राजनीति के खेल के सबसे धुरंधर खिलाड़ी। जिसके दावपेच और समीकरण के आगे किसी की नही चली। वो राजनेता जिसने राजनीति के सभी मोहरों को जब चाहा जैसे चाहा वैसे चला। वो पहलवान जो न तो अखाड़े में चित्त हुआ और न ही कभी राजनीति में चित्त हुआ। रुतबे और रुबाब का वो व्यक्तित्व जिससे आंखे मिलाने मे विरोधी भी अपना सम्मान समझे। वो नेता जो कब क्या दाव चलेगा इसका अंदाजा राजनीति के बड़े बड़े चाणक्य भी नही लगा पाए। नन्हे नेपोलियन का वो संघर्ष जिसको समझने की हैसियत किसी मे नही।वो मुलायम ही है जिन्होंने यूपी को कांग्रेस के लिए बुरा सपने जैसे बना दिया। 

यूपी के इटावा जिले के सैफई का एक  लड़का एक बार स्टेज पर चढ़ कर एक पुलिस इंस्पेक्टर को पटक दिया। वजह थी कि वहा कवि सम्मेलन चल रहा था और वो पुलिस वाला कवि को उस वक़्त के सरकार पर कटाक्ष करने वाली कविता पढ़ने नही दे रहा था। वो लड़का जो अनाजमंडी अनाज बेचने जा रहा था और सीमा पर चुंगी मांगे जाने पर कसम खाता है कि वो किसानो पर लगाये जाने वाले एक चुंगी को एक न एक दिन जरूर खत्म कर देगा। और जब वो मंत्री बनता है तो 24 घण्टे के भीतर इसको खत्म कर देता है। एक ऐसा नेता जिसने देश के असली हीरो किसानों और जवानों के दर्द को समझा । जब मुख्यमंत्री बना तो सहकारिता सहित कई नई व्यवस्था लेकर किसानों को राहत पहुचाई। जब वो देश का रक्षामंत्री बना तो सीमा पर शहीद होने वाले हर जवान के पार्थिव को भारत सरकार के खर्चे पर उसके घर तक पहुचाने की व्यवस्था बनाई। 

एक ऐसा नेता जिसके जैसे कठोर फैसले आज तक  लेने की किसी नेता में हिम्मत नही हुई।और एक ऐसा नेता जिसने गरीबो और किसानों के अधिकारों की रक्षा और जरूरतों पूर्ति एक अभिवावक की तरह से किया।  एक ऐसा नेता जिसके भारत और भारतीयता की रक्षा को जाती धर्म से भी ऊपर रखा। एक ऐसा नेता जिसने विश्व पटल पर देश की इज़्ज़त और देश के लोगो का देश के संबिधान में विश्वास रखने के लिए अपनी खुद के सार्वजिनक छवि की भी परवाह नही किया। एक ऐसा नेता जिसने ताकतवर को उसके मुंह पर भी गलत बोलने की परंपरा शुरू किया। एक ऐसा नेता जो इतना रुतबा सुर रुआब रखता है कि आज भी कोई भी नेता उनके सम्मान में खुद का सर झुकने से नही रोक पाते। 

एक ऐसे नेता जिसने देशहित को सबसे ऊपर रखा। जब 2002 में  देश के ग्यारहवे राष्ट्रपति का चुनाव होना था तब देश के हीरो एपीजे अब्दुल कलाम को राष्ट्रपति बनाने के लिए विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी को समर्थन दिया और इनको राष्ट्रपति बनवाया। धरतीपुत्र के नाम से पुकारे जाने वाले इस नेता ने तमाम विरोधों के बाद भी देशहित में अपने सिद्धांतों से भी ऊपर उठ कर भारत का अमेरिका के साथ परमाणु संधि का समर्थन किया और सरकार के गिरने से बचाया। एक ऐसा नेता जब वो पहला चुनाव लड़ा तो जीत गया। और जीतने पर जश्न की रात उसके ऊपर गोलिया चला कर उसे मारने की कोसिस की गई। शायद उसी रात उन गोलियों की तड़तड़ाहट ने नेताजी के सीने में इतनी आग भर दिया कि उनके जैसे राजनितिक दावपेच और संघर्ष आजतक कोई नही कर पाया। 

धरतीपुत्र मुलायम सिंह यादव व नेता बने जिसने गरीबी देखी, जिसने भूख देखी, वो नेता जो भूख के वजह से खाली पेट सोया भी और गरीबी ने  उसका बचपन भी छीना। संघर्षो में पलने वाले इस नेता ने कभी भी चुनौतियों से हार नही मानी। गरीबी और मजबूरी ने जब भी सपने देखने से मना किया , मुलायम सिंह यादव ने उसे मात देकर उस सपने को पूरा कर दिया। पहलवानी का शौक रखने वाले और अखाड़े में अपने से दोगुने आकर के बड़े बड़े पहलवानो को धूल चटाने वाले मुलायम सिंह जी राजनीति में आने से पहले पेशे से एक अध्यापक थे।  

गरीबो के ऊपर हो रहे शोषण से वो शुरू से व्यथित रहे। उन्होंने सत्ता आने पर हर संभव सिर्फ यही प्रयास किया कि किसी भी तरह से देश के रक्षको और देश के अन्नदाताओं की जरूरतें पूरी कर सकते। किसानों को फसलों की तबाही पर मुआवजा देना, फसलों के न्यूनतम दाम तय कर देना। खराब फसल पर किसानों की कर्जमाफी , फसलों का बीमा, गन्ना मिलो की व्यवस्था का सही करना, भुगतान की सीमा तय करना, छात्रों को पढ़ाई के लिए उत्साहित करना,कन्यायों के पढ़ने पर प्रोत्साहन राशि देना, नौकरी की समुचित व्यवस्था देना और जब तक नौकरी ने मिले तब तक बेरोजगारी भत्ता देना। ये मुलायम सिंह जी के कुछ ऐसे कदम थे जो इसके पहले न किसी ने लिया था सुर न ही किसी ने सोचा था। ऐसे कदमो से नेता जी ये दिखाया कि वो किस तरह की राजनीति करने का इरादा रखते है।

आज़ादी के बाद से ही देश की राजनीति सही पटरी पर नही थी। न हो कोई मजबूत विपक्ष था और न ही कोई मजबूत मुद्दा। उस वक़्त सारे मुद्दे धर्म और उसके तानेबाने के आसपास हो घूम रहे थे। यदा कदा संसद में अटल जी की आवाज सुनाई देती थी। लेकिन इसके बाद देश के सामाजिक ताने बाने के मुद्दे को उठाते हुए , लोहिया जी ने अपने समाजवादी सिद्धान्त की दहाड़ से सरकार को अपने आगे विवश कर दिया। लोहिया जी जब संसद में बोलते थे तब किसी की हिम्मत नही होती कि उनके सवालो का कोई जवाब निकाल सके। 

लोहिया जी ने सरकार विरोधी अपने तेवरों के साथ देश मे समाजवाद की क्रांति ला दी। और उसी क्रांति की हवा के साथ चल पड़े मुलायम सिंह यादव। अपने गुरु नत्थु सिंह जी के आदेश पर मुलायम सिंह जी जसवंतनगर से चुनाव लड़ते हुए राजनीति में कूद पड़े। मुलायम सिंह जी के विचार और उनकी सक्रियता की तारीफ कई मौकों पर खुद लोहिया जी ने भी किया। वो उन्हें नन्हे नेपोलियन के नाम से भी पुकारने लगे।  

नेताजी ने धार्मिक मुद्दों और घोटालो के मुद्दों पर चलने वाली देश की राजनीति के रुख को मोड़ा , और देश की राजनीति को किसानों , गरीबो, पिछडो, दलितों , बेरोजगारों और छात्रों के मुद्दों से जोड़ दिया। उन्होंने देश के चुनावों और राजनीति में किसानों और गरीबो की समस्याओ को डालने पर सबको मजबूर कर दिया। उन्होंने ये दिखाया कि देश के असली मुद्दे किसानों की सुरक्षा है, गरीबो की दो वक्त की रोटी है, रोजगार है  शिक्षा है। उन्होंने किसानों के लिए संगठन बनाये, गरीबो के लिए संगठन बनाये और उन्हें देश के राजनीति की मुख्यधारा से जोड़ दिया। 

छात्रों का राजनीति से संबंध के मामले में नेताजी ने सरदार भगत सिंह की सोच का पुरजोर समर्थन किया।  गूंगे बहरे और सरकार के ग़ुलाम हो चुके छात्रसंघो को हटाने के लिए समाजवादी विचारधारा वाले संघर्षशील छात्रों को छात्र राजनीति से जोड़ा।लोहियावाहिनी के झंडे तले और फिर छात्रसभा के जरिये युवाओ और छात्रों को राजनीति में उतारा।  और देश की दशा और दिशा तय करने वाली राजनिति की शिक्षा छात्रों को देना शुरू किया। यही छात्र शक्ति आज बड़े स्तर पर देश के  राजनीतिक भविष्य को तय कर रही है।  छात्रशक्ति और छात्रान्दोलन को रीढ़ देने का काम नेता जी ने किया। 

नेताजी ने पिछडो और दलितों की आवाज को लोकमंचों पर से उठाना शुरू किया। वो पिछडो की आवाज बनते चले गए। अभी जहा देश के सत्ता कर रुख कथित तौर पर बड़े लोग तय करते थे, उसे नेताजी ने पिछडो और दलितों के विचार और समस्याओ से जोड़ा। नेता जी पिछडो का चेहरा बनते चले गए और यही से उनको " नेताजी" की उपाधि मिली। जो सुभाषचंद्र बोस जी के नाम के साथ भी जुड़ा हुआ था। पिछडो के लिए संघर्ष, आंदोलन और लगतार प्रयासों ने उन्हें "मंत्रीजी" से कब "नेताजी" बना दिया ये लोगो को पता भी नही चला।

एक पहलवान से नेताजी बनने तक के सफर में बहुत कुछ कुर्बान करने वाले नेता जी सबसे ज्यादा अपने बच्चे अखिलेश यादव के बालपन के सुख को कुर्बान किया। लोगो की जनसेवा में उन्होंने अपने जीवन को दांव पर लगाया।  लोकतांत्रिक मोर्चा के उत्तर-प्रदेश ईकाई के अध्यक्ष और विधान-परिषद् में विपक्ष के नेता मुलायम सिंह यादव पर जानलेवा हमला किया गया। बाइक पर सवार दो लोगों छोटेलाल और नेत्रपाल ने हमला किया था।  मुलायम सिंह की गाड़ी के आगे ये लोग बाइक लेकर चल रहे थे। बाइक चलाने वाले छोटेलाल को मौके पर ही मार गिराया गया जबकि नेत्रपाल गंभीर रुप से घायल हुआ। हमले के वक्त मुलायम सिंह मैनपुरी ज़िला स्थित कुर्रा पुलिस स्टेशन के माहिखेड़ा गांव से इटावा वापस लौट रहे थे। मैनपुरी के बॉर्डर पर स्थित झींगपुर गांव में लोगों को संबोधित करने के बाद वो माहीखेड़ा गांव में अपने एक दोस्त से मिलने गए थे। मैनपुरी से वो लगभग 9.30 बजे निकले और मुश्किल से 1 किलोमीटर दूर तक ही चले होंगे उन्हें अपनी गाड़ी के आगे गोलियों की आवाज़ सुनाई देने लगी।

कई बार ऐसे मौके भी आये जब नेताजी पर चलने वाली गोलियों को उनके समर्थको ने अपने ऊपर लिया और खुद की जान को खतरे मर डाल कर उनके जान की रक्षा किया। उन्हें भी मालूम था कि आज वो जिसके लिए आपने जीवन का खतरा ले रहे है वो आगे चल कर देश और प्रदेश के पिछडो की तकदीर बदल देगा। मुलायम सिंह ने पिछडो के हक की राजनीति खुलकर किया। जो पिछड़े उनके पहले कथित बड़े लोगो के सामने जमीन पर बैठते थे, वो पीछड़े नेता जी के बाद बराबर पर बैठने का अधिकार हासिल कर चुके थे। 

अस्सी और नब्बे के दशक में बैकवर्ड पॉलिटिक्स यूपी में छाई हुई थी। पिछड़े आने अधिकारों की लड़ाई के लिए सजग थे। हालांकि उत्तर प्रदेश में बैकवर्ड पॉलिटिक्स स्वतंत्रता के बाद से ही चल रही थी। लेकिन ये सिर्फ वोट हथियाने और अपना उल्लू सीधा करने के लिए किया जा रहा था। मुलायम सिंह के आने के बाद इस आंदोलन को बल मिला । वो एक सच्चे हितैषी की भांति पिछडो से जुड़े।  एससी और एसटी को संविधान के जरिये राजनीति में स्थान मिल गया था। लेकिन ओबीसी अभी अभी अपने अधिकारों से वंचित था। इस समुदाय में शिक्षा नहीं थी। सामाजिक व्यवस्था में भी ये सवर्णों से नीचे आते थे। पर ग्रामीण परिवेश में इनका दबदबा था, क्योंकि जमीन और खेती में इनका अच्छा खासा विस्तार था। पर नेता उतने मजबूत नहीं उभर पाये थे बैकवर्ड क्लास से।

राम मनोहर लोहिया, चौधरी चरण सिंह और कांशीराम ने जरूर कोशिश की थी बैकवर्ड क्लास की राजनीति करने की।लेक़िन उन्होंने एक वक्त के बाद इसको छोड़ समरूपता की राजनीति शुरू कर दिया । लोहिया जी ने जाति के आधार पर लोगों को इकट्ठा करना शुरू किया। कांशीराम ने भी बहुजन समाज की कल्पना की थी। पर चौधरी चरण सिंह ने जाट और यादव को मिलाकर जो राजनीति शुरू की, उसके बाद पहली बार बैकवर्ड समाज के लोगों को अपनी पहचान और ताकत दिखाने का मौका मिला। 1979 में प्रधानमंत्री बनने के बाद चरण सिंह ने ‘कुलाक बजट’ पेश किया जिससे सिर्फ बड़े किसानों को ही फायदा हुआ। कुलाक रूस में बड़े किसानों को कहा जाता था। पिछडो कब लिए गठित मंडल कमीशन की बैठक हुई। मंडल कमीशन बैठा जरूर पर लागू नहीं हुआ।

1989 का साल OBC समाज के लिये एकदम सब कुछ नया ले के आया। एक ठाकुर प्रधानमंत्री वी पी सिंह ने मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू कर दिया। उसी वक्त भाजपा ने राम मंदिर का मुद्दा उठा दिया। उसके पहले कार सेवको पर गोलियां चलवाने जैसे बेहद साहसिक और कठोर  निर्णय ने मुलायम सिंह जी की छवि हिंदुत्व विरोधी बना दिया। जबकि कुछ लोग तब भी नेताजी में अपना पूरा विश्वास रखा। जबकि कुछ ओबीसी को हिंदुत्व का लॉलीपॉप दिया गया। OBC समाज के लिये ऐसा कोई नेता खड़ा नहीं हो पाया था जो सबको एकजुट कर सके। नतीजन OBC कई ग्रुपों में बंट गये।

राम मनोहर लोहिया और चौधरी चरण सिंह की राजनीति को कोई भुनाने में कामयाब रहा तो वो थे मुलायम सिंह यादव. उनके आदर्शों और उनके विचारों के दम पर अगर किसी मे राजनीति से गरीबो और पिछडो की आवाज को उठाने की ताकत मुलायम में ही थी।  मुलायम सिंह अपने आदर्श  लोहिया जी की संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से 1967 में विधायक बने। 1968 में लोहियाजी की मौत के बाद उन्होंने ने चरण सिंह की भारतीय कृषक दल जॉइन कर ली। और अपने संघर्षो से पार्टी में दूसरे नंबर पर रहे।  1974 में इसी के टिकट से फिर विधायक बने। उसी साल दोनों पार्टियों का विलय हो गया। नाम पड़ा भारतीय लोक दल । ये पार्टी 1977 में जनता पार्टी के साथ मिल गई। और उत्तर प्रदेश में उसी साल मुलायम सिंह यादव स्टेट कैबिनेट में मिनिस्टर बने। चरण सिंह ने 1979 में जनता पार्टी से नाता तोड़ लिया और लोक दल के नाम से नई पार्टी बना ली। मुलायम जी उनके साथ ही रहे , और पार्टी के साथ संघर्षो की लड़ाई लड़ते रहे।

मुलायमजी के पास राजनीति के  तीन सबसे बड़े पंडितो और सूरमाओं के साथ काम करने की ट्रेनिंग थी। उन्होंने लोहियाजी से समाजवाद की शिक्षा और उसकी राजनीति सीखा। चौधरी चरण सिंह से किसान पॉलिटिक्स और उनकी आवाज को उठाना सीखा। और वी पी सिंह से पीछड़ो के हक़ की लड़ाई और उसकी राजनीति  को बेहद करीब से देखा था . उनके पास मौका आया कि तीनों विचारों को साथ लेकर राजनीति शुरू करें, क्योंकि ये तीनों ग्रुप यूपी का बहुत बड़ा विचारो का नेतृत्व करता था  । नेता जी की इस मेहनत ने और तजुर्बे ने रंग लाया और 1989 के चुनावों में बैकवर्ड समाज खुल के सामने आया ,  जनता दल ने 208 सीटों और 30 प्रतिशत वोटों के साथ सरकार भी बनाई थी. समाजवादी पार्टी के वोटों का ज्यादातर हिस्सा इसी वोट बैंक से आया था।

मुलायम सिंह जनता के रुख और उनके विचारो को हमेशा समझते आये। अयोध्या गोलीकांड के बाद  नेताजी की छवि हिन्दू विरोधी बनाने में भाजपा और उसके नेताओ ने कोई कसर नही छोड़ी। फिर 1992 में हिंदुत्व और राम मंदिर के रथ पर सवार बीजेपी ने प्रदेश की सत्ता हासिल किया और और प्रदेश के इतिहास का सबसे काला दिन आया। कल्याण सिंह की सरकार तो गिर गयी । लेकिन बीजेपी ने देश के लोगो मे हिंदुत्व का मंत्र फूंक दिया था। नेताजी उसको समझते थे। और इसी के काट के लिए उन्होंने कांशीराम से हाथ मिला किया। नेता जी ये दावा उस वक़्त के बड़े बड़े पंडितो को समझ नही आया। फिर जब चुनाव का फैसला आया तो सब भौचक्के थे। नेता जी ने पीछड़ो और दलितों की फौज बना कर भाजपा के विजयी रथ को उठाकर प्रदेश से फेक दिया। 

नेताजी ने हर पद, हर सफलता के लिए कड़ा संघर्ष किया। चाहे चौधरी चरण सिंह के बाद पार्टी पर अधिकार को लेकर उनके अमेरिका से पढ़कर लौटे बेटे अजीत सिंह से दो दो हाथ हो या पार्टी के कार्यालय पर अपने लठैतों को तैनात कर राजनीति को नई रंग देने की कला। मुलायम सिंह जी ने हर तरह के दावे पेंच आजमाए और राजनीति को मनचाहा मोड़ दिया। उनके रुतबे का करिश्मा ऐसा था कि संसद में उनके बोलते समय कोई टोकने की हिम्मत न करे। 

अपने प्रश्नों से और अपने तर्कों से अटल बिहारी जैसे प्रधानमंत्री को भी निशब्द करदेने वाले मुलायम सिंह जी देश को दिखाया कि सही मुद्दों , सच्ची नियत और  कठिन संघर्ष से देश की राजनीति को सही दिशा और दशा दिखाई। राजनीति बुरी नही होती , बस उसे करने का तरीका सही होना चाहिए। उसे करने की नीयत साफ होनी चाहिए। और फैसले इतने अनियमित की किसी तरह का अंदाजा लगाना मुश्किल हो जाये। चाहे वो 1989 में अपने ही खिलाफ वोट डलवाना हो या 1990 में विधानसभा भंग करवाना। चाहे वो सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री ने बनाना हो या प्रणव मुखर्जी को राष्ट्रपति बनाना या 2019 में नरेंद्र मोदी के दुबारा प्रधानमंत्री बनने की कामना करना। ये कुछ ऐसे फैसले थे जिसके पीछे का फायदा सिर्फ नेता जी ही समझ सके।

जो दूसरों के दर्द को महसूस करे वो नेता जी है। जो दूसरों के गम में अपने आँशु बहाये वो है नेता ही । जो दूसरों के हक़ के लिए खुद लड़े , वो है नेता जी। जो दूसरो के अधिकार के लिए खुद लड़े और संघर्ष को खड़ा करे वो है नेता जी। जो दूसरों का सहारा बने अपनी जरूरतों को कुर्बान करके वो है नेता जी। नेता जी अपने भाषण में बोलते थे की " "कोई मुझे नेता जी कहे या कोई मौलान कहे तो कोई मुलायम कहे,  मुझे उससे कोई फर्क नही पड़ता, आप अपनी अपनी कसौटी पर मुझे रख सकते है । लेकिन मेरा उद्देश्य सिर्फ एक ही है समाज में शांति और एकता। उसके लिए मुझसे जो बन पड़ेगा मैं करूँगा और इसमें मैं किसी तरह में विरोध और किसी तरह के दवाब की कोई परवाह नही करूँगा" 




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