कभी जो कहो तो
कभी जो कहो तो आसमा में कुछ चाँद तारे भी बना दूंगा
ये जहा क्या मैं तो फरिश्ते भी तुम्हारी खिदमत में लगा दूंगा
वो कलियाँ जो इन परियों और हूरों का ख्वाब हुआ करती है
फलक से तोड़ कर उन्हें मैं तुम्हारे इन कदमो में सजा दूंगा
तुम किसी दवात सी बन जाना मैं खाली किताब बन जाऊंगा
तुम खुशियां हज़ार बना जाना मैं दर्द बेहिसाब बन जाऊंगा
तुम बस हँस देना उस दर्द में भी मैं फूल सा खिलता जाऊंगा
तुम ग़ज़ल बन जाना मैं अपनी किताबों में लिखता जाऊंगा
तुम्हारी एक नज़र की खातिर मैं अपना खुदा भी गवां दूंगा
कभी जो कहो तो आसमा में कुछ चाँद तारे भी बना दूंगा
जो तुम हसीन शाम हो तो मैं आसमान की रात बन जाऊंगा
जो तुम्हारे लबो पे हर वक्त रहे बस वही मैं बात बन जाऊंगा
तुम वो बात गुनगुनाती रहना मैं दीवानों सा सुनता जाऊंगा
ख्वाब तुम देखना मैं उन सबको हकीकत में बुनता जाऊंगा
तुम्हारी एक एक ख्वाहिश पर मैं हज़ारो खुशिया लुटा दूंगा
कभी जो कहो तो आसमा में कुछ चाँद तारे भी बना दूंगा
तुम किसी पाक कलमा सी हो, मैं दामन का दाग बन जाऊंगा
तुम दुआ मांगो, पूरा करने को मैं तारे का टूटा भाग बन जाऊंगा
एक शायरी लिखा ह तुम पर, पढ़ कर उसे तुम गुनगुना देना
मेरे कानो के पास लाकर अपना कँगना तुम खनखना देना
जितने ग़म की लकीरे तुम्हारे हाथों में है सबको मिटा दूंगा
कभी जो कहो तो आसमा में कुछ चाँद तारे भी बना दूंगा
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