न्यायपालिका के साथ अन्याय

अभी दो दिन पहले सुप्रीम कोर्ट के 4 सीनियर जजों ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस किया और प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने जो जो बातें बताई वह बेहद हैरान कर देने वाली थी ।एक बड़ी ही भयानक तस्वीर उस प्रेस कांफ्रेंस के बाद उभरकर आई। उन्होंने यहां तक कह डाला कि " अगर आज हम नहीं बोलते तो 20 साल बाद लोग यह न कहे कि इन जजों ने अपनी आत्मा भेज दी। देश का लोकतंत्र खतरे में है , न्यायपालिका की स्वायत्तता खतरे में है , सुप्रीम कोर्ट में सब कुछ सही नहीं चल रहा है , केस के मामले में जजों के रोस्टर मनमानी तरीके से बनाए जा रहे हैं।" 
यह सब क्या दर्शाता है ?और यह सब किसके इशारे पर हो रहा है ?
यह किसी को कहने की जरूरत नहीं है चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया दीपक मिश्रा के भाजपा और RSS से पुराने संबंध रहे हैं , यह बात जगजाहिर है।
सुप्रीम कोर्ट की प्रथा के अनुसार केस को लेकर जजों का एक रोस्टर बनता है , और उसी रोस्टर के अनुसार हर एक केस को जज के पास पहुंचाया जाता है। लेकिन चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने अपनी मनमानी तरीके से रोस्टर में बदलाव किया और किसी एक पक्ष को फायदा पहुंचाने के लिए केसों  को फेवरेट जज के पास पहुंचाया। जैसे सहारा बिरला डायरी में यह जिक्र आया कि "गुजरात cm को 12 करोड़ रुपए दिए गए " तो यह केस जस्टिस अरुण मिश्रा के पास भेज दिया गया , जिसे मिश्रा साहब ने पहली नजर में ही खारिज कर दिया।
अभी जस्टिस लोया हत्या केस भी जस्टिस अरुण मिश्रा के पास ही जाने वाला था ।
सुप्रीम कोर्ट के 4 जजों ने बहुत ही समय पर अपना यह फैसला लिया , और देश की जनता के सामने सुप्रीम कोर्ट की हालत बया की।
एक दिन बाद ही भाजपा के आईटी सेल द्वारा इन जजों को "देशद्रोही" "गद्दार " "कांग्रेस के नेता का दोस्त " और न जाने क्या-क्या बता दिया गया ।
और 10 दिन पहले ही यह भक्त उसी जस्टिस कुरियन की तारीफ कर रहे थे जिन्होंने तीन तलाक के मुद्दे पर फैसला दिया।  10 दिन में ही जस्टिस कुरियन इन भक्तों के लिए "देशभक्त" से "देशद्रोही" हो गए।
भाजपा अपनी it टीम द्वारा सबसे नीच स्तर पर आकर काम कर रही है  , जो साहिब के तलवे चाटते रहे वह "देश प्रेमी" और जो साहब का विरोध करें वह "राष्ट्रद्रोही" ।
और हम सब मूर्खों की तरह बैठ कर या देख रहे हैं  ।हम में से किसी ने यह पूछने यह सोचने की जहमत नहीं उठाई कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि सुप्रीम कोर्ट के 4 जजों को देश के सामने आना पड़ा ?
आखिर में दीपक मिश्रा को लिखे गए  पत्र का जवाब उन्होंने क्यों नहीं दिया?
जब 4 महीने पहले का एक पत्र मीडिया के सामने आया तो भी हम में से किसी की कोई जिम्मेदारी नहीं बनी। अब मामले की लीपापोती करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के बार एसोसिएशन सामने आ गया,  और सबसे पहला उदाहरण इसका यह है कि बार एसोसिएशन ने आते ही यह कहा कि " सरकार ने इस मामले में कोई दखल नहीं दिया इसलिए हम सरकार की तारीफ करते हैं"।
बार एसोसिएशन ने 7 सदस्यों की एक "डांस टीम " बनाई है इस "डांस टीम" का फैसला क्या होगा मैं अभी यहीं पर बता दे रहा हूं । जांच टीम में चारों जजों को जस्टिस कर्णन की तरह दोषी था बनाया जाएगा , और यह फैसला दिखाया जाएगा कि "जस्टिस दीपक मिश्रा ने बड़े ही विवेक से और राष्ट्रप्रेम के साथ अपने कार्य को पूरा किया है वह कहीं से किसी तरह दोषी नहीं होतें हैं हां यह चार जज बिल्कुल ही घूसखोर बेवकूफ और देश द्रोही है"
यह बातें बार एसोसिएशन के जांच टीम के रिजल्ट का हिस्सा होंगी ।
बीते दो-तीन सालो में कोर्ट को किस तरह गुमराह किया गया है? , किस तरह उसकी स्वतंत्रता भंग की गई है ? यह एक जांच का विषय है।
और सिर्फ कोर्ट ही क्यों अन्य दूसरी स्वतंत्र संस्थाएं भी मोदी सरकार के द्वारा प्रभावित की गई हैं
चुनाव आयोग , नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल जैसी संस्थाएं भी सरकार के इशारे पर काम कर रही हैं ।
चुनाव आयोग ने आंखों पर पट्टी बांधकर सीधे-सीधे ईवीएम पर इलेक्शन कराने का फैसला कर रखा है , जबकि अन्य सारे दल का विरोध करते रहे हैं।
वही एनजीटी जैसी संस्था ने जंतर मंतर पर यह कहते हुए प्रदर्शन से रोक लगा दिया कि इससे प्रदूषण बढ़ता है ।
मीडिया तो पहले ही खरीद ली गई है आजकल एक "ताल ठोकने " वाला एंकर कहीं और जा कर "कुश्ती" कर रहा है,  और  "नेशन वांट टू नो " वाला दूसरे चैनल के पत्रकार को "गुंडा" बताता है। और साहब के तलवे चाटने वाला "एनालिसिस" तो चल ही रहा है ।
आखिर में यह सब तक कब तक चलेगा?
हमारे देश में पिछले दो 3 सालों से ना तो संविधान और ना ही लोकतंत्र को महत्व दिया जा रहा है। सरकार के नेता आए दिन कहते हैं कि हम संविधान बदलने वाले हैं यह सब क्या दर्शा रहा है?
तानाशाही का एक नया रूप इस देश में देखने को मिल रहा है और हम सब बैठे खामोश यह सब नजारा देख रहे हैं।

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