बेटियों का नर्क

कर रहा जो राजतंत्र ,ये नियति के विरुद्ध है
मर रहीं है बेटियां, सत्ता स्वयं में मंत्रमुग्ध है

संघर्ष ले रहा अंगड़ाइयां,अब प्रण ये विशुद्ध है

छीड़ छीड़ कर दिया, कराह रहा लोकतंत्र है
ढोंग पाले चल रहा , नियति का ये अशुद्ध है
संघर्ष ले रहा अंगड़ाइयां,अब प्रण ये विशुद्ध है


मिटा दिया सूर्य की लालिमा, जुल्म की रात से
जला दिया बेटी को तूने खुद अपने ही हाथ से
सिसक रही है माँ तो बिलख रहा एक बाप है
रक्षक के रूप में खड़ा तू आस्तीन का सांप है
न्याय पथ के लिए है लड़ रहा,तू बना अवरुद्ध है
संघर्ष ले रहा अंगड़ाइयां,अब प्रण ये विशुद्ध है


तलवार का जोर कही गोली का खौंफ दिखा रहा
बेटी को तार तार करता खून के आंशू है रुला रहा
नष्ट है अश्मिता तो मान होता नारी का खंड खंड
जुल्म की पराकाष्ठा पार कर अब बातें बना रहा  
सिसकती बिलखती मर रही अबला अब क्षुब्ध है
संघर्ष ले रहा अंगड़ाइयां,अब प्रण ये विशुद्ध है


अंधकार जो पालता वो क्या प्रकाश दिखायेगा
भक्षक का पहरेदार जो वो क्या न्याय दिलाएगा
क्षत विछत लाशें देखकर यमराज भी है रो रहा
अंधेरे का नुमाइंदा जो वो क्या मशाल जलाएगा
हत्यारा पलता वो गोद मे दुराचारी उससे सम्बृद्ध है
संघर्ष ले रहा अंगड़ाइयां,अब प्रण ये विशुद्ध है


अब खुद लड़ो बेंटियो ,नाश करो हवाशियो का
लक्ष्मीबाई चेनम्मा की तरह ये तुम्हारा युद्ध है
संघर्ष ले रहा अंगड़ाइयां,अब प्रण ये विशुद्ध है

Comments

Popular Posts