पहले । बजट आने वाले साल के खर्चो की प्लांनिंग होता है, प्रपोजल होता है सारे खर्चो का। किस क्षेत्र में कितना संभावित खर्चा किया जाएगा। और बहीखाता होता है बीते हुए साल में कितना खर्चा हुआ, किस छेत्र में कितना रुपया लगा। कुल कितना लाभ हुआ और कुल कितनी हानि हुई। लेकिन हमारे मूर्खाधिशो को इससे क्या मतलब , उन्हें तो सिर्फ इस बात से मतलब है कि अब बजट की जगह बहीखाता बोला जाएगा और वित्तमंत्री ने ढाई घंटे का भाषण वाला रिकॉर्ड बनाया।
भले ही उस ढाई घंटे में ढाई लोगो के फायदे की भी बात न हो, लेकिन राजमाता शिवगामी देवी का "वचन" तो ढाई घंटे गूंजता रहा। और राजमाता का तो वचन ही उनका शासन है। अब इस बचन की चक्कर मे बेचारे बाहुबली, कट्टप्पा, भल्लालदेव, विच्छलदेव, सब के सब अपना माथा फोड़ कर घूमते हुए दिखाई दिए। इतना ही नही तिहाड बाबा ने तो यहाँ तक दिखा दिया कि राजमाता शिवगामी देवी के इस ढाई घंटे वाले वचन से पड़ोसी राजा कालकेय थर थर कांप रहा था। जब तक राजमाता ने भाषण पढ़ा तब तक पड़ोसी कालकेय कांपता रहा। अब ये राज की बात तिहाड़ी मूर्ख को कैसे पता चली ये तरिकीक जरूर है।
इस बार अर्थव्यवस्था और कई चीज़ों को मद्दे नज़र रखते हुए सबकी उम्मीद थी कि बजट कुछ अच्छा आएगा। लेकिन ऐसा कुछ हुआ नही। एक तरफ जहां आर्थिक वृद्धि में संरचनात्मक गिरावट दिखाई दे रही है, वहीं दूसरी तरफ भारत का राजकोषीय संकट भी गहराता जा रहा है। और वो इतना ज्यादा हो गया है कि राजकोषीय घाटे के लक्ष्य में ढील देने के बावजूद सरकार को खर्च के मामले में अपने हाथ सिकोड़ने पर विवश होना पड़ा है। ये घाटा 2019-20 के दौरान कुल खर्च, बजट में निर्धारित 27.86 लाख से 1 लाख करोड़ रुपये कम है। यह किसी को भी मालूम नहीं है कि किन योजनाओं के खर्चे पर कैंची चली है या बस उनके फंड खर्च न होने का मामला है।
यह एक यह एक अतुलनीय हालात है, और ये इतना अतुलनीय है कि इसने सरकार को फंड जुटाने के लिए अन्य गैरपरंपरागत तरीकों की ओर देखने पर मजबूर कर दिया है। जैसे बार बार आरबीआई की तरफ उम्मीद लगा कर देखना, उनसे उनका रिज़र्व फण्ड छीन लेना, एल आई सी के अपने सारे शेयर बेच देना, ताकि विकास को रफ्तार देने के लिए अतिरिक्त राजस्व जमा किया जा सके। और पूंजीगत खर्चे में बढ़ोतरी की जा सके। इस बेचैनी के कारण ही सरकार एशिया की सबसे बड़ी जीवन बीमा कंपनियों में से एक भारतीय जीवन बीमा निगम जिसकी कुल परिसंपत्ति 36 लाख करोड़ रुपये है- के शेयर को बेचने जैसा राजनीतिक रूप से विवादास्पद कदम उठा रही है। और एयर इंडिया , और न जाने कितनी कंपनियां पहले ही बेच चुकी है।
विनिवेश लक्ष्यों को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार भारतीय स्टील प्राधिकरण लिमिटेड (सेल) में भी अपनी पांच फीसदी हिस्सेदारी बेचने की तैयारी कर रही है। इससे 1,000 करोड़ रुपये मिलने की उम्मीद है। ऑफर फॉर सेल के जरिए होगी बिक्री यह बिक्री ऑफर फॉर सेल (ओएफएस) के जरिए की जाएगी। इस प्रक्रिया में सरकारी कंपनी के प्रवर्तक अपनी हिस्सेदारी सीधे तौर पर निवेशकों को बेचते हैं, जिसमें पारदर्शिता का खास ख्याल रखा जाता है। सेल में 75 फीसदी है सरकार की हिस्सेदारी निवेश एवं सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग (दीपम) के एक अधिकारी ने बताया कि इस्पात मंत्रालय इस विनिवेश के लिए सिंगापुर और हांगकांग में रोडशो करने की तैयारी में है। सेल में सरकार की 75 फीसदी हिस्सेदारी है।
इन सरकारी कंपनियों की भी होगी बिक्री सरकार देश की दूसरी सबसे बड़ी पेट्रोलियम कंपनी भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल) का भी निजीकरण करने जा रही है। साथ ही बजट 2020 में केंद्र सरकार ने एलान किया था कि वो भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) की अपनी हिस्सेदारी भी बेचेगी। यह है सरकार का लक्ष्य बता दें कि चालू वित्त वर्ष में सरकार ने विनिवेश के जरिए 1.05 लाख करोड़ रुपये मिलने का लक्ष्य रखा था। हालांकि इस लक्ष्य के पूरे होने की संभावना नहीं है। बजट 2020 के दौरान इस लक्ष्य को संशोधित कर 65 हजार करोड़ रुपये कर दिया गया है। मौजूदा समय में सरकार ने 35 हजार करोड़ रुपये जुटा लिए हैं। वहीं वित्त वर्ष 2020 के लिए 2.1 लाख करोड़ रुपये का विनिवेश लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में आईपीओ के माध्यम से सबसे बड़ी बीमा कंपनी एलआईसी में अपनी हिस्सेदारी बेचने का प्रस्ताव रखा। उन्होंने कहा कि एलआईसी का आईपीओ लाया जाएगा। सरकार एलआईसी में अपनी हिस्सेदारी बेचेगी। जीवन बीमा क्षेत्र की सबसे बड़ी कंपनी एलआईसी बाजार में सूचीबद्ध नहीं है। एलआईसी सरकारी सिक्योरिटीज में निवेश करने के अलावा शेयर बाजार में हर साल भारी मात्रा में निवेश करती है।
चूंकि कर-राजस्व संकलन की रफ्तार सुस्त पड़ गई है, जिसके लिए वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) में आशा से कम वृद्धि प्रमुख तौर पर जिम्मेदार है। इसलिए केंद्र सरकार जल्दी से पैसा दिलाने वाली परिसंपत्तियों को बेच डालने की अस्थायी नीति पर चल पड़ी है । एलआईसी में अपनी हिस्सेदारी को बेचना इस नीति का एक हिस्सा है। यह किसी परिवार द्वारा अपने रोजाना के खर्चे को पूरा करने के लिए अपने घर की हर संपत्ति- सोना, चांदी, जमीन, शेयर आदि- को बेचने के समान ही है।जैसा कि मैने पहले ही कहा था कि वो कहावत पुरानी है, नालायक औलादे अपने पुरखों की अर्जित की हुई संपत्तियां बेच कर अपना गुजारा करती है। अब सवाल यह है कि इस सबकी उम्र कितनी है ? ये संपत्तियां बेच कर कितने दिनों तक गुज़ारा चलने वाला है ?
पिछले साल सरकार ने भारतीय रिज़र्व बैंक से 1.76 लाख करोड़ रुपये लेने का फैसला किया। इस साल यह एलआईसी से 50,000 करोड़ रुपये से ज्यादा ले सकती है। बीपीसीएल, कॉन्कोर जैसे कुछ सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को पूरी तरह से बेचा जा सकता है। एयर इंडिया के बिकने का तो इन्होंने एलान भी कर दिया है। इसके बाद क्या? क्या यह सिलसिला हमेशा कायम रह सकता है?अर्थशास्त्री रथिन रॉय, जो पिछले साल तक प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य थे, ने कहा कि राजकोषीय हिसाब से केंद्र सरकार एक ‘मूक हृदयाघात’ से जूझ रही है। वे 2018-19 के वास्तविक राजस्व संकलन में 1.7 लाख करोड़ रुपये की भारी कमी के संदर्भ में बात कर रहे थे। यह ‘मूक हृदयाघात’ 2019-20 में और भी गंभीर हो गया है क्योंकि राजस्व में कुल कमी 3 लाख करोड़ रुपये की है। नोटबंदी के बाद हमें कहा गया था कि इससे बड़ी मात्रा में काले धन के मुख्यधारा में आने से राजस्व में बड़ा इजाफा होगा। हमें यह भी कहा गया था कि जीएसटी से काले धन की अर्थव्यवस्था का औपचारीकरण होगा।
इन वादों का क्या हुआ ? ऐसा लगता है कि हम उलटी दिशा में जा रहे हैं। नोटबंदी और जीएसटी से देश के खजाने में संरचनात्मक बढ़ोतरी का अनुमान लगाया गया था, लेकिन नतीजा इसका उलटा निकला है और ये संरचनात्मक गिरावट की ही वजह बन गए हैं। हर जगह लोग बिना वजह परेसान दिखे । वित्तमंत्री के बजट भाषण में जीडीपी वृद्धि में गिरावट के कारण राजस्व में सुस्ती को लेकर कोई भी विश्लेषण नहीं है। वहां तो बस लंबा लंबा भाषण और कमाल के डायलॉग है। राजमाता के डायलॉग है। यह सोचना कि यह एक चक्रीय समस्या है, दरअसल शुतुरमुर्ग की तरह रेत में सिर छिपाने जैसा है।
2020-21 के लिए देश की अनुमानित राजस्व वृद्धि जीडीपी में 10 प्रतिशत की नाम मात्र वृद्धि के अनुमान पर आधारित है। अगर यह विकास जीडीपी में 5 प्रतिशत वास्तविक वृद्धि और 5 फीसदी मुद्रास्फीति के रूप में आता है, जिसकी काफी संभावना दिखाई दे रही है, तो स्टैगफ्लेशन की भविष्यवाणी सच साबित हो जाएगी। इस स्थिति में कुल राजस्व में वृद्धि का अनुमान एक बार फिर गलत साबित होगा और यह सरकार को ज्यादा आक्रामक तरीके से परिसंपत्तियों को बेचने के लिए प्रेरित करेगा। यह आरबीआई, एलआईसी और लाभदायक सार्वजनिक उद्यमों को गर्दन मरोड़े जाने के लिए तैयार सोने का अंडा देनेवाली मुर्गी बना देगा। जब बाजार ने 1000 अंक गिरकर बजट को लेकर अपनी निराशा का इजहार किया, तब भाजपा के ज्यादातर प्रवक्ता बजट की तारीफ़ करते हुए उसे नए दशक के लिए विजन स्टेटमेंट करार दे रहे थे। और ‘बजट को वार्षिक विवरण की तरह न पढ़ने’ का आग्रह कर रहे थे।
यहां यह गौरतलब है कि पिछले कुछ दशकों में बजट पर बाजार की ऐसी निराशावादी प्रतिक्रिया एक विरल घटना है । समस्या यह है कि कोई भी भी एक दसवर्षीय विजन की मांग नहीं कर रहा था। हर कोई बजट से लघु और मध्यम अवधि में विकास और मांग को फिर से पटरी पर लाने के लिए कुछ ठोस कदमों की अपेक्षा कर रहा था। लेकिन ऐसे किसी कदम का नामोनिशान नहीं था। लीक से हटते हुए प्रमुख उद्योगपतियों ने भी कहा कि उन्हें मांग को बढ़ावा देनेवाला कोई तात्कालिक उपाय बजट में नजर नहीं आया। आयकर में कटौती और जटिल टैक्स स्लैबों को देखते हुए वेतनभोगी लोग यह समझ ही नहीं पा रहे हैं कि क्या वे पिछली व्यवस्था में ज्यादा अच्छी स्थिति में हैं, जिसमें अभी भी टैक्स छूट सुरक्षित है।
सिर्फ एक महीने पहले, वित्त मंत्री ने अगले पांच वर्षों में बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं पर 102 लाख करोड़ रुपये खर्च करने का बड़ा ऐलान किया था, जिसमें केंद्र, राज्यों और निजी सेक्टर का क्रमशः 39%, 39% और 22% योगदान होगा। ऐसे में यह उम्मीद थी कि पहले साल में बुनियादी ढांचे पर खर्च में केंद्र के हिस्से (8 लाख करोड़) का ब्योरा विस्तार से दिया जाएगा। लेकिन आश्चर्यजनक ढंग से यह नदारद था। क्या सरकार ने इस योजना को स्थगित कर दिया है? यह केंद्र सरकार की तरफ से पेश की गयी विकास और मांग को बढ़ावा देनेवाली एक ठोस योजना थी, जिसको लेकर कोई तफसील बजट में नहीं थी।
कुल मिलाकर पूरा बजट भाषण इस कदर बार-बार दोहराए गए सामान्य विवरणों से भरा हुआ था कि सत्ताधारी दल के लोग भी 2 घंटे 45 मिनट के भाषण के अंत तक थके हुए से दिखाई देने लगे। अंत में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह को वित्त मंत्री को यह इशारा करना पड़ा कि बजट भाषण के बाकी हिस्से को पढ़ा हुआ माना जा सकता है। पिछले कई सालों में यह शायद सबसे ज्यादा उबाऊ और दिशाहीन बजट था। और उतना ही बोरियत से भरा हुआ नकारा , और लोकभ्रमिक बजट भी।
और जितना भ्रमात्मक है उतना ही बीजेपी के भक्त और इनके शीर्ष से लेकर तटपुँजिये नेता तक हर कोई एक ही राग अलाप रहा है। उस राग में बजट की फायदे नही बल्कि बजट ढाई घंटे तक पढ़ा गया सिर्फ़ इस बात की तारीफ थी। कुल मिलाकर ये एक ऐसी फिल्म थी जिसकी कहानी का पता नही था, सिर्फ एक जबरजस्ती बनाई गई नायिका थी। फ़िल्म का मैसेज समझ नही आया। फ़िल्म का स्क्रीनप्ले, स्क्रिप्ट, लोकेशन सब गायब था। फिर भी जबरजस्ती ये फ़िल्म सबको दिखाई गई । और खासियत ये बताई गई कि फ़िल्म की घोषित नायिका ने लगतार ढाई घंटे तक पेपर देख कर डायलॉग बोला। और इसी डायलॉग के भरोसे तिहाड़ी बाबा बगल राज्य के कालकेय का हाल चाल भी सबको बताते रहे।
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