मणिमय प्रभंजन
रक्तरंजित कृपाण की धार अब तेज़ है,
जिसके वार में तीव्रता का अब एक वेग है।
गुर्राती सूर्ख आंखे श्रेष्ठता की एक नेग है।
प्रचंड ज्वाला जल रही हौसले तपाने को
कर्मपथ पर खड़ी मौत विजयरथ रिझाने को
कण कण गूंज रहा छाया फतह का मेघ है।
रक्तरंजित कृपाण की अब धार तेज़ है,
जिसके वार में अब तीव्रता का एक वेग है।
मेघ यज्ञ का अश्व खड़ा सर्वोत्कृष्ट को प्रबुद्ध है।
स्वयं काल इस द्वंद से हो रहा अब शुद्ध है।
कलिक असुरो से अब हौसलो का युद्ध है।
द्वेष भाव छोड़ पराजय का अब ये त्याग है।
अनुलग्नक राग छेड़ उल्लास का ये बाग है
कर्म रथ ले चले , सामने उपवन की सेज है
रक्तरंजित कृपाण की अब धार तेज़ है,
जिसके वार में अब तीव्रता का एक वेग है।
संघर्ष की तपिश ज्वाला में अब जल रही।
रुक चुकी लकीरे अब खुद हाथो में चल रही।
कष्ट की कश्तियां अब झुंड में निकल रही।।
समर का बीजकोट अब खुद मेरे है अधीन
हथियार इसके सारे, मेरे हौसलो से है छीड़।
मधुर ध्वनि गूंज रही ये की सफलता की रेज है
रक्तरंजित कृपाण की अब धार तेज़ है,
जिसके वार में अब तीव्रता का एक वेग है।
समक्ष आये जीत अब स्वयं हर्षित मुझे पुकारे
दलहीज पर इसके खड़ा, कर्कश सारे हुए किनारे
राह में घूम कर आगये सारे अप्रसिद्ध हुए सितारे
पहने चल रहा हु खुद के पारितोषिको की माला
चहक कर छलक रहा अब जश्न का एक प्याला
धृष्टता के अंत से , शिष्टता का ये एक सहेज है
रक्तरंजित कृपाण की अब धार तेज़ है,
जिसके वार में अब तीव्रता का एक वेग है।
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