बचपन मे हर किसी को माँ ने बताया होगा कि भगवान की पूजा करो , धर्म को मानो , भगवान और धर्म तुम्हारी रखा करेंगे। जैसे बड़े हुए तब हमे ये बताया जाता है कि धर्म और भगवान संकट में है, हमे उनकी रक्षा करनी है। यकीन मानिए आपने जिस दिन धर्म पर ऑंख मूँद कर विश्वास करने की जगह सवाल जवाब करना शुरू करेंगें ऐसे लोगो की दुकानें भी बंद हो जाएंगी।

जब कभी भी खुद के स्वार्थ को धर्म की आड़ में छुपा कर अपना हित साधने की कोसिस हुई है , तब तब धर्म के इस छुपा लेने वाले तत्व पर सवाल उठाना बेहद जरूरी हो जाता है। इंसान खुद की कमियों को धर्म के आड़ में छुपाते छुपाते नकारा और निरंकुश हो चुका है।  हम इसे यूँ भी कह सकते है कि इंसान धर्म का सहारा लेते लेते शक्तिविहीन, बुद्धिबिहीन, अधीर, असंतोषी, और लालची हो जाता है। जब भी कोई  इंसान अपनी सारी शक्तियों का केंद्र धर्म को मान लेता है , वह कमजोर हो जाता है। 

वो इसलिए क्योकि वह फिर अपने साथ और आने आस पास होने वाली कई गलत चीज़ों को धर्म का हिस्सा मान कर उसके बारे में सोचना ही बंद कर देता है। इंसान जब भी किसी धर्म को  बेहद अंधता के साथ मानता है वो उस धर्म के किसी भी प्रक्रिया पर सवाल उठाना बन्द कर देता है। वो उस धर्म के नाम पर किये जा रहे किसी भी कार्य के पीछे का उद्देश्य और प्रक्रिया को जानने की कोसिस भी बंद कर देता है। वो जो प्रथा चली आ रही होती है ,उसे आंखे बंद कर स्वीकार करता है।  भले ही कुछ पहले यही चीज़े उसे प्रश्नवाचक क्यो ही न लगती हो। 

धर्मो ने और उनके नाम पर होने वाले सभी तरह के पाखंडो जैसे कर्मकांड,  हिंसा, राजनीति और षणयंत्र ने देश का भंटाधार कर रखा है। लोग धर्मान्धता की लहर में इस तरह बह चुके है कि किसी को भी अपने साथ होने वाली नाइंसाफी नही दिखाई देती। वो तो बस दूसरे धर्म और संप्रदाय की हो रही परेशानीयों को देखकर खुश हो जाता है, भले ही वो खुद ही क्यो न उससे बड़ी समस्या में हो। धर्मो के इस शौक ने इंसान की सभी संवेदनाओ को मार दिया है। अब इंसान एक मशीन की तरह ही धर्मो के अनुदेशों का पालन करने लगा है।

धर्म को अंधता के साथ अनुसरित करने पर मनुष्य के साथ जो सबसे बड़ी समस्या होती है वो है परिवर्तन को स्वीकार न करना। धर्मान्धता में डूबा व्यक्ति किसी भी तरह की परिवर्तन को अपने धर्म पर चोट मानता है। इस तरह के लोग सवाल सुनने की क्षमता को भूल जाते है। उनके अंदर अपनी खुद की कमियों को पहचान कर दूर करने वाली क्षमता ही नही बचती। जब भी ऐसी लोगो से कोई उनके धर्म के ऊपर सवाल उठाएगा, वो उस सवाल को बर्दाश्त नही कर पायेगा। वो सवाल पूछने वाले कोई मारने के लिए दौड़ेगा, वो उसको गालिया दे सकता है, या वो उसके सवाल के जवाब में उसके व्यक्तिगत चीज़ों पर सवाल करने लगे। इस बात का गवाह हमेशा इतिहास भी रहा है कि जिसने परिवर्तन स्वीकार नही वो कभी न कभी न चाहते हुए भी परिवर्तन का हिस्सा बना है। 


मनुष्य को चाहिए की वो पुराने धर्मो, व्यवस्थाओ और परंपराओं को गहन परीक्षण की दृष्टि से देखे, वो इनमे दोष निकाले, इन परम्पराओ की प्रकिया पर बारीक से बारीक सवाल भी पूछा जाना चाहिए।  मनुष्य को चहिये की वो धर्मो की प्रक्रियाओं के पीछे का तर्क खोजना शुरू रखे।  उस तर्क को अपनी खुद की मानसिक सोच से चुनौती दे । किसी भी धर्म के प्रकिया पर सवाल उठाए।  धर्म के ऐसे  व्यवस्थाओ पर सवाल भी उठाए। और अगर कोई दूसरा सवाल पूछे तो मनुष्य को उसके उन सवालों का संतृष्ट होने तक जवाब देना चाहिए।  इस तरह के तर्क वितर्क और सवाल जवाब मनुष्य को कायर होने से बचाता है। 

यदि मनुष्य जो कि धर्म का बहुत बड़ा अनुनायी बनता है वो अपनी आस्था की व्यवस्था पर सवाल सुनने की क्षमता नही रखता है तो ये समझ लेना चाहिए कि अब उस आस्था के पतन की शुरुआत हो चुकी है। ऐसे धर्म खत्म हो जाएंगे। इन धर्मो के रहनुमाओ को फिर शायद कोई सहारा भी नही मिलता। ऐसी भक्ति की भावना ने इंसान के स्वावलम्बनकी जड़ को खोखला कर दिया है। बिना तर्क के भक्ति करने वाला इंसान जरूरी रूप से खोखला और ढोंगी होता है।  

मेरे मन मे शुरुआत से गई धर्म और इसके किसी भी कार्य मे कोई आस्था नही रही है। फिर भी जितना धर्मो के बारे में जाना है उसमें एक बात तो पूरी समझ आती है कि मनुष्य यदि किसी धर्म को वाकई में मानता है तो वह बलिदानी , शांत मन और हृदय वाला और तर्क वितर्क में विश्वास करने वाला होगा। धर्मो में जीवो की मूलभूत आवश्यकताओं को उनका हक माना गया है, लेकिन इसमें भी सबसे ऊपर मनुष्य को रखा गया है । लेकिन मौजूदा हालात में लफंगों और लम्पटों ने धर्मो का ठेका ले रखा है, धर्म के नाम पर उन्माद फैलाना आजकल पूजा करने के समान है। इंसान से कही ज्यादा जानवरो को महत्व मिलने लगा है। जानवरो की कथित रक्षा के नाम पर इंसान , इंसान के खून की नदियां भी बहा दे रहा है।

धर्मो का ढोंग अपने चरम पर कुछ इस कदर पहुँच चुका है कि आज के समय मे उसके नाम पर कुछ भी किया या कराया जा सकता है। बचपन मे हर किसी को माँ ने बताया होगा  कि भगवान की पूजा करो , धर्म को मानो , भगवान और धर्म तुम्हारी रखा करेंगे। जैसे बड़े हुए तब हमे ये बताया जाता है कि धर्म और भगवान संकट में है, हमे उनकी रक्षा करनी है।   यकीन मानिए आपने जिस दिन धर्म पर ऑंख मूँद कर विश्वास करने की जगह सवाल जवाब करना शुरू करेंगें ऐसे लोगो की दुकानें भी बंद हो जाएंगी। देश मे बड़ी बड़ी राजनीतिक पार्टियों की हवा गुल हो जाएगी।  कितने ही लोग सत्ता से बेघर होकर कही न कही कुछ साधने में लगे होंगे। 

धर्मान्धता की बयार पूरी इंसानी कौम को एक गहरे अंधरे कुए में धकेल रही है, देश की आने वाली नश्लो को रिधवविहीन और डरपोक बना रही है। ये इंसान को ऐसे गहरे कुए में धकेल रही है जहाँ पर जाने के बाद इंसान की सोचने की शक्ति, नेतृत्व करने की शक्ति , असहमति जताने की बुद्धि, और अस्वीकार करने की भावना खत्म हो जाती है। इन धर्मो के ढोंग ने इंसानी प्रवित्ति को भेड़ की प्रवित्ति जैसा भीड़ में चलने जैसा बना दिया है। जिसमे इंसान किसी एक के इशारे पर बिना किसी उद्देश्य के , या बिना किसी अपने स्वार्थ के लिए बस आदेश का पालन करने चल पड़ता है।

मनुष्य को धार्मिक अंधता के चंगुल में घेरने में दो खास , बेहद खास लोगो का बेहद खास योगदान रहा है। जिसमे में पहले है देश के नेता।  नेताओ ने देश मे धर्मो के नाम पर अपने कुकर्मो की ऐसी आंधी चलाई है कि देश पूरा देश इस आंधी की चपेट में आ चुका है। इस आंधी में लोगो की संवेदनशीलता , अपनापन, बुद्धि सब उड़ने लगे है। देश के नेता धार्मिक  कट्टरता में बह चुके है। अपने वोट की खातिर देश के सभी भाइयो को आपस मे ही लड़वाना इनका पेशा बन चुका है। 

आज़ादी के पहले भी कमोवेश ऐसा ही हाल था। लाला लाजपत राय ने कांग्रेस छोड़ दिया और उन्होंने हिन्दू महासभा को जॉइन किया , साथ ही उन्होंने उसे पूरा समर्थन देने का एलान किया। उस वक़्त जिस हिन्दू महासभा का देश की आज़ादी से कोई लेना देना नही था, उसके हवाले से अखबारों में खबर छपती रही कि "देश की आज़ादी में कभी मत भूलो की तुम हिन्दू हो" । इस तरह के कई सुर प्रोपगेंडा चला कर लाला जी के नाम पर हिन्दुमहासभा ने आज़ादी की लड़ाई में खुद की सहभागिता दिखाने का भरसक प्रयास किया।

लाला ही के इस तरह किसी धर्म विशेष के दल की तरफ झुकना , उस वक्त के मौजूदा क्रान्तिकारियो को अखर गया। सरदार भगत सिंह भी लाला जी से बेहद नाराज हुए । हिंदुस्तान सोसिलिस्ट रिपब्लिकन असोसिएसन ने लाला जी के दिए जा रहे सुझाओ पर दुबारा अमल करना शुरू कर दिया। साथ ही उनकी बातों को अपनी चर्चाओं में हिस्सा देना बंद कर दिया। लाला जी के इस कदम पर नाराजगी जाहिर करते हुए सरदार भगत सिंह ने लिखा " आज देश की जनता ने अपना एक महान नेता खो दिया, वो महान नेता और धार्मिक नाव में सवार होकर आज़ादी की पतवार चलाते हुए धार्मिक लहरों के साथ बह चला है" । 


देश की आज़ादी के बाद भी धार्मिक अनुष्ठानों कर नाम पर नेताओ की मनमानी घटने की वजाय बढ़ने लगी। नेताओ ने देश के मंदिरों और मस्जिदों को मैदानी जंग का अखाड़ा बना दिया है। अपने अपने चुनाव के वक़्त नेताओ ने देश को जनता में दूसरे समुदाय की प्रति इतना जहर भर दिया कि अब इंसान को दूसरे समुदाय के लोगो के रहन सहन, खाने पीने, और रहने के तरीकों से भी नफरत हो गयी है। अपनी संस्कृति और अपनी चीज़ों के अलावा और दूसरी संस्कृति को अपनाने जगह उसे दुतत्कारने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। 


धर्मो ने देश का बेड़ा गर्क कुछ इसी प्रकार किया है। लोगो को देश की तरक्की , विकास और  खुशहाली से कही ज्यादा सिर्फ उस बात की फिक्र रहती चली आयी है कि कही इनके धर्म वाला सत्ता से बाहर न आ जाये। बहुत ज्यादा चर्चा के बाद भी , सही गलत का पूरा पता होते हुए भी देश को ऐसे धार्मिक उन्मादों ने जनक के हाथ मे सत्ता की चाभियां दे दी जाती है। नेताओ ने भी देश की जनता की इस नब्ज को अच्छे से पहचान लिया है। जब भी किसी दूसरे धर्म के किसी भी व्यक्ति को कुछ सुविधा मिली तब ऐसे नेताओ ने दूसरे समुदाय के लोगो को सिर्फ एक तरफ की लोगो की सहायता वाला अफवाह फैला कर नफरत करने पे मजबूर कर देता है।  और जबकि खुद सत्ता में आने पर वो स्वयं ऐसा करते हुए अक्सर पाए जा सकते है। 

नेताओ ने अपने नफ़रती भाषणों, भड़काऊ बातो और असंवेदनशील हरकतों से हिंसा और दंगा का इकबाल हमेशा ही बुलंद रखा है। किसी भी नेता की जीत बहुत हद तक सिर्फ इस बात और निर्भर करती है कि उसने कितने धार्मिक भावनाओं को दुखी करने वाली बात कही होगी।चुनाव जीतने की लालच और सत्ता की चाहत ने नेताओ को इस कदर गिरा दिया है कि वो मरी हुए औरतो की लाशों को कब्र से निकाल कर उनके साथ बलात्कार करने जैसी घटिया और नराधम बाते कह सकते है। नेता बेहद ही चालाकी से धर्म को अपनी ढाल बना कर हमेशा से रखते आये है  ये कड़वा सच सभी लोगो को मानना ही होगा कि किसी भी नेता को किसी धर्म से कोई लेना देना नही होता। वो सिर्फ किसी धर्म के प्रति अपनी नफरत या अपना प्रेम उस जगह के लोगो के नब्ज के आधार पर जाहिर करता है। 

धर्मान्धता की आग में मनुष्य अपनो की पहचान भूल जाता है। वो सिर्फ हाथ मे हथियार लिये किसी मशीन से कम नही रहता । मनुष्य को नेताओ ने धार्मिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करना सीख लिया है। किसी भी नेता के लिए किसी भी इंसान का कोई वजूद नही रहता। वो हर मनुष्य को सिर्फ अपने एक वोट के रूप में ही देखता रहा है।  किसी भी इंसान के लिए ये बहुत शर्म की बात होनी चाहिए कि कोई उसे सिर्फ एक मशीन की तरह इस्तेमाल कर रहा है। और वो इंसान बिना खुद कि कोइ सोच लगाए सिर्फ दूसरों के आदेश पालन करने में लग जाता है।  

आज के समय मे एक और दूसरे सज्जन है जिन्होंने धर्मान्धता के ढोंग, धर्मिक आस्था के नाम पर पूरे देश को सांप्रदायिक आग में धकेल दिया। और वो सज्जन है मीडिया। इतिहास गवाह रहा है कि पुराने समय मे पत्रारिता उस समय में बहुत रुआब और रशूख का पेशा होती थी। जिसे आज कल बीमाउ मीडिया । आज कल पत्रकारिता में विज्ञापनों के नाम पर मिलने वालों मनचाही खबरों के कीमत के सिक्कों की खनक ने और नफरत फैला कर बटोरी गयी टीआरपी के रेटिंग्स की चमक ने पत्रकारिता के इस संसार को मैला और दूषित बना दिया है।  पत्रकारिता सिर्फ पैसे और व्यूएरशिप का खेल बन चुकी है। आज के समय में पत्रकारों की कोई खास हैसियत रही नही।

मीडिया के दोनों हिस्सो प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने पत्रकारों के माध्यम से देश  में भय और नफरत का माहौल बना कर रखा है।  पत्रकारिता के कुछ नए बेंचमार्क हाल ही में सेट हुए। जैसे पत्रकारिता में अब सत्ता से सवाल पूछने  की जगह अब पत्रकारिता सरकार के कामो की प्रचार प्रसार में लगी है।  मीडिया ने आज सरकार के पीआर का किरदार बहुत ही ज्यादा अच्छे से निभाना सीख लिया है।  मीडिया ने अपनी प्रसिद्धित्ता के लिए मनुष्यो के बीच ऐसी आग लगा दी है जिसको बुझाना शायद किसी के बस की बात नही।

अब पत्रकार , पत्रकरो वाली भाषा नही नही बोलते, अब पत्रकारो के हावभाव पत्रकरो वाले नही रहे है।अब पत्रकार खबर की सच्चाई को नही दिखाना चाहते। अपितु अब के पत्रकार टीवी पर बैठकर सीधे दंगाइयों और मवालियों की भाषा बोलने लगे है। अब पत्रकारो के हावभाव धार्मिक सुपारी लेने वाले गुंडो के हावभाव की तरह हो चले है। अब पत्रकार टीवी पर सच्चाई दिखाने की जगह सिर्फ वही सब दिखाते है जिससे कि उनको ज्यादा टीआरपी मिल सके और उससे भी ज्यादा ऐसी चीज़ों को दिखाते है जिससे कि मनुष्य का ध्यान मूलभूत बातो से हटकर भटकाऊ और मनगढंत बातो पर लग जाये।

देश के नेता और देश के पत्रकार इस तरह से मनुष्य के दिमाग के साथ इसीलिए खेल पा रहे है क्योंकि मनुष्य धर्म मे नाम पर बेवकूफियां करता आया है। मनुष्य अभी तक आस्था के नाम और ज़ाहिलपंती और कुतर्की कामो को अंजाम देता आया है। धर्म और उसके मानवनिर्मित पाखंडो पर मनुष्य का विश्वास इतना बढ़ गया है कि इंसान इसके आगे अपने वजूद और अपने अस्तित्व को भूलता जा रहा है। धर्म  की एक अलग ही परिभाषा और एक अलग ही छवि बना कर अभी तक पेश की गई है। 

धर्म वो होना चाहिए जो दूसरों को भी अपनेपन जैसा पनाह दे। धर्म वो होना चाहिए जो दूसरों की सभ्यता का सम्मान करें। धर्म वो होना चाहिए जो अपने से पहले दूसरों की रक्षा की सोचे। धर्म वो होना चाहिए जिसको किसी और के वजूद से कोई भी खतरा न हो। धर्म वो होना चाहिए वो समानता और एकता को बढ़ाये। धर्म वो होना चाहिये सभी विचारो के समागम से निहित हो। धर्म का आकार इतना बड़ा हो कि उसमें सारे तौर तरीके शामिल हो सके। धर्म वो होना चाहिए हो अपनो पर न किसी तरह की पाबंदी लगाए और न ही किसी तरह की अस्वीकृति की भावना रखे। धर्म वो होना चाहिए जिसकी आस्था बहुत मजबूत हो । धर्म वो होना चाहिये जो हर तरह के तार्किक सवालो का जवाब देने में सक्षम हो, जो धर्म सवालो से डरे न, जो धर्म खुल कर अपने मे विचारो को रखने की क्षमता निहित करता हो वही धर्म सच्चे मायनो में मनुष्य को एकता , और  तरक्की के रास्ते ओर ले जा सकता है।  और जिस धर्म मे या उसके क्रिया कलापो में इनमे से कोई एक भी बात का अभाव है , उस धर्म को निश्चित ही सुधार की जरूरत है।  और मनुष्य को चाहिए कि वो किसी भी तरह के किसी भी बात का सिर्फ इस वजह से अनुपालन करना शुरू न कर दे क्योकि वो धर्म का हिस्सा है। बल्कि उसे उसके पीछे का तर्क खोजना चाहिए , पुरानी मान्यताओ को तोड़ना चाहिए और सवाल पूछना शुरू करना चाहिए। 

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