इंकलाब
नकारेपन की सूनी सड़को पर अब हल्लाबोल से इंकलाब होगा।
तेरी चोरी चकारी सारी बेमानी के पाई पाई का अब हिसाब होगा।
ये दरबारी महफिलें तेरा ये ताज बस कुछ दिन के ही मेहमां है।
अब गूंज उठी आवाजे क्रांति की अब गर्दिश में तेरा माहताब होगा।
मेरी मिट्टी के जर्रे जर्रे से खिलाफत का आफताब निकलता है
आलमगीरो, बेईमानो,तानाशाहों का भरपूर जवाब निकलता है
मेरी फिदरत ही नही जो उतारू मैं खूबसूरती खाली पड़े पन्नो पर
मैं मोहब्बत भी लिखता हूँ तो मेरीकलम से इंकलाब निकलता है
तेरी आँधिया तेरे तूफान इस जुनूनी एलान को रोक न पाएंगे
जिसपे बैठा तू इतराता है उस तख्त के पाए जरूर डगमगाएँगे
तेरी मनमानी के दिन पूरे होंगे,होगा पूरा तेरी नवाबी का करार
सरदारभगत सिंह के वंशज हम भूरे अंग्रेजो को मार भगाएंगे
तेरी सारी बाते हमे याद दिलाती है कुछ तानाशाहों की
कुछ ढोंगी गद्दारो की तो कुछ तुम्हारे गोरे आकाओ की
मत दिखाना तो आईना मुल्क से वफादारी का यूँ सरेआम
इनमे नज़र आती है हमे करतूत तुम्हारे सारे दादाओ की
इस मुल्क से मुहब्बत तो मेरे खून के कतरे कतरे में बहती है
मुस्कुराते लबो पर हिंदुस्तान तो दिलो में भारत माँ रहती है
तेरी नाकामी तेरी तानशाही वाले किले अब सारे ढह जाएंगे
आने वाली नश्ले तेरी बर्बादी की कहानी अभी से लिखती है
वतन की मिट्टी को अपने खून से सींचा है मेरे बुजुर्गों ने
अब आज़ादी मोहब्बत को ढक रखा है तेरे घमंडी दुर्गों ने
इंकलाब की मशाल ढहा देगी जला देगी तेरे महलो को
टूटेगा वो ढोंग का तिलिस्म जिसे बनाया था खुद गर्जो ने
Comments
Post a Comment