सीबीआई की मजबूरी हम इस तरह भी समझ सकते हैं कि एक बड़े आदमी के यहां चोरी हुई और चोरी का शक एक बड़े थाने के एक बहुत बड़े कोतवाल के ऊपर गया । अब नियम के मुताबिक उस कोतवाल ने एक जांच कमेटी बनाई जिसमें उसने कुछ जूनियर अफसरों को रखा , और खुद के खिलाफ दर्ज मुकदमे की जांच करने के आदेश दिए। और उस जांच की सारी देख रेख भी उस कोतवाल ने अपने ही पास रखी । और जब रिपोर्ट आई तो पता चला कि कोतवाल साहब निर्दोष है। और चोरी हुई सामान खुद-ब-खुद घर से भाग गई।या उन सामानों का घर से मन भर गया था। वह सामान घर में रहने नहीं चाहती थी । फिर कोतवाल ने हर जगह से चोरी करनी शुरू कर दी। और वह जब जब चोरी करता और उसके खिलाफ शिकायत जाती तो वह वही कमेटी बना देता ।और कमेटी डरा धमका कर लोगों को चुप करा देती ,और कोतवाल को बाइज्जत बरी कर देती थी।
मौजूदा दौर तोते या पोपट का चल रहा है ।जब-जब सत्ता के शिखर पर बैठे हुए डरपोक साहब को सत्ता खोने का डर सताने लगता है , और कुर्सी के चारों पाए चारों तरफ से सरकने लगते हैं, कुर्सी पकड़कर खड़े हुए लोग ही कुर्सी के पायों को तोड़ कर ले जाने की कोशिश करने लगते हैं , तब तक डरपोक साहेब पिजड़ा खोल कर के तोते को निकालते हैं ,और तोते से अपने राजनीतिक विरोधियों को डराने की कोशिश करने लगते हैं ।
कुर्सी के यह गिद्ध अपने राजनीतिक इच्छाओं को पूरा करने के लिए विचार आधारित विरोधियों को फर्जी केसों में फ़सवा देते हैं , या मरवा देते हैं । ऐसे ही गिद्ध देश की राजनीति और देश के लोकतंत्र को खोखला करने पर तुले हुए हैं । इन गिद्धों को सबसे ज्यादा डर इनके विरोध से लगता है ।यह लोग ना तो अपना विरोध सकते हैं ना अपनी आलोचना सुन सकते हैं । और यह बुजदिल गिद्ध इतने डरपोक होते हैं कि अपने खिलाफ खड़ा होने वाले हर चैलेंज को खत्म करने की कोशिश करते हैं । चाहे वह ताकत से करें , चाहे फूट डालकर, या फिर तोते से डरवा कर।
ये गिद्ध हर संस्था में अपनी हुक्मरानी चलाना चाहते हैं । जिस तोते कि मैं बात कर रहा हूं ,दरअसल वह तोता ना होकर एक पोपट बन चुका है । जिसके पास ना खुद का कोई दिमाग है ना खुद की कोई सोच ।इन के बड़े अधिकारी आपस में ही एक दूसरे पर घूस और बेईमानी के आरोप लगाते हुए ,चले जाते हैं । सत्ता के डरपोक साहब के हुकुम पर किसी मदारी के बंदर की तरह नाचने वाले यह तोते सिर्फ अपनी जेबे भरने और अपने हुक्मरानों को खुश करने में लगे हुए हैं।
2011 में हुए अन्ना आंदोलन से लेकर के अभी 2018 तक इस तोते को कई बार सरकार के चंगुल से निकाल कर के एक स्वतंत्र संस्था बनाने की कोशिश की गई। लेकिन जब इस तोते की किस्मत ही खराब है । यह तोता और कुछ कर भी क्या सकता है । ऐसा बहुत बार हुआ है जब विपक्ष के नेता या विपक्ष की पार्टियां डरपोक साहेब के मन की मर्जी नहीं करती हैं ,या उनके खिलाफ एक संयुक्त मोर्चा बनाकर के खड़ा होने की कोशिश करती है । तब तब डरपोक साहिब इन तोतों की मदद से उनको डराने की कोशिश करते हैं ।
सीबीआई ई डी और ना जाने कितने कितने ऐसे तोते इस समय डरपोक सहित के पिंजरे में बंद हैं। और जब जब साहिब को कुर्सी जाने का डर सताता है , तब तब साहिब इन तोतों को बाहर निकाल कर अपनी इच्छाओं की पूर्ति करते हैं। और खुद अंदर से ही इन तोतों की हालत इतनी गंदी और घटिया हो चुकी है कि, सुप्रीम कोर्ट भी इनके बारे में टिप्पणी यही करता है कि आप दूसरों की जांच करने से पहले खुद के सिस्टम को सही करिए और खुद क्लीन हो कर आइए ।
दिल्ली में आज ही समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के 2019 चुनाव के गठबंधन की खबरें आई वैसे ही साहब ने अपने तोते को एक्टिवेट कर दिया । और तोते ने सबसे पहला काम ये किया कि उत्तर प्रदेश की ईमानदार और प्रख्यात छवि वाली आईएएस चंद्रकला के ऊपर आज से दोगुनी की संपत्ति होने का दावा लेकर छापा मार दिया । इशारा साफ था कि जो खनन का आधार बनाकर चंद्रकला पर छापा मारा गया उस समय वह खनन विभाग अखिलेश यादव के पास था । इस तरह सीधे-सीधे अखिलेश यादव जी को डराने की कोशिश साहब के तोते ने की।
एक मजेदार यह भी आती है कि 5 साल में चंद्रकला की दोगुना हुई संपत्ति तोते को साफ साफ नजर आती है । लेकिन जब वही मात्र 1 साल में अमित शाह के परम लाडले पुत्र और स्किल इंडिया के परम विजेता माननीय जय शाह 16000 गुना संपत्ति बढ़ा देते हैं । तब इस तोते की आंखें फूट जाती हैं, या तोता अंधा हो जाता है । यह तोता अपने कानों में ठंड के मौसम में उगने वाले बड़े-बड़े गन्नों को डाल कर बैठ जाता है ।या यूं कहें की इन गन्नो को तोतो के कानों में डाल कर बैठा दिया जाता है।
वैसे कोई नई बात नहीं है । तोते की हालत आज जो है वह पूरे देश से सामने हैं। यह किसी से छुपी नहीं है ।तोते को किस तरह साहब आपने राजनीति की इच्छाओं की पूर्ति के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं ,और किस तरह तोते अपना खुद ही पद पिटवा रहे हैं यह स्थिति की जानकारी पूरे देश से मे फैल चुकी है।
एक बार हमें जरूर देखने की कोशिश करेंगे कि कैसे इस तोते ने खुद की ही सिस्टम को पूरी तरह से कचरा और मैला के बराबर बना रखा है। पूरे देश में जिस वजह से सीबीआई के नाम पर थू थू हुई वह वजह दरअसल यह थी कि सीबीआई ने विशेष निदेशक राकेश अस्थाना समेत 4 लोगों के खिलाफ मांस कारोबारी को क्लीन चिट देने के मामले में 3 करोड़ रुपए रिश्वत लेने का मुकदमा दर्ज किया था। सतीश साना नाम के व्यक्ति ने मामले को रफा-दफा करने के लिए घूस लेने के आरोप में FIR दर्ज की थी।
आरोप था कि रिश्वत लेकर मांस कारोबारी मोईन कुरैशी को क्लीन चिट दिलाई। मीट कारोबारी मोईन पर मनीलांड्रिंग और भ्रष्टाचार के कई आरोप हैं। इसके एक दिन बाद डीएसपी देवेंद्र कुमार को गिरफ्तार किया गया। सीबीआई ने अस्थाना पर उगाही और फर्जीवाड़े का मामला भी दर्ज किया। अस्थाना ने कैबिनेट सचिव और केंद्रीय सतर्कता आयोग को पत्र लिखकर सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा के खिलाफ कथित भ्रष्टाचार और अनियमितता के कम से कम 10 मामलों का जिक्र किया था।
इसी मामले में अस्थाना ने सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा पर रिश्वत लेने का आरोप लगाते हुए दो महीने पहले कैबिनेट सेक्रेटरी को पत्र लिखा था। 24 अगस्त को लिखे इस पत्र में अस्थाना ने उन दस मामलों की जानकारी दी थी, जिसमें उन्हें लगता था कि एजेंसी प्रमुख आलोक वर्मा ने भ्रष्टाचार किया है। अस्थाना ने मोईन मामले में वर्मा पर दो करोड़ रुपए लेने का आरोप लगाया था।
सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के बीच छिड़ी इस जंग के बीच सरकार ने सतर्कता आयोग की सिफारिश पर दोनों अधिकारियों को छु्ट्टी पर भेज दिया और जॉइंट डायरेक्टर नागेश्वर राव को सीबीआई का अंतरिम निदेशक बना दिया गया। चार्ज लेने के साथ ही नागेश्वर राव ने मामले से जुड़े 13 अन्य अधिकारियों का ट्रांसफर कर दिया। आलोक वर्मा ने सरकार के इस फैसले पर सवाल उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर की। इस पर शुक्रवार को सुनवाई होगी।
अतीत इस बात का गवाह है कि केंद्र में सत्तारूढ़ रही सरकारों ने अपने अपने कार्यकाल में सीबीआई का अपने नफ़ा नुक्सान के मद्देनज़र बखूबी इस्तेमाल किया है। चाहे वह एनडीए की सरकार रही हो जिसने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को चारा घोटाले में खूब परेशान किया, क्योंकि एक जमाने में मुख्यमंत्री रहते हुए लालू यादव ने जिस तरह लालकृष्ण आडवानी को रथयात्रा रुकवाकर उन्हें रांची में गिरफ्तार करा कर जेल में डलवा दिया था, और जिस तरह नरेंद्र मोदी के खिलाफ लामबद्ध विपक्ष को एकरूपता पहनाई, उसे आडवानी जी और मोदी जी कैसे भूल सकते थे।
खैर उस वक़्त आडवाणी जी ने इसके लिए सीबीआई के तत्कालीन संयुक्त निदेशक यूएन विश्वाश का जमकर इस्तेमाल किया। जिन्होंने दूसरी जांचों और आयोगों की सिफारिशों को दरकिनार करते हुए केंद्र सरकार के इशारे पर काम किया। बाद में यूपीए वन की जब सरकार बनी तो लालू उसमें शामिल रहे। यह भी स्वाभाविक क्रिया नहीं थी, वो लालू यादव की मजबूरी थी लेकिन इसे कम लोग ही समझ पाए। नतीजा यह हुआ की अगले चुनाव (लोक सभा और विधान सभा) में बिहार में लालू यादव के पैरों तले की राजनीतिक जमीन खिसक गयी। कांग्रेस की असली मंशा भी यही थी। उस समय बिहार में लालू यादव मिट्टी के मोल हो गए थे। लेकिन अभी भी पार्लियामेंट के अन्दर और बाहर वे कांग्रेस और सोनिया गाँधी का स्तुति गान करते नज़र आते है ।
अब इसी तरह से उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव और मौजूदा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति होने का मामला भी है। यह मामला पिछले कुछ सालों से सीबीआई ने लटका रखा है। देश में नाभिकीय ऊर्जा के मुद्दे पर जब वामपंथी दलों ने यूंपीए का साथ छोड़ने का ऐलान किया था तब केंद्र की सरकार ने मुलायम सिंह को सीबीआई का डर दिखाकर यूपीए के पक्ष में मतदान करने को मजबूर किया था। हालाँकि आय से अधिक संपत्ति के मामले में मुलायम सिंह यादव का मामला भी सीबीआई और सुप्रीम कोर्ट के बीच अभी ऐसे मुकाम पर लटका कर रखा गया है ,जहाँ उसका वक्त जरूरत पड़ने पर केंद्र सरकार अपने हिसाब से आगे भी लाभ लेती रहे।
मौजूदा समय में भी आलोक वर्मा के बयान और कई अधिकारियों की बयान से यह बात लोगों के सामने कई बार आई कि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के ऊपर मुकदमे और गिरफ्तारी और सीबीआई की कार्यवाही सीधे-सीधे डरपोक साहिब के इशारे पर ही हुई।
सीबीआई की मजबूरी हम इस तरह भी समझ सकते हैं कि एक बड़े आदमी के यहां चोरी हुई और चोरी का शक एक बड़े थाने के एक बहुत बड़े कोतवाल के ऊपर गया । अब नियम के मुताबिक उस कोतवाल ने एक जांच कमेटी बनाई जिसमें उसने कुछ जूनियर अफसरों को रखा , और खुद के खिलाफ दर्ज मुकदमे की जांच करने के आदेश दिए। और उस जांच की सारी देख रेख भी उस कोतवाल ने अपने ही पास रखी । और जब रिपोर्ट आई तो पता चला कि कोतवाल साहब निर्दोष है। और चोरी हुई सामान खुद-ब-खुद घर से भाग गई।या उन सामानों का घर से मन भर गया था। वह सामान घर में रहने नहीं चाहती थी । फिर कोतवाल ने हर जगह से चोरी करनी शुरू कर दी। और वह जब जब चोरी करता और उसके खिलाफ शिकायत जाती तो वह वही कमेटी बना देता ।और कमेटी डरा धमका कर लोगों को चुप करा देती ,और कोतवाल को बाइज्जत बरी कर देती थी।
यही हाल सीबीआई का भी है जब उससे खुद सीबीआई के बॉस के ऊपर चोरी का इल्जाम लगेगा, या बॉस के दोस्तों के ऊपर चोरी का इल्जाम लगेगा और उसकी जांच सीबीआई को दी जाएगी तो जांच का फैसला वही आएगा जो कोतवाल के ऊपर लगे चोरी के मामले में आया था। कोई भी संस्था या कोई भी अधिकारी अपने ही बॉस के खिलाफ रिपोर्ट बनाकर के बॉस को क्यों देगा। यह बात सोचने वाली है। जब सीबीआई प्रधानमंत्री के सीधे-सीधे कंट्रोल में आती है , तब सीबीआई तो वही करेगी जो प्रधानमंत्री चाहेंगे ।
अन्ना ने अपने लोकपाल के आंदोलन में सीबीआई को एक स्वतंत्र संस्था बनाने का भी मांग रखा था ।और यह उनके मुख्य बिंदुओं में से एक था ।
वैसे भी अब सीबीआई की विश्वसनीयता गिर गई है, जिसके चलते सीबीआई के कामकाज में राजनीतिक हस्तक्षेप हो रहा है और उसकी कार्यशैली पर प्रश्न चिन्ह लग गए हैं। यू.पी.ए. के कार्यकाल में भाजपा सीबीआई को कांग्रेस ब्यूरो ऑफ इन्वैस्टीगेशन कहती थी और कोयला घोटाले में 2013 में उसने इसे पिंजरे में बंद तोता कहा था। अब कांग्रेस इसे भाजपा ब्यूरो ऑफ इन्वैस्टीगेशन कह रही है। भाजपा के कर्नाटक के दिग्गज नेता येद्दियुरप्पा 2011 में खनन कम्पनियों से पैसा लेने के लिए दोषी पाए गए थे और अब सीबीआई द्वारा उन्हें दोषमुक्त कर दिया गया है।
क तरह से ये चोर-चोर मौसेरे भाई के खेल के रूप में नजर आ रहा है। दोनों पार्टियों ने राजनीतिक लाभ के लिए सीबीआई का उपयोग, दुरुपयोग और कुप्रयोग किया है। यू.पी.ए. सरकार के दौरान कांग्रेस ने कथित रूप से सीबीआई का भय दिखाकर बसपा की मायावती और सपा के मुलायम पर अंकुश लगाया और अब इसी तरह के आरोप मोदी और भाजपा पर लगाए जा रहे हैं कि वे अपने राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने के लिए सीबीआई का उपयोग कर रहे हैं।
सीबीआई कथित रूप से मायावती के विरुद्ध मामले पुन: खोलने के तरीके ढूंढ रही है क्योंकि वह मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में अलग से चुनाव लड़ी थी। सीबीआई प्रत्येक सरकार के दौरान उसकी धुन पर नाचती रही है। यह विरोधियों के साथ राजनीतिक हिसाब चुकता करने का माध्यम बना जिसके चलते भ्रष्टाचार को समाप्त करने की इसकी ईमानदारी और सत्यनिष्ठा पर गंभीर प्रश्न उठे और इस क्रम में घबराए राजनेताओं ने अपनी मनमर्जी करने के लिए सीबीआई को अधिकाधिक शक्तियां दीं।
सीबीआई ने भी अवसरवादी नीति अपनाई। वह सरकार के साथ रही और इसके अधिकारी
सेवानिवृत्ति के बाद के लाभों के लिए अपने राजनीतिक माई-बापों की सेवा करते रहे।
लोकतंत्र तभी बुराइयों का तिरस्कार कर सकता है, जब उन संस्थाओं की प्रामाणिकता हमेशा बुलंद रहे, जिन पर नैतिकता को स्थापित करने की जिम्मेदारी रहती है। वैसे हम गौर से देखें तो सीबीआई भी पुलिस ही है, मगर इसकी उपस्थिति इतनी बुलंद रही है कि खुद पुलिस वाले भी इसका नाम सुनते ही भय खाने लगते थे।
ऐसा तभी होता है, जब इसमें काम करने वाले लोग ही सत्य की परख में अपनी हस्ती तक दांव पर लगाने से पीछे नहीं हटते। लेकिन आज उसी सर्वोच्च जांच एजेंसी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है, जो बेहद चिंता का विषय है।
इसी तरह एक और केस जिसने भारतीय जनता पार्टी को सत्ता में लाने में और कांग्रेस को सत्ता से उखाड़ने में बेहद मदद की। वह केस था 2G घोटाला केस । जिसमे सीएजी से लेकर के देश के तमाम बड़े बड़े अर्थशास्त्री और तत्कालीन एक्सीडेंटल एक्टर्स ने बड़ी-बड़ी टिप्पणियां की और सीबीआई ने भी इसमें खूब रुचि दिखाई 2014 के बाद से । लेकिन अंत हुआ क्या ? सीबीआई की रिपोर्ट के आधार पर यह पता चलता है कि 2जी घोटाला दरअसल कोई घोटाला था ही नहीं।
2 जी केस में सीबीआई ने करीब 30 हजार पन्नों की चार्जशीट दाखिल की थी, जिसे कोर्ट ने फालूदा बनाकर उसके मुंह पर मार दिया। इससे देश की प्रीमियम जांच एजेंसी समझी जाने वाली सीबीआई की साख पर जो नया बट्टा लगा है वह उस सुप्रीम कोर्ट की उस टिप्पणी से भी बड़ा है जो कुछ बरस पहले सुप्रीम कोर्ट की ‘पिंजरे में बंद तोते’ वाली टिप्पणी से लगा था। यह एक बार फिर साबित हुआ कि सीबीआई का इस्तेमाल सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक मकसद के लिए होता है, और जब राजनीतिक मकसद पूरा हो जाता है तो उस केस में न तो राजनीतिक वर्ग की दिलचस्पी रहती है और न सीबीआई की।
और नतीजा वह होता है तो न्यायाधीश ओ पी सैनी ने अपने फैसले बिंदु संख्या 1812 पर लिखा है कि “शुरु में अभियोजन पक्ष यानी सीबीआई ने बड़े उत्साह और चुस्ती-फुर्ती के साथ इस केस में हिस्सा लिया। लेकिन जैसे जैसे केस आगे बढ़ा, अभियोजन अपने रवैये में काफी सतर्क नजर आने लगा, और हालत यह हो गई कि यह समझना ही मुश्किल हो गया कि आखिर अभियोजन इस केस में चाहता क्या है।”
टू-जी पर फैसले से एक और संस्था पर जो दाग लगा है वह है सी एंड ए जी यानी कैग। तत्कालीन सी एंड ए जी विनोद राय ने इस मामले में टिप्पणी की थी कि इसमें पौने दो लाख करोड़ का नुकसान हो सकता है। यानी नुकसान हुआ नहीं था, लेकिन हो सकता है। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि कोई अपनी कार दो लाख में बेचे और कोई कहे कि यह कार तो चार लाख में बिक सकती थी, इसलिए इसमें दो लाख रुपए का नुकसान हुआ है।
दुनिया के किसी भी हिस्से में नोशनल लॉस यानी संभावित नुकसान को भ्रष्टाचार की श्रेणी में नहीं रखा जाता। लेकिन इस मामले को भ्रष्टाचार का मामला मान लिया गया और केस को अदालत में भेज दिया गया। अदालत ने साफ कर दिया कि इसमें भ्रष्टाचार तो हुआ ही नहीं। ऐसे में न सिर्फ कार्यपालिका बल्कि कैग नाम की संस्था पर भी सवालिया निशान खड़े हो गए और उसकी विश्वसनीयता संदेहास्पद हो गई। जिस नोशनल लॉस की थ्योरी को भ्रष्टाचार मानकर सीबीआई कोर्ट पहुंची, वहां से वह अपना सा मुंह लेकर लौट गई।
और अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए अपने आकाओं की आज्ञा का पालन करने के लिए अपने व्यापारिक मित्रों का पेट भरने के लिए जिस तरह से साहेब सीबीआई को अपने आकाओं के मन मर्जी के हिसाब से घुमा रहे हैं ,और नचा रहे हैं ,उससे सीबीआई की हालत देश की नजरों में सेठ के यहां चोरी की जांच करने वाले उन चार जूनियर अफसरों के बराबर ही है । या यह कहे की उनसे भी कम है। क्योंकि यह ना सिर्फ अपने आका को बचा रहे हैं। बल्कि अपने आका के आदेशानुसार अपने आका के वैचारिक एवं राजनीतिक विरोधियों को हर जगह से फसाने की कोशिश कर रहे हैं ।
जिसमें वह फर्जी मुकदमे, फर्जी आरोप, फर्जी बयान ,और मनगढ़ंत फाइलें लाकर सिर्फ अपने आका की इच्छा को पूरा करने की कोशिश कर रहे हैं । सीबीआई के नाम के साथ पहले जो मजाक कांग्रेस ने किया था ,वह कुछ काम नहीं था । पहले ही अन्ना ने अपने आंदोलनों के माध्यम से जनता में यह बात पहुंचा दी थी सीबीआई सही से काम नहीं कर रही है। और सीबीआई खुद प्रधानमंत्री के कंट्रोल में आ रही है। लेकिन अब के समय में तो भारतीय जनता पार्टी ने अपने शासनकाल में कई कीर्तिमान तोड़ ही दिए।
पहले तो लोगों से यह बातें छुपा कर रखी गई कि सीबीआई प्रधानमंत्री के कंट्रोल में आती है । अब तो यह बातें लोगों को सामने चढ़ा बढ़ाकर बताई जा रही है कि सीबीआई प्रधानमंत्री के कंट्रोल में आ रही है ।क्योंकि जो भी प्रधानमंत्री के खिलाफ बयान दे रहा है ,या जो भी प्रधानमंत्री के खिलाफ मोर्चा और लंबी कर रहा है, जो भी कहीं से प्रधानमंत्री के वोट को काटने की ,या प्रधानमंत्री को हराने की कोशिश कर रहा है, उसे प्रधानमंत्री सीधे सीबीआई के हवाले कर देते हैं। और सीबीआई उनका निपटारा कर के डरपोक साहिब को रिपोर्ट करती करती है।
और डरपोक साहब या अपना सारा काम सीबीआई से सिर्फ इस थे करवाते हैं क्योंकि डरपोक साहब ने खुद इतनी हिम्मत नहीं है कि वह वैचारिक रूप से किसी और पार्टी को या किसी और अन्य विचारधारा को हरा सके ,या पीछे कर सकें। क्योंकि साहेब का सारा बिजनेस सिर्फ झूठ मक्कारी और बदजुबानी पर चल रहा है ।जितना चाहे उतना झूठ बोलो, जो जितना चाहे उसे मक्कारी करवा दीजिए। और जुबान तो इतनी खराब की, बैठे-बैठे देश के बड़े-बड़े नेताओं के नाना नानी तक पहुंचाते हैं।
यह हमें दिखाता है कि तोते को कंट्रोल करने वाला व्यक्ति मानसिक रूप से कितना बीमार है ।लेकिन जैसा कि मैंने पहले भी कहा अब फिर दोबारा दोहराता हूं कि डरपोक साहिब जी इस बार थोड़ा संभल कर रहिये, क्योंकि आपने अपने तोते को जहां भेजा है हाथ डालने के लिए, वहां से ऐसा ना हो कि आपका तोता पूरी तरह पोपट बनकर निकले । क्योंकि फिर वह पोपट ना आपके काम का बचेगा ,ना हमारे काम का , न किसी और के काम का बचेगा। टोटली यूजलेस और निकम्मा तोता बन जाएगा ।
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