बेवफा हमसफ़र
चेहरे पर मुस्कुराहट और हाथो में खंजर है
दुनियां से बतलाता है कि वो मेरा हमसफर है
उसकी फिदरत के जर्रे जर्रे से वाकिफ है हम
और वो समझती है कि हम उससे बेखबर है
जिस जगह पर सरेआम है उनके सारे किस्से
उसी शहर में हमारा भी एक छोटा सा घर है
चुप हूँ तो ये ना समझ लेना कि खबर नही है
खामोशी ओढ़ी की तुम्हारी रुसवाई का डर है
सोचता हूँ कि कभी सरेआम कर दूं तुझको मै
पर देखा की तुझमें तो बेहयाई का भी हुनर है
एक से मिलना और दूसरे पर आंखे जमाना
ये तुम्हारा प्यार है या गाँव का कोई लंगर है
अब कैसे रोके तुम्हे सरेआम बेहयाई करने से
जिल्लत रुसवाई लानत सब तुमपे बेअसर है
तारीफ लिखने वाली आज नाम नही लिखती
मेरी कलम को भी तुमसे नफरत इस कदर है
Comments
Post a Comment