मुकम्मल हो गया

कुछ  इस तरह  फ़र्ज़ ए  इश्क में मुकम्मल  हो गया
वो  जितना  हँसती  रही  मैं  उतना  पागल हो गया

बस  उसको जमाने की नज़र ना  लग जाये इलाही
इसी खातिर मैं उसकी आँखों  का काजल हो गया

चाकू,छूरी,कटार की अब  बात क्या ही करे जनाब
बस उसने नज़र भर के देखा और मैं घायल हो गया

उसके कदमो की आहट को मैं महसूस करता रहूँ
खुदा इसी लिए मैं उसके  पैरों का पायल हो गया

कभी उनके सर का दुपट्टा तो कभी आँचल हो गया
वो बारिस बनके बरसती रही और मैं बादल हो गया

बस एक  दफा उनका  दीदार  क्या  हुआ ख्वाब में
अंगारो का बिस्तर भी मेरे के लिए मखमल हो गया


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