जिस्म से जान निकल जाए

जिसे जिंदगी समझ कर थामे वो कजा निकल जाए
तमन्ना  है जिस्म  से कुछ इसी तरह जां निकल जाए

हमने  तो  अपना  सब  कुछ बाजी पर लगाया ही है
अब मेरा कसूर नहीं जो पाशे ही खफा निकल जाए

ये  उम्मीद ए गुल मुकम्मल हो भी तो भला कैसे  हो
जब गुलिस्तां,माली सब के सब बेवफा निकल जाए

मेरे खुदा अब  तो बस इतना सा इंतजाम कर दे मेरा
जिस बिस्तर पे मैं सोऊं, वो मेरी चिता निकल जाए

बस यही सोचके मैने तेरी बद्दुआएं संभाल के रखी है
जाने कौन सा जहर कल कौन सी दवा निकल जाए

इनको मुझपे बरसाने से पहले जरा सोच ले इलाही
जाने कौन पत्थर किस मंदर का खुदा निकल जाए

ये मेरे महबूब का मैखाना है,जरा संभल कर पीना रिंद 
जाने कौन सा जहर किस जाम में घुला निकल जाते

हम दुश्मनी भी जरा सोच समझ कर करते है गमीन 
जाने कौन सा बैरी मेरे महबूब का सगा निकल जाए


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