अपनी भी सुनाऊं मैं
गिले जितने भी है तुझसे,तू कहे तो वो सब बताऊं मैं।
थोड़ा ठहर अपने जख्मों के निशा तुझको दिखाऊं मैं।।
सारे गिले सारे शिकवे मैने तेरा सर माथे पर लगाया है।
अगर इजाजत हो तो आज कुछ अपनी भी सुनाऊं मैं।।
थोड़े अरमान थोड़ी हसरत और बहुत सारे सपने थे।
थे चांद तारे मेरी गजलों में,जब तक तुम मेरे अपने थे।।
महकती रहती थी तुम्हारी खबर से ये गलियां सारी।
तुम्हारा ही अक्स दिखाती थी बाग की कालिया सारी।।
हर हवा हर मौसम बस तुम्हारा ही मंजर होता था।
तुम्हारे नूर का मेरी भी आंखो में एक समुंदर होता था।।
जब तुम थी तो इस गुलिस्तां की कलियां हसती थी।
छत हसता था, दर हसता था, और गलियां हसती थी।।
हर मुश्किल से लड़ जाता जब हाथो में तेरा हाथ था।
हर राह आसान थी और हर मोड़ पर तुम्हारा साथ था।।
वक्त बे वक्त इन आंखो में बस तुम्हारा ही साया था।
पर कौन जानता था जाना, की तू मेरा नही पराया था।।
टूटे सपने बिखरे खाबों की फिर एक माला बनाऊं मैं।
अगर इजाजत हो तो आज कुछ अपनी भी सुनाऊं मैं।।
जब से गई हो जाना सब कुछ बस बेढंग लगता है।
नक्श था जिसमे तू, वो ताज भी अब बदरंग लगता है।।
कब ख़ाब टूटे,कब रिश्ते टूटे, इसकी भी खबर नहीं।
दफ्न है,पर शहरे खामोशा में मिरे नाम की कबर नही।।
शीशे से वो सारे वादे तुम्हारे,अब छन से टूट गए है।
ये आसमां के चांद तारे भी मेरी गजलों से रूठ गए है।।
ये कलम चलती तो है पर अब वो रश्क नही आता।
आंसू सुख गए मेरे,अब रोऊं भी तो अश्क नही आता।।
हवा ने चलना और गुलों ने खिलना छोड़ दिया है।
उन्हे खबर है जाना,तुमने मुझसे मिलना छोड़ दिया है।।
ये तुम्ही बताओ तुम्हारे बिना मैं कब पूरा रहता हूं।
महफिल होती है, जाम होता है, पर मैं अधूरा रहता हू।।
मिरे गिल ए शिकवा का तुझको एक जाम पिलाऊं मैं।
अगर इजाजत हो तो आज कुछ अपनी भी सुनाऊं मैं।।
क्या यही तक लिखी थी खुदा ने तेरी मेरी कहानी।
क्या सारी कसमें सारी रस्में बस यही तक थी निभानी।।
दरिया भी अब मुझको सेहरा का समुंदर लगता है।
ये बागवां,ये दरख़्त,मुझे सब तेरे बिना बंजर लगता है।।
सुबह का भूला पंछी हूं, मुझे शाम को घर आना है।
वो बातें, वो शामें, वो रातें मुझको वापस सब लाना है।।
हां घोंसले की आस में बैठा मैं एक बेबस परिंदा हूं।
तू लौट आयेगी एक दिन बस इसी उम्मीद में जिंदा हूं।।
दोपहर की कड़ी धूप में छांव का शजर चाहता हू।
मैं बंजारा तुम्हारे आंचल तले आखिरी घर चाहता हू।।
तू जो आ जाए तो ये सारी खुशियां मेरी हो जाए।
शिकस्त फतेह से परे ये सारी दुनियां मेरी हो जाए।।
जो तू दिल मेरे पे हाथ रख दे तो फिर से उठ जाऊं मैं।
कुछ तेरी सुनूं और तुझको कुछ अपनी भी सुनाऊं मैं।।
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