सेना या आरएसएस
लगभग पिछले 90 सालों में किसी तरह घिसते हुए हाफ़ पैंट से फूल पैंट पर पहुंचने वाली जमात का सरदार आज उस हाफ पैंट वाली जमात को देश की सेना से ज्यादा "अनुशासित एवं बेहतर" बता रहा है ।इस बात से बेहद हंसी आती है।
इन हाफ पैंट वालों का बहादुरी से और दिलेरी से कहीं दूर दूर तक कोई नाता नहीं रहा है। इन हाफ पेंट वालों के पुराने सरदार पहले अंग्रेजों की चाटुकारिता करते थे ।
इनके कथित "वीर" जेल से छूटने के लिए अंग्रेजों को 22 बार माफी मांगते हुए पत्र लिखते हैं और आश्वासन दिलाते हैं कि "अगर अंग्रेजी हुकूमत उनको छोड़ देगी तो वह का जीवन अंग्रेजों के वफादार बने रहेंगे "।
इन हाफ पैंट वालों के दूसरे सरदार अंग्रेजों को लिखित रुप से आश्वासन देते हैं कि "वह बंगाल में भारत छोड़ो आंदोलन को हर हाल में कुचल कर रहेंगे"।
पिछले 90 सालों के इतिहास में इन हाफ पैंट वालों ने सिर्फ चाटुकारिता चुगलखोरी और पाखंड के दम पर अपना गुजर बसर किया है।
अब इन लोगों का इतना मन बढ़ गया है कि यह लोग खुद को सेना से भी बड़ा समझने लगे है। खैर गलतफहमी पालनी चाहिए कई बार यह अच्छा भी होता है । जैसे धीरूभाई अंबानी ने कहा था कि "सपने देखने चाहिए क्योंकि सपने किसी की जागीर नहीं होते" । लेकिन सपने देखने और मूर्खतापूर्ण गलतफहमी वाले ख्वाब देखने में बहुत अंतर होता है ।
मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि जितने भी हाफ पैंट वाले हैं इनमें से किसी को भी या सारे को अगर बॉर्डर पर खड़ा कर दिया जाए तो 1 घंटे के बाद ही इन लोगों की हाफ पैंट तक सही सलामत नहीं बचने वाली है । और यह लोग अपने आप को सेना से बड़ा बता रहे हैं ? अपने आप को सेना से ज्यादा अनुशासित बता रहे हैं?
सिर्फ डंडा लेकर हाफ़ चड्डी पहन कर और सुबह 10:00 मिनट की प्रार्थना करने से, दिनभर हिंदू-मुस्लिम करने से अनुशासन नहीं आता है ।
अनुशासन आता है 24 घंटे की पेट्रोलिंग करके दिन , 1 साल की कठोर ट्रेनिंग करके, जिम्मेदारी लेकर, रात भर जागकर ठंड में रात गुजार कर , और देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा लेकर ।
खैर यह बातें समझदारों के समझ में आने वाली हैं संघी और हाफ पैंट वाले इन चीजों से परे हैं ।
"हिंदू खतरे में है हिंदू खतरे में है" यह कहते-कहते इन हाफ पैंट वालों ने 90 साल गुजार दिए हैं ।
और हम अभी भी मूर्ख बनकर इन हाफ पैंट वालो की बातों में आ रहे हैं?
यह हमारी कायरता का ही नतीजा है कि एक आदमी मंच पर खड़े होकर सरेआम देश के सेना की बेइज्जती करता है । और कुछ निकम्मों की भीड़ को देश की सीमा से "श्रेष्ठ" बताता है ,देश की सेना से ज्यादा अनुशासित बताता है।
यह सब उसी जमात और उसी बिरादरी के लोग हैं जो बिरादरी आजकल " मेरा देश बदल रहा है " का नारा दे रही है ।
मेरे नए देश में यह हो रहा है कि लगातार तीन दिन से सेना के कैंप पर आतंकी हमले हो रहे हैं, इन 3 दिनों में 7 जवान शहीद हो चुके हैं। और
मेरे देश का कथित "चौकीदार" विदेशों में घूमकर रॉक कॉन्सर्ट कर रहा है , सेल्फी ले रहा है ।
आंखें उड़ वक़्त और भी ज्यादा शर्म से झुक जाती है , जब एक शहीद की बिकलांग पत्नी और उसका बेटा उत्पीड़न से परेशान होकर सार्वजनकि रूप से मुंडन करा लेते है, फिर भी एक के बदले 10 सर बोलने वालों के कान पे जू तक नही रेंगती। जू रेगेंगी भी कहां से, इनका सत्ता पाने का सपना पूरा हो गया । इनको किसी बात से क्या मतलब।
ज्यादा से ज्यादा ही है 1 साल और अपनी एड़िया रगड़ सकते हैं उसके बाद इन्हें कहां जाना है इनको अच्छे से मालूम है । यह इसीलिए इतना सब कुछ बनाया जा रहा है इतना सब कुछ दिखाया जा रहा है ।
आजकल तो न्यूज़ चैनल वाले भी हद करते हैं रहे हैं देश में "पहली बार " वाला जो शिगूफा चला है वह रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है। देश में और भी चीजें पहली बार हुई हैं। जैसे आजादी के बाद पहली बार इतनी ज्यादा संख्या में दलितों को मारा जा रहा है , पिछड़ों को मारा जा रहा है ।
देश में आजादी के बाद पहली बार सीमा पर बिना युद्ध के इतने ज्यादा जवान वीरगति को प्राप्त हो रहे हैं ।
और यह भी पहली बार हो रहा है कि हमारे प्रधानमंत्री उसी समय बेहद ही ढीठ तरीके से विदेशों में घूमते हुए सेल्फी ले रहे हैं।
सचमुच मेरा देश बदल रहा है और यह देश इन्हीं जैसे गंदी सोच को मुबारक हो जो खुद को सेना से बड़ा समझते हैं।
बृजेश यदुवंशी
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