न तो गोलियों से गांधी मरते है , न मूर्तियों से गोडसे जैसा शैतान जिंदा होता ।

जो लोग गाँधी के मरने पर मिठाइयां बांटते फिरे थे, जो लोग आज भी बापू के हत्यारे की पूजा करते है, वो भी जब विदेशो में जाते है तो वो गोडसे का नही , बल्कि गुमान से कहते है कि " मैं गांधी के देश से हु "
गांधी अपने आप मे पूरा भारत है। भारत के रोम रोम में गांधी हैं। गांधी जी ने देश को वो पहचान दिया, वो सम्मान दिलवाया जो हमारे देश को बहुत पहले मिलना चाहिए था। समाजवादी व्यवस्था का सबसे सटीक उदाहरण गांधी जी थे। राम राज्य सिर्फ गांधी के तरीकों पर चल कर ही पाया जा सकता है, न कि उनके हत्यारे के राह पर चल कर।  गांधी जी की हत्या पर मिठाई बांटने वालो का कलेजा आज भो जल जाता होगा, जब देश के बच्चे बच्चे में उनको गांधी नज़र आते है।

आज मीडिया चैनल पर कई बार नेताओं के धरने देने पर  उसे धरना पॉलिटिक्स नाम दे करके उसका मजाक उड़ाते हैं, वे भूल जाते हैं कि संवेदन पूर्वक शांति से धरना देना और सरकार के विरोध करना बाबू का ही हथियार था। आज बापू के देश में ही उनके तरीकों का कुछ लोग मजाक उड़ाते हैं। वो ये भूल जाते है कि जिन तरीको से देश को आज़ादी मिली उनमे ये सबसे महत्वपूर्ण तरीका रहा। गांधी हमेशा काम करते है, कभी उनका तरीका अपनाकर देखो, आप सम्मान के साथ सफल होंगे।

सिर्फ आज़ादी बापू का सपना नही रही।बापू आज़ादी के साथ साथ एक संरचित समाज भी चाहते थे। इसीलिए चौरी चौरा कांड के बाद असहयोग आंदोलन लेते हुए उन्होंने ये कहा कि " अभी आज़ादी के लिए देश तैयार नही है। ऐसे आज़ादी तो मिल जाएगी, लेकिन इससे हमारे समाज की रचना नही हो पाएगी "। एक व्यवस्थित और संरचित समाज की कल्पना करने वाले, उस समाज को रेखांकित करने वाले बापू को आज सिर्फ नोटो तक ही सीमित कर दिया गया है। लेकिन ये भी एक सच है कि गाँधी मरे नही, क्योकि गांधी मरते नही, न ही गांधी हारते हैं ।

मोहनदास करमचंद गांधी से महात्मा गांधी बनने का सफर त्याग, तपस्या, और बलिदान से भरा रहा। गांधी जी ने स्‍वराज्‍य की जो कल्‍पना की थी या स्‍वराज्‍य के बारे में उनकी जो अवधारणा थी वह स्‍वतंत्रता के बाद कई क्षेत्रों में साकार हुई है। स्‍त्री समानता और बालिग मताधिकार के बारे में उनका मत था – “स्‍वराज्‍य से मेरा अभिप्राय है लोक सम्‍मति के अनुसार होने वाला भारतवर्ष का शासना। लोक-सम्‍मति का निश्‍चय देश के बालिग लोगों की बड़ी से बड़ी तादाद के मत के जरिये हो, फिर वे चाहे स्त्रियां हों या पुरुष, इसी देश के हों या इस देश में आकर बस गये हों। वे लोग ऐसे हों जिन्‍होंने अपने शारीरिक श्रम के द्वारा राज्‍य की कुछ सेवा की हो और जिन्‍होंने मतदाताओं की सूची में अपना नाम लिखवा लिया है।”

इसे आगे स्‍पष्‍ट करते हुए वे कहते है – “मेरे हमारे सपनों के स्‍वराज्‍य में जाति  या धर्म के भेदों का कोई स्‍थान नहीं हो सकता। भारत के संविधान में जो सेक्‍यूलर राज्‍य की परिकल्‍पना की गई है वह वास्‍तव में गांधी के विचारों को ही प्रतिपादित करती है। गांधी जी ने ‘यंग इंडिया’ में 16 अप्रैल 1931 को ही यह स्‍पष्‍ट कर दिया था – “कुछ लोग ऐसा कहते हैं कि भारतीय स्‍वराज्‍य तो ज्‍यादा संख्‍या वाले समाज का यानी हिंदुओं का ही राज्‍य होगा। इस मान्‍यता से ज्‍यादा बड़ी कोई दूसरी गलती नहीं हो सकती। अगर यह सही सिद्ध हो तो अपने लिए मैं ऐसा कह सकता हूं कि मैं उसे स्‍वराज्‍य मानने से इन्‍कार कर दूंगा और अपनी सारी शक्ति लगाकर उसका विरोध करूंगा। मेरे लिए हिन्‍द स्‍वराज्‍य का अर्थ सब लोगों का राज्‍य, न्‍याय का राज्‍य है।”

भारत में स्‍वतंत्रता के बाद संसदीय लोकतंत्र लगातार मजबूत हुआ है। भारतीय लोकतंत्र विश्‍व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है जहां अनेक जातियों, धर्मों और भाषाओं के बावजूद सबको बराबरी का हक मिला है। जहां स्‍त्री पुरुषों के बीच कोई असमानता नहीं है बल्कि भारत में महिलाएं जीवन के सभी क्षेत्रों में शीर्ष पर पहुंची हैं और हर क्षेत्र में वे अपनी क्षमता का प्रदर्शन करने में सफल रही हैं।

भारतीय लोकतंत्र की यह सबसे बड़ी सफलता रही है कि यहां संवैधानिक पदों पर हर जाति, धर्म और भाषा के लोगों को बिना किसी लिंगभेद के पदासीन होने के अवसर मिले हैं। राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्‍कृतिक क्षेत्रों में सबको बढ़ने के और अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित करने के समान अवसर मिले हैं।

स्‍वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं की भागीदारी को गांधी जी ने सुनिश्चित करने के लिए प्रेरित किया। उन्‍होंने महिलाओं के संघर्ष को राष्‍ट्रीय स्‍वतंत्रता संघर्ष के साथ जोड़ा। अस्‍पृश्‍यता के अभिशाप को दूर करने में महिलाओं के सहयोग पर बल दिया। महिलाओं को घर में रहकर भी जिस तरह से गांधी जी ने राष्‍ट्रीय स्‍वतंत्रता आंदोलन से जोड़ा उसने आंदोलन को और सुदृढ़ किया।

गांधी जी महिलाओं के प्रति किसी भी प्रकार के क्रूर व्‍यवहार के विरोधी थे और महिला अधिकारों के प्रति संवेदनशील थे। वे ऐसे शोषण मुक्‍त समाज के पक्षधर थे, जहां सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक समानता हो। महिला सशक्तिकरण के लिए उनके प्रयास का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि बिना सूचना प्रौद्योगिकी क्रांति के उन्‍होंने देश की लाखों शिक्षित-अशिक्षित महिलाओं तक अपनी आवाज पहुंचायी और उनमें चेतना जगायी।

‘भारतीय स्त्रियों का पुनरुत्‍थान’ लेख में गांधी जी ने महिलाओं के अधिकारों की वकालत करते हुए लिखा –

अहिंसा की नींव पर रचे गये जीवन की रचना में जितना और जैसा अधिकार पुरुष को अपने भविष्‍य की रचना का है, उतना और वैसा ही अधिकार स्‍त्री को भी अपने भविष्‍य तय करने का है।”

ग्रामीण महिलाओं के बारे में उन्‍होंने लिखा – “मैं भली भंति जानता हूं कि गांवों में औरतें अपने मर्दों के साथ बराबरी से टक्‍कर लेती हैं। कुछ मामलों में उनसे बढ़ी-चढ़ी हैं और हुकूमत भी चलाती हैं। लेकिन हमें बाहर से देखने वाला कोई भी तटस्‍थ आदमी यह कहेगा कि हमारे समूचे समाज में कानून और रूढ़ी की रू से औरतों को जो दर्जा मिला है, उसमें कई खामियां हैं और उन्‍हें जड़मूल से सुधारने की जरूरत है।”

स्त्रियों के अधिकारों के बारे में गांधी जी के विचार इस प्रकार थे – “स्त्रियों के अधिकारों के सवाल पर मैं किसी तरह का समझौता स्‍वीकार नहीं कर सकता। मेरी राय में उन पर ऐसा कोई कानूनी प्रतिबंध नहीं लगाया जाना चाहिए जो पुरुषों पर न लगाया गया हो। पुत्रों और कन्‍याओं में किसी तरह का कोई भेद नहीं होना चाहिए। उनके साथ पूरी समानता का व्‍यवहार होना चाहिए।”

दहेजप्रथा का गांधी जी ने न केवल घोर विरोध किया बल्कि उनका विचार था कि यह प्रथा नष्‍ट होनी चाहिए। गांधी जी ने दहेज प्रथा के उन्‍मूलन के लिए जाति-बंधन को तोड़ने पर जोर दिया। उन्‍होंने विधवाओं के पुनर्विवाह को उचित ठहराते हुए कहा कि अगर इस पावित्र्य की और हिंदू धर्म की रक्षा करना चाहते हैं, तो इस जबर्दस्‍ती लादे जाने वाले वैधव्‍य के विष से हमें मुक्‍त होना ही होगा। इस सुधार की शुरुआत उन लोगों को करनी चाहिए, जिनके यहां बाल-विधवाएं हों। उन्‍होंने इसे और स्‍पष्‍ट करते हुए कहा कि बाल-विधवाओं के इस विवाह को मैं पुनर्विवाह का नाम नहीं देना चाहता, क्‍योंकि मैं जानता हूं कि उनका विवाह हुआ ही नहीं।

महिला शिक्षा के वे प्रबल समर्थक थे और उन्‍होंने अपने इस विचार को रेखांकित करते हुए कहा कि मैं स्त्रियों की समुचित शिक्षा का हिमायती हूं, लेकिन मैं यह भी मानता हूं कि स्‍त्री दुनिया की प्रगति में अपना योग पुरुष की नकल करके या उसकी प्रतिस्‍पर्धा करके नहीं दे सकती। गांधी जी का यह स्‍पष्‍ट मत रहा है कि स्‍त्री को पुरुष की पूरक बनना चाहिए।

भारत सरकार ने संविधान का 73वां संशोधन विधेयक पारित कर ग्राम पंचायतों, क्षेत्र पंचायतों और जिला पंचायतों के स्‍तर पर त्रिस्‍तरीय पंचायती व्‍यवस्‍था को लागू कर महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण देकर गांधी जी के सपनों को साकार करने की दिशा में सकारात्‍मक कदम उठाया है। कई राज्‍यों में तो महिलाओं को 50 प्रतिशत तक आरक्षण दिया जा चुका है। लोकसभा और राज्‍यों की विधानसभाओं में महिला आरक्षण उसी दिशा में अगला कदम होगा। राज्‍यसभा इस विधेयक को पारित कर चुकी है और लोकसभा में भी पारित करने के प्रयास किये जा रहे हैं। इस विधेयक के पारित हो जाने से महिला सशक्तिकरण का एक शानदार अध्‍याय शुरू होगा।

बापू के विचारों और उनके योगदान को जितना लिखा जाए वो बेहद कम है। बापू ने हम सब के लिए देश के लिए बहुत कुछ छोड़ा, बहुत सीख दिए। गांधी कितने ताकतवर ही कि उनको मारने वाले भी मजबूरी में ही सही, उनकी तस्वीर के आगे शीश तो झुकाते है।

Comments

Popular Posts