मंजिल मंजिल ढूंढे राही
मंजिल मंजिल ढूंढे तुझको, ये ऐसा एक दीवाना है
मैखाने मैखाने करे सलामी ,ये ऐसा एक अंजाना है।
तेरी तलाश में दर दर भटके ये, सुबह से लेकर शामो तक
घूंट तेरी ये अमृत समझे, राही तो ऐसा एक मस्ताना है
होंठो पर जब तू जाए तो खुशियां सारी खिल जाये
जैसे भटके राही को , मंजिल उसकी मिल जाये
तेरे मैखानो की छाया अब तो रहती है बहुपाशो में
तेरी मदहोशी से जैसे अब हर जख्म उसका सिल जाए
तेरी राह पकड़ एक ,अंजाना डगमग डगमग चलता जाए
देख उसकी मस्तानी चाले, वक़्त भी राह में ढलता जाए
पथिक चले जब तेरे सुरूर में, शमा ही कुछ ऐसी छाती है
जैसे तपती जेठ दुपहरी में , छायो की माला मढ़ती जाए।
मैखाने की राह चले बस, इसको वही तक जाना है
न तो अमृत की चाह इसे और न ही ईश्वर को पाना है
भटक रहा क्यों मंदिर मस्जिद रातो के इस अंधियारे में
तेरे हर विश्वास की खातिर, मधुशाला को घर तेरे आना है।
पर्वत की घोर ऊंचाई जैसे राही मधुशाला में चढ़ता है
घटती जाए दूरी पैमाने से, ऐसे कदम संग वो बढ़ता है
एक कड़ी टूटी तो क्या फिर ,दूजी साथ ही मिलती है
कुछ ऐसे अरमानो से राही, मधुशाला के सपने गढ़ता है।
एक राह रहे सदा इसकी, एक चाह ही ये रखता है
एक ही पगडंडी पकड़े, एक ही मंजिल तकता है
आखिरी पैमाने संग बिखरे, आखिर तक साथ निभाता है
मैखाने संग इसकी वफाई जैसी कोई क्या कर सकता है
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