महताब कहें
जो तुम अगर सुनो तो हम भी कोई बात कहें
तुम कहो दिन तो दिन, जो कहो तो रात कहें
गर हो इज़ाज़त बेतकल्लुखी की दरमियाँ
फिर हम भी आज हशरत ए मुलाकात कहें
वादा ए आगोश के बदले बस एक छुवन
अब कैसे एक बूंदाबांदी को हम बरसात कहें
बस नज़रे मिलाना फिर वापस हटा लेना
तुम्ही कहो कैसे इस ज़ार को मुलाकात कहें
तुम ये जुल्फे बिखरावो तो हम बरसात कहें
माथे की बिंदिया को चमकता माहताब कहें
जो तुम काले लिबास में सामने आ जाओ
तो खुदा भी दिन को पूनम की रात कहे
अब तुम्हारी आँखों की मार से जो बच जाएं
तो फिर हम निगाहे मिलाके अपनी बात कहें
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