इस मुसाफिर को फिर कहां पाओगी।।

अपनी इन आंखो का  दरिया तुम कब तक संभालोगी।
मेरे जाने का गम जाना  तुम दुनिया से कैसे छुपाओगी।।
हाल ए दिल बताने को तुम्हारी आंखे खोजेंगी किसी को।
बहुत चाहोगी पर इस मुसाफिर को फिर कहां पाओगी।।

जो तुम्हारी ख्वाहिश हो  तो खुद को फना कर जाऊंगा।
जाते जाते भी बस तेरी सलामती की दुआ कर जाऊंगा।।
आसमान  किसी एक कोने तुझको  देख कर चमकूंगा।
तुम्हारी पायल में छमकुंगा,तुम्हारे इस कंगन में खनकुंगा।।
ये गमों  की  दौलत, ये तोहमत, ये वहसत, ये जलालत।
ये  चाहत, ये राहत, ये मसनद,  ये कुरवत, ये मोहब्बत।।
मैं ये सारा का सारा तन्हा तुम्हारे ही पास छोड़ जाऊंगा।
तुम्हारा कहा मानूंगा और ये चलती सांसे तोड़ जाऊंगा।।
हाल ए मिस्किन अपना तुम  फिर किसको  सुनाओगी।
जो खो गया है आसमां में,वो सितारा कहां से लाओगी।।
जो हर मोड़ साथ दे ऐसे हमसफर को कैसे भुलाओगी।
बहुत चाहोगी पर इस मुसाफिर को फिर कहां पाओगी।।

तुम्हारे हाथो की चूड़ियां फिर मेरे बिना कहां खनकेंगी।
किसके कांधे पे सर रख कर ये तुम्हारी आंखे बरसेंगी।।
किसका हाथ पकड़ कर तुम हर इम्तेहान पार करोगी।
कौन तुम्हारे साथ होगा किसे तुम इतना प्यार करोगी।।
वो कौन होगा जो तुम्हारे इन उलझे बालों को सवांरेगा।
तुम्हारे गुस्से, तुम्हारी बेरुखी को  अब कौन संभालेगा।।
किससे तुम रूठ के भी उसपर अपना हक समझोगी।
किससे देख कर मुस्कुराओगी,फिर किससे झगड़ोगी।।
जाना  एक  ना एक दिन मैं भी तुझसे दूर हो जाऊंगा।
सीसे की तरह छन से गिरूंगा,टूट कर चूर हो जाऊंगा।।
फिर अपना चेहरा किस नजर के आईने में दिखाओगी।
तुम किसकी आंखों में देख पहले की तरह शर्माओगी।।
लाख होंगे कहने वालो पर तुम अपना किसे बताओगी।
बहुत चाहोगी पर इस मुसाफिर को फिर कहां पाओगी।।

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