हँसी का गुमान
ढलते ही दिन बन्द कर दुनियादारी की दुकान आया
रास्ते मे आज फिर अचानक ही उसका मकान आया
तोड़ सकता तो शायद तोड़ा देता उसके गुरूर को
ये खयाल भी उससे कलेजा जलने के दौरान आया
गाते रहे वो मेरी बेफाफाई के किस्से सारे संसार मे
हमने जब मुह खोला तो उसके लिए सिर्फ बखान आया
हँस कर निकालते रहे उनके हर जुल्मो सितम को
मुझको को तो अपनी इस हँसी पर भी गुमान आया
दावेदारी तो बहुतो ने किया तेरे बागों की रखवाली का
फिर इन रोझो की जद में जाने क्यों मेरा ही मचान आया
जर्रे जर्रे में टूट कर बिखर गए नए शाखों के पत्तो जैसे
इन आंधियो की साज़िश में तो सिर्फ तेरा ही नाम आया
ताउम्र संभाल कर रखा इन खयालो को दामन में
भूलना चाहा जब तुझे तो कोई खयाल न काम आया
मत पूछ मेरे शहर में इतने मुर्दे क्यों जलते रहे
तूने बस्तियों उजाड़ी तभी तो ये शमशान आया
पहरेदारी कर खूब , रखवाली कर घर के चिराग की
घनघोर तूफानों से भरा उनका है फरमान आया
कतरा कतरा कर जलाया है तुमने मेरी शख्शियत को
उसी आग से ग़ज़ल का ये सुनहरा मुकाम आया।
एक वादा तो लिया था उसदिन तुझसे न बदलने का
मौसमो को देख कर अब खुद बदलने का अरमान आया
बदल भी जाये तो आकर मिल लेना मेरे जज्बातों से
इन जज्बातों का समंदर भी आज चढ़ परवान आया।
Comments
Post a Comment