प्राइवेट कंपनियां सीधे डूब रही है और सरकारी कंपनियां सीधे बिक जा रही है। इस दोनों में एक वाकया एक है, प्राइवेट कंपनियां वही डूब रही है जो अम्बानी या अडानी को टक्कर दे रही है , और सरकारी कंपनियां जितने भी बिक रही है सबकी खरीदारी की रेस में अम्बानी और अडानी आगे है।मतलब साफ कह तो एसेट्स बिकम्स लाईबीलिटीज , एंड लाईबीलिटीज बिकम्स अम्बानी की एसेट्स वाला हिसाब किताब चल रहा है। देश अब शायद वापस ग़ुलामी के उसी दौर में जा रहा है जहाँ आपका हक़ अपनी ही चीजो से छीन लिया जाता है।
इंसान मेहनत से पैसे कमाएगा , कमाए पैसे को अपने पास नही रख सकता, उन पैसों को उसे बैंक को देना होगा रखने के लिए, फिर बैंक वो पैसे सरकार के खसमो को बांट देगी। उसके बाद वो खसम भाग जाते है या कह देते है कि वो लोन नही दे सकते है। फिर बैंक से रुपये निकालने ले लिए आपको मना कर दिया जाता है। मतलब आप अपने कमाए पैसे रख नही सकते, और बैंक में रखने पर बैंक आपको पैसे देगी नही। सिंपल सी बात है आपने अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मारी है। आज बड़ी बड़ी बैंक और कंपनियां डूब रही है ।
वक़्त याद है 2008 के टाइम का, जब पूरा विश्व आर्थिक मंदी का शिकार हुए पड़ा था, जब अमेरिका की सबसे बड़ी बैंक और दुनिया के बड़े बैंको में से लेहमन ब्रदर्स डूब गई ,विश्व की बड़ी बड़ी कंपनियां डूब रही थी तब भारत मे कंपनियां , बैंक , कॉपरेटिव बैंक्स तो छोड़िए, गली की एक लोकल बैंक तक भी न बन्द हुई, न दिवालिया हुई और न ही बेची गयी। अंतरराष्ट्रीय मंडी बहुत बड़ी चुनौती थी देश के लिए लेकिन फिर भी पूरे विश्व की परेशानी को पीछे छोड़ते हुए भारत ने आर्थिक मंदी को दूर से ही भगा दिया, और सबसे मजे की बात ये रही कि इसके लिए सरकार को अपनी एक सूई भी बेचने या गिरवी रखने की कोई जरूरत नही पड़ी।
ये कोई कमाल या चमत्कार नही था । भारत आर्थिक मंदी से सिर्फ इसलिए बच पाया क्योकि उस वक़्त के जिम्मेदार, अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़कर दूसरों पर इल्ज़ाम लगाने की जगह मंडी को रोकने के तरीके खोजने में लग गये। उस वक़्त के जिम्मेदार बहानो की जगह काम को परफ़्रेंस देकर सच्चे मन से समस्या को हल करना चाहते थे।
लेकिन अब ऐसा नही है, पहले के लोग ऐसा करते थे क्योंकि वो देशद्रोही थे, कट्टर हिन्दू नही थे। आज के लोग देशप्रेमी है, माफ करियेगा देशप्रेमी नही "राष्ट्रप्रेमी" है। हमेशा राष्ट्र ही इस्तेमाल करियेगा, वो क्या है कि राष्ट्र शब्द थोड़ा ज्यादा बड़ा और भौकाली लगता है। इतना बड़ा है इसके आड़ में चोरी चाकरी, हत्या लूट बलात्कार, लूट खसोट , बेईमानी कुछ भी किया जा सकता है। ये सब करने के बाद बस एक शब्द आगे कर दो "राष्ट्र" । आपके सारे अपराध पुण्य में बदल दिए जाएंगे। और आप एकदम पवित्र आत्मा घोषित कर दिए जाएंगे।
वो कहावत है कि " लायक औलादे बुजुर्गो की संपत्तियों को दूगनी चौगनी कर देते है, और नालायक औलादे पुरुखों की संपत्तियां और जमीन जायदाद बेच बेच कर अपना गुजारा करते है, क्योकि उनमे खुद कुछ कमाने की क्षमता नही होती। वो तो सिर्फ पैसों पर जीना जानते है। आज भी यही हो रहा है ,आज़ादी के कुछ समय के बाद उस समय की "देशद्रोही" सरकार ने एयर इंडिया को टाटा ग्रुप से खरीदा था , और आज की "राष्ट्रप्रेमी" सरकार उसी एयर इंडिया को वापस बेचने पर तुली हुई है। ऐसे ही 20 से ज्यादा कंपनियां जिसे या तो सरकार ने बनाया या तो किसी से खरीदा उसे आज के साहेब जी बेचने पे तूले हुए है।
प्राइवेट कंपनियां सीधे डूब रही है और सरकारी कंपनियां सीधे बिक जा रही है। इस दोनों में एक वाकया एक है, प्राइवेट कंपनियां वही डूब रही है जो अम्बानी या अडानी को टक्कर दे रही है , और सरकारी कंपनियां जितने भी बिक रही है सबकी खरीदारी की रेस में अम्बानी और अडानी आगे है। जैसे जिओ को टक्कर देते देते आईडिया वोडाफोन धराशायी होने के कगार पर है। उनपर तरह तरह के जुर्माने लगा दिए गए है।
अब ऐसे ही साहेब वो सरकारी कंपनियां बेच रहे है जिनका बिज़नेस अम्बानी या अडानी के इंटरेस्ट का है। जैसे पेट्रोलियम, रेलवे सर्विसेज आदि। अब मोदी सरकार के केंद्रीय मंत्रिमंडल ने देश की पांच चुनिंदा कंपनियों को बेचने को हरी झंडी दे दी है। इसमें भारत पेट्रोलियम कारपोरेशन आफ इंडिया,शिपिंग कारपोरेशन आफ इंडिया,आनलैड कार्गो मूवर,काॅनकोर रेलवे कंपनी,टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कारपोरेशन तथा नाथ॔ इस्ट इलेक्ट्रॉनिक पावर कारपोरेशन लिमिटेड को बेचा जायेगा ।इतना ही नही भारतीय जीवन बीमा निगम,ओ एन जी सी जो आयल इण्डिया लिमिटेड के पास है सरकार ने 26,4 फीसदी हिस्सेदारी 33000 करोड़ में बेचने का फैसला किया है ।
अडानी जी की सहूलियत के लिए रेलवे के निजीकरण के हिस्से के रूप में भारत की कई रेलवे स्टेशनों, साफ -सफाई जैसी सेवाओं,टिकट बिक्री,रेल पटरियों का रखरखाव,केटरिंग आदि का निजीकरण किया जा रहा है । और सबके सब टेंडर अडानी जी को मिल भी जा रहे है।एयर इंडिया के दरवाजे पर भी बिक्री का बोर्ड टंग गया है । दूरसंचार क्षेत्र की सरकारी कंपनी बीएसएनएल के 25000 कर्मचारियों पर स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए दबाव डाला जा रहा है । अब जो गिने-चुने सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम बचे है उनकी भी यही स्थित हैं ।
एक आश्चयर्जनक तथ्य ये भी है कि साल 2014 से जब से मोदी सरकार सत्ता में आई है पिछले साढ़े पांच वर्षो में दो लाख करोड़ मूल्य की सार्वजनिक सम्पत्तियों को बेचा गया है । ये वही दो लाख करोड़ की कंपनियां है जिसे कथित गद्दार नेहरू और उनके लोगो मे इतने वर्षों में खरीद कर देश को समर्पित किया और देश की संपत्तियों में इसे जोड़ा। साहेब ने अब इनको संपत्तियों की जगह दायित्व बना दिया। मतलब साफ कह तो एसेट्स बिकम्स लाईबीलिटीज , एंड लाईबीलिटीज बिकम्स अम्बानी की एसेट्स वाला हिसाब किताब चल रहा है।
भारत की जीवन रेखा और कोर सेक्टर के उद्यमों को बहुराष्ट्रीय कंपनियों को बेचना मोदी सरकार का मंत्र बन गया है । जहां एक समय था कि 'सार्वजनिक उद्यमों को नियंत्रण की स्थित में ऊपर रखो' वही मोदी राज का नारा है 'बहुराष्ट्रीय कंपनियों और साम्राज्यवादी पूंजी को सबसे ऊपर रखो' । यह सब ऐसे समय हो रहा है जब विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वालो हजारों कर्मचारियों को काम से निकाला जा रहा है और ठेका श्रमिकों का शोषण किया जा रहा है । जब यह मालूम है कि निजी क्षेत्र की कंपनियाँ केवल और केवल मुनाफे के लिए काम कर रही हैं,जनता की व्यापक सेवा के लिए नहीं । भाजपा और आरएसएस के लिए राष्ट्रवाद का मतलब है राष्ट्र के साथ विश्वासघात, भारतीय अथ॔व्यवस्था और इसके सभी उत्पादक क्षेत्रों,सेवा क्षेत्र और व्यापार को साम्राज्यवादी कारपोरेट एजेन्सियों के आगे समर्पित करना है ।
निजीकरण और विनिवेश एक ऐसे माहौल में हो रहा है जब देश में बेरोज़गारी एक बड़े संकट के रूप में मौजूद है। देश में पूँजी की सख़्त कमी है। घरेलू कंपनियों के पास पूँजी नहीं है। इनमें से अधिकतर क़र्ज़दार भी हैं। बैंकों की हालत भी ढीली है। विनिवेश के पक्ष में तर्क ये है कि सरकारी कंपनियों में कामकाज का तरीक़ा प्रोफेशनल नहीं रह गया है और उस वजह से बहुत सारी सरकारी कंपनियां घाटे में चल रही हैं। इसलिए उनका निजीकरण किया जाना चाहिए जिससे काम-काज के तरीक़े में बदलाव होगा और कंपनी को प्राइवेट हाथों में बेचने से जो पैसा आएगा उसे जनता के लिए बेहतर सेवाएं मुहैया करवाने में लगाया जा सकेगा।
5 जुलाई को बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग (PSU) में अपना निवेश 51 फ़ीसदी से कम करने की घोषणा की थी।
इसका आसान शब्दों में मतलब ये हुआ कि अगर 51 फीसदी से कम शेयरहोल्डिंग होगी तो सरकार की मिल्कियत ख़त्म। लेकिन उसी घोषणा में ये बात भी थी कि सरकार सिर्फ़ मौजूदा नीति बदलना चाहती है जो फ़िलहाल सरकार की 51% डारेक्ट होल्डिंग की है। इसे बदलकर डारेक्ट या इनडारेक्ट सरकारी होल्डिंग करना चाहते हैं।
एक उदाहरण इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन लिमिटेड (IOCL) का लेते हैं। इसमें सरकार की 51.5% डारेक्ट होल्डिंग है। इसके अलावा लाइफ़ इंश्योरेंस कॉरपोरेशन (LIC) के 6.5% शेयर भी उसमें हैं जो पूरी तरह सरकारी कंपनी है। इसका मतलब IOCL में सरकार की इनडारेक्ट होल्डिंग भी है ।तो अगर सरकार IOCL से अपनी डारेक्ट सरकारी होल्डिंग कम करती है तो इनडारेक्ट सरकारी होल्डिंग की वजह से फ़ैसले लेने की ताकत सरकार के हाथ में होगी ।लेकिन फिर इसका उद्देश्य क्या है? उद्देश्य तो ये था कि कोई नया निवेशक आए और इन संस्थानों को बदल कर विकास की राह पर लाए। लेकिन कहीं ना कहीं सरकारी हस्तक्षेप की आशंका रहती है।
आर्थिक और व्यवसाय जगत के एक बड़े वर्ग का मानना है कि पिछले तीसेक सालों में जिस तरह से सरकारी कंपनियों को बेचा गया है वो विनिवेश था ही नहीं, बल्कि एक सरकारी कंपनी के शेयर्स दूसरी सरकारी कंपनी ने ख़रीदे हैं । इससे सरकार का बजट घाटा तो कम हो जाता है लेकिन न तो इससे कंपनी के शेयर होल्डिंग में बहुत फ़र्क़ पड़ता है, न ही कंपनी के काम-काज के तरीक़े बदलकर बेहतर होते हैं।
लेकिन विनिवेश की ये प्रक्रिया भी अर्थव्यवस्था की तरह धीमी चल रही है ।मोदी सरकार का विनिवेश का इस साल का टारगेट सिर्फ़ 16% पूरा हो पाया है ।टारगेट के 1.05 लाख करोड़ में से क़रीब 17,365 करोड़ रुपए जुटाए जा चुके हैं। एयर इंडिया को बेचने के लिए भी निवेशक की तलाश है। इसमें देरी हो रही है क्योंकि पहले सरकार इसमें 24% होल्डिंग रखना चाहती थी लेकिन अब सरकार इसे पूरी तरह बेचने को तैयार है।
विनिवेश की धीमी रफ़्तार की वजह इसका विरोध भी है क्योंकि इससे नौकरियां जाने का ख़तरा है।क्योंकि प्राइवेट कंपनी किसी को भी नौकरी से निकाल सकती है। हालांकि अर्थशास्त्री विवेक कौल कहते हैं कि नौकरी से निकालने का मतलब ये नहीं है कि कर्मचारी सड़क पर आ जाएंगे। स्टाफ़ को वीआरएस देना पड़ेगा, प्रोविडेंट फण्ड देना पड़ता है और उन्हें ग्रेच्युटी देनी पड़ेगी। लेकिन एक बात जो सबकी नजरों से बच कर निकल रही है वो है आरक्षण, निजी कंपनियों में आरक्षण का कोई पालन नही है। इस वजह से आरक्षण खत्म करने की कोसिस में आरक्षण के मौके खत्म कर रही है ये सरकार।
पिछली बार एनडीए सरकार ने 1999 से 2004 के बीच भी राजकोषीय घाटा कम करने के लिए विनिवेश का तरीका अपनाया था। तब इसके लिए एक अलग मंत्रालय बनाया गया था। ये कवायद कांग्रेस सरकार की भी रही है लेकिन फ़िलहाल वो एनडीए सरकार के क़दम की आलोचना कर रही है। अभी सरकार जिन पब्लिक कंपनियों को अम्बानी और अडानी के हाथों में सौपने का विचार बना रही है वो है , एयर इंडिया, स्कूटर्स इंडिया,पवन हंस , बीईएमएल, भारत पंप कंप्रेशर्स,
सेल, स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड , हिंदुस्तान फ्लोरोकार्बंस लिमिटेड, हिंदुस्तान न्यूजप्रिंट, एचएलएल लाइफ केयर, सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, ब्रिज एंड रूफ कंपनी इंडिया लिमिटेड, एनएमडीसी,सीमेंट कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, प्रोजेक्ट एंड डेवलपमेंट इंडिया लिमिटेड, हिंदुस्तान प्रीफैब लिमिटेड, और फेरो स्क्रैप निगम लिमिटेड।फिलहाल पांच मुख्य कंपनियो में सरकार की हिस्सेदारी इसप्रकार बेचने का प्लान है। भारत पेट्रोलियम - 53.29%, शिपिंग कारपोरेशन -63.75%, कंटेनर कारपोरेशन -30.00%, एनई पावर कार्पो- 100% , टीएचडीसी इंडिया -75.00%.
इन बिक्रियो के बाद भी सरकार न तो खुद को संभाल पा रही है , और न ही निजी कंपनियों को जो गैर अम्बानी या अडानी है। कुछ कंपनियां छोटे अम्बानी की जरूर है, अरे वही अपने राफेल वाले अम्बानी जी, जिन्होंने तीन महीने पुरानी कंपनी से राफेल का ठीक हथिया लिया। अब उनके नाम पर भी कई हज़ार करोड़ का एनपीए लगा हुआ है। यानी कि छोटे अम्बानी भले भी कंपनी बन्द करवा दी लेकिन फिर भी रहेंगे मालामाल। क्योकि बैंको की सारी पूंजी अब उनके जैसे ही लोगो के पास है ।
ऐसा ही वाकया यश बैंक के साथ हुआ। कभी सबका चहेता रहा यस बैंक अब डूबने के कगार पर है। ऐसा बैंक जिसे अपने ग्राहकों को औसत से भी ज्यादा ब्याज देने के लिए जाना जाता था। इसके बेहद खराब दिन चल रहे हैं। हालात इतने खराब हैं कि उसको बचाने की महीनों से कोशिश की जा रही है। बैंक के शेयर लगातार लुढ़कते जा रहे हैं, आज के सेशन में भई यह 50 पर्सेंट नीचे ट्रेड कर रहा है। एसबीआई अब उसे बचाने के लिए आगे आया है, लेकिन बैंकों की दुनिया में यह चमकता सितारा गर्त में कैसे पहुंचा ? जबकि इसका मालिक राणा कपूर गला फाड़ फाड़ कर नोटबन्दी के समर्थन में कसीदे पढ़ रहा था।
वैसे ज्यादा पुराना नहीं है यस बैंक। साल 2004 में राणा कपूर ने अपने रिश्तेदार अशोक कपूर के साथ मिलकर इस बैंक की शुरुआत की थी। 26/11 के मुंबई हमले में अशोक कपूर की मौत हो गई, उसके बाद अशोक कपूर की पत्नी मधु कपूर और राणा कपूर के बीच बैंक के मालिकाना हक को लेकर लड़ाई शुरू हो गई। मधु अपनी बेटी के लिए बोर्ड में जगह चाहती थीं। यूं स्थापना के करीब 4 साल बाद ही परिवार की कलह बैंक पर हावी रहने लगी और आज नौबत यहां तक आ गई है।
देश के चौथे सबसे बड़े निजी बैंक यानी यस बैंक की मौजूदगी पूरे देश में है। इसका हेडक्वॉर्टर मुंबई में है। बैंक का नेटवर्क काफी बड़ा है। देशभर में इसके 1000 से ज्यादा ब्रांच हैं और 1800 ATMs हैं। यस बैंक के महिला स्पेशल ब्रांच भी हैं, जो 'यस ग्रेस ब्रांच' के नाम से चलाए जाते हैं। इनमें महिलाओं के लिए खास प्रॉडक्ट ऑफर होते हैं। इनकी खास बात यह है कि इनमें पूरी तरह से महिलाओं का स्टाफ है। इसके अलावा, देश में 30 से ज्यादा 'यस एसएमई ब्रांच' भी हैं, जो SMEs को स्पेशलाइज्ड सर्विसेज मुहैया करते हैं।
वित्त मंत्रालय की तरफ से 5 मार्च 2020 की शाम 6 बजे से 3 अप्रैल तक बैंक के डिपॉजिटर्स पर पाबंदी लगा दी गई। विदड्रॉअल की लिमिट सहित इस बैंक के कारोबार पर कई तरह की पाबंदिया लगा दी गईं। इस पूरी अवधि में खाताधारक 50 हजार रुपये से अधिक नहीं निकाल सकेंगे। यदि किसी खाताधारक के इस बैंक में एक से ज्यादा खाते हैं तब भी वह कुल मिलाकर 50 हजार रुपये ही निकाल सकेगा। यह नोटिफिकेशन रिज़र्व बैंक के आवेदन पर जारी किया गया।
अधिसूचना में यह भी कहा गया है कि यदि किसी खाताधारक ने बैंक से कर्ज ले रखा है या उस पर बैंक की कोई देनदारी है तो उस राशि को घटाने के बाद ही डिपॉजिट में से पैसे दिए जाएंगे।आरबीआई ने गुरुवार को यस बैंक के निदेशक मंडल को भंग करते हुए प्रशासक नियुक्त कर दिया। केंद्रीय बैंक ने अगले आदेश तक बैंक के ग्राहकों के लिए निकासी की सीमा 50,000 रुपये तय कर दी है।
अगर ये देखा जाए कि यश बैंक कैसे डूब तो समझना आसान है। यस बैंक के ग्राहकों की लिस्ट में रीटेल से ज्यादा कॉरपोरेट ग्राहक हैं। यस बैंक ने जिन कंपनियों को लोन दिया, उनमें अधिकतर घाटे में हैं या उनका एनपीए घोषित कर दिया गया है या कंपनियां दिवालिया होने की कगार पर हैं, लिहाजा लोन वापस मिलने की गुंजाइश कम। जब कंपनियां डूबने लगीं तो बैंक की हालत भी पतली होने लगी।यस बैंक का संकट तक बगराने लगा जब बैंक के को-फाउंडर राणा कपूर को पद से हटा दिया गया। रिज़र्व बैंक ने कहा कि वह बैलंस शीट की सही जानकारी नहीं दे रहे। 31 जनवरी को उन्हें पद छोड़ने को कहा गया था।
RBI ने बैंक पर 1 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया। आरोप था कि बैंक मेसेजिंग सॉफ्टवेयर स्विफ्ट के नियमों का पालन नहीं कर रहा। इस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल बैंक लेनदेन के लिए करते हैं। इसके बाद QIBs के जरिए फंड जुटाने के लक्ष्य तक बैंक नहीं पहुंच पाया। अगस्त 2019 में मूडीज ने यस बैंक की रेटिंग घटा दी और ज्यादातर रेटिंग एजेंसियां इसे लेकर आश्वस्त नहीं रहीं। इसकी रेटिंग घटने से बैंक की हैलत और खराब हो गई, बाजार में नेगेटिव संकेत पहुंचे।सितंबर 2018 में जहां यस बैंक का मार्केट कैप 80 हजार करोड़ के आसपास था, वह 90% से ज्यादा घट गया है। अगस्त 2018 में बैंक के शेयर का प्राइस करीब 400 रुपये था, जो नकदी की कमी के चलते फिलहाल 18 रुपये रुपये के आसपास है। आज बैंक के शेयर 50 पर्सेंट नीचे कारोबार कर रहे हैं।
तमाम पाबंदियों के बीच अब आरबीआई यस बैंक के बहीखातों ऐसेट क्वॉलिटी को मूल्यांकन करेगा और इसके बाद तय करेगा कि आगे क्या किया जा सकता है। उम्मीद है कि 30 दिनों के भीतर यह तय कर लिया जाएगा कि देश के चौथे सबसे बड़े निजी बैंक का मर्जर होगा या टेकओवर। या इसके ग्राहकों को सड़क पर सरेआम गला फाड़ फाड़ कर रोना पड़ेगा, जिसका कुछ झलक हम लोगो ने पहले भी देखा है ।
मतलब यह भी हैरानी भरा हुआ लगता है कि अपनी मेहनत खून पसीने की कमाई हुई पैसे को जहां रखे हैं वहां से उसको निकालने के लिए उनको पाबंदी लगा दी गई है ।सिर्फ पचास हजार निकालने की छूट है , एक महिला ने नौ लाख रुपये जमा करके रखे थे । बिचारी बिलखती हुई सबके सामने गिड़गिड़ा रही थी की नौ लाख रुपये की जरूरत है अब कहां से पैसे आएंगे। लेकिन सरकार को इससे क्या , वह तो मस्त घोड़ा खरीदने में व्यस्त है । और वित्त मंन्त्री का क्या वो तो कह देंगी की मुझे यश बैंक से फर्क नही पड़ता क्योकि मेरा उसमे एकाउंट नही है। याद है ना पिछली बार प्याज वाला बयान याद है ना कि मैडम को प्याज के दाम से फर्क नही पड़ता क्योकि उनके घर प्याज नही खाया जाता।
मोदी जी या सीतारमण पोथी बस ये बता दे कि अगर किसी के घर मे किसी का इलाज चल रहा है तो वो पैसे कहा से लाएगा ? अगर किसी के घर मे शादी हो तो वो पैसे कहा से लाएगा ? किसी को स्कूल की फीस जमा करनी हो तो वो पैसे कहा से लाएगा ? किसी को व्यापार में प्रोडक्शन के लिए पैसे चाहिए तो वो कहा से लाएगा ? देश अब शायद वापस ग़ुलामी के उसी दौर में जा रहा है जहाँ आपका हक़ अपनी ही चीजो से छीन लिया जाता है। मतकब पैसा आपका लेकिन आप निकलेंगे तब जब मोदी जी चाहेंगे।
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