ठिकाना नहीं मिलता
दुश्मनी निभाने का अब कोई बहाना नहीं मिलता
हमारे शरों को अब तरकश में ही ठिकाना नहीं मिलता
इन तीरों की तलाश तो असमान के पार है इलाही
जमींन पर हमारे मेयार का कहीं निशाना नहीं मिलता
हमारी सलाहियत का कही कोई पैमाना नहीं मिलता
बैठ के पी सके दमभर, ऐसा कोई मैखाना नहीं मिलता
जो तौबा करता हूँ , शराब आ जाती है बारिश बनके
अब मैकशी से बचने का कोई आशियाना नहीं मिलता
जो पी जाए शराब को , फिक्र सारी धुएं में उड़ा कर
बज़्म ए महफिल में ऐसा तो कोई दीवाना नहीं मिलता
जब जी चाहे मुझसे बोल लेना झूठ जी भरके तुम
तेरे सच झूठ तोलने का मेरे पास पैमाना नहीं मिलता
मिल जाएंगे रियाकारों के कई तहरीर अखबारों में
पर कलम का शमशीर से अब टकराना नहीं मिलता

Comments
Post a Comment