नेताजी
हर किसी के साथ सामजंस्य रखने की महारत, सबका हमराज बन जाने का हुनर, मानवता को राजनीतिक लाभ हानि से परे रखने का सामर्थ्य, सिद्धांतो के लिए किसी भी शक्ति से लड़ने का साहस, आदर्शो पर हर हाल में चलने की जिद, किसी को भी नाराज ना होने देने की कला, खुलेआम सबकुछ कह देने का बेबाकपन, सबको अपना मान लेने की मासूमियत, राजनीतिक विचारो से परे अपना बनाने की अदा, मिलनसार अक्खड़पन, चरखा दाव सी राजनीति पैतरेबाजी, संविधान के आदर्शों के साथ किसी मूल्य पर भी समझौता नही करने की कसम, और सब कुछ समय से पहले भांपने की महारत, अगर ये सब मिलाकर कुछ सबसे बेहतर बनाया जा सकता था , तो वो नेताजी के रूप में बना दिया गया।
"स्वागत और सम्मान जितना बड़ा होता है, जिम्मेदारी भी उतनी ही बढ़ जाती है"
ये बात वही कह सकता है जिसे इस बात का पूरा पूरा एहसास हो कि उसके ऊपर लोगो कितनी बड़ी जिम्मेदारी है। और कितने लोगों की उम्मीदें कितने लोगों का भरोसा बस उस आदमी के होने से है जिस सैफई गांव में नेताजी को एक बार विधायक पद दिया।उस सैफई गांव को नेता जी ने ताउम्र अपने साथ अपने सर का ताज बना कर रखा , और जीवन की अंतिम यात्रा भी उसी गांव में जाकर खत्म की।
पिछड़ों और दलितों को समानता का अधिकार दिलाने वाला वह मसीहा, जिसने खाटी राजनीति और जमीनी स्तर की पकड़ इतनी मजबूत रखी की उसके अंतिम समय में दलगत राजनीति की सारी सीमाएं खत्म हो गई।क्या करिश्मा था उस नेता का यह जान पाना बड़ा ही मुश्किल है। जो धूर विरोधी रहे वह भी उस नेता के जाने पर फूट फूट कर रो रहे हैं।
हर किसी के मुंह से बस यही सुनने को मिल रहा है कि नेताजी से राजनीतिक विचार की समानता तो नहीं थी लेकिन उनसे व्यक्तिगत संबंध बड़े मधुर थे,और उन्होंने मुझे अपना आशीर्वाद दिया, उन्होंने मुझे अपना मार्गदर्शन दिया । यह बात देश के प्रधानमंत्री से लेकर विरोधी पार्टियों के छोटे-छोटे कार्यकर्ता तक कह रहे हैं।
और यही हुनर था शायद नेताजी का। जो ना केवल अपने पार्टी के कार्यकर्ताओं को पहचानते थे बल्कि दूसरी पार्टी के कार्यकर्ताओं को भी सीधा नाम से बुला देते थे।
वह कभी किसी को नाराज नहीं करते थे। और जो कोई उनसे नाराज हो भी जाता था तब वह उसको अपना बना लेते थे । वो व्यक्तित्व हर किसी से अलग और हर किसी से महान रहा है । समाजवाद की मूल परिभाषा "एक सबके लिए और सब एक के लिए" को जिस आदमी ने पूरी तरह से जिया वह थे नेताजी।
किसी गरीब का पेट निवाले से भरते देखा है
सबको छाया देके खुद धूप मे जलते देखा है
हाथ थाम एक विरासत आगे बढ़ते देखा है
हा मैंने नेताजी को सबके लिए लड़ते देखा है
किसी की आँख अंशुओ से ना भिगोने दिया
किसी को भी दुख से कभी ना रोने दिया
जो सामने आया सबको बढ़कर गले लगाया
बेगाने थे कभी जितने सबको अपना बनाया
धूप हो या घाम हर पल बस ये करते देखा है
हा मैंने नेताजी को सबके लिए लड़ते देखा है
दिल मे सबके मोहब्बत के रंग बो जाते थे
सभी को अपना बना कर सबके हो जाते थे
अपनी मिट्टी अपना देश जिसको सबसे न्यारा था
भारत माँ का बेटा वो,उस माँ को सबसे प्यारा था
संघर्षो की राह पकड़ उसी पर चलते देखा है
हा मैंने नेताजी को सबके लिए लड़ते देखा है
राजनीतिक विचारों की स्वीकार्यता से परे मुझे आज भी याद है जब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई का देहांत हुआ था। तब 78 साल के मुलायम सिंह यादव उनकी अंतिम यात्रा में उनके साथ 8 किलोमीटर पैदल चले थे। वो सम्मान और वैसी स्वीकार्यता अब शायद ही देखने को मिलेगी।
रिश्तो का वह जादूगर, राजनीति के खेल का सबसे बड़ा बाजीगर, गरीबों के लिए दहाड़ने वाला वो शेर अब चीर निद्रा में सो गया। और साथ ही सो गई समाजवाद की सबसे बड़ी लहर। वह लहर जो आज अपने समुंदर में जा कर मिल गई । आज एक शिष्य 54 सालों बाद अपने गुरु से मिला होगा । आज लोहिया अपने शिष्य को पाकर इतरा रहे होंगे।
"राजनिति में दाँव पेंच जरूरी होते है पर संबिधान की मूल्यों के साथ छेड़छाड़ करने का अधिकार किसी को नही है"
"नेताजी"
Comments
Post a Comment