जो पत्रकार साल के 365 दिन  दूसरे लोगों से सवाल पूछते हैं। दूसरों लोगों की कार्यशैली पर प्रश्न चिन्ह उठाते हैं । दूसरे लोगों के काम का हिसाब मांगते हैं। साल के किसी एक दिन उन लोगों को भी अपने काम का हिसाब देना पड़ेगा।  उन लोगों को भी साल के एक दिन दूसरे के सवाल का जवाब देना पड़ेगा। अपनी कार्यशैली को समझाना पड़ेगा ।और गलत होने पर सुधार कर सच के साथ आना पड़ेगा ।पत्रकारिता जो हमेशा सबसे सवाल पूछती है, उसको भी एक दिन जवाबदेह होना पड़ेगा।



धर्मों ने इस देश का बेड़ा गर्क कर रखा है।  पता नहीं इस देश को धर्म के इस जंजाल से कब मुक्ति मिलेगी ? इस समय देश के सांप्रदायिक दंगों में सिर्फ दो लोगों का हाथ है,  एक हैं नेता और दूसरे हैं अखबार।  इस समय देश के नेताओं ने ऐसी लीद की हुई है कि चुप ही भली । सेेभी नेता धार्मिक और सांप्रदायिक कट्टरता की अंघंत में बह चले हैं । और दूसरे सज्जन है जो सांप्रदायिक दंगो को भड़काने में विशेष हिस्सा लेते रहे हैं।  वह हैं हमारे अखबार।  पत्रकारिता का व्यवसाय जो किसी समय में बहुत ही ऊंचा समझा जाता था , वह आज बहुत ही गंदा हो चुका है । यही कारण है कि भारत की वर्तमान दशा पर विचार कर आंखों से रक्त के आंसू बहने लगते हैं । और दिल में सवाल उठता है कि हमारे इस भारत का आखिर में बनेगा क्या ? " - सरदार भगत सिंह (कीरति पत्रिका 1928)


सरदार भगत सिंह ने 1928 में उस समय की मीडिया के बारे में जो बयान दिया वह आज के दौर में पूरी तरह से सटीक बैठती है।  मीडिया और पत्रकार अपने जमीर को तब भी बेचते थे,  और आज भी बेच रहे हैं । फर्क बस इतना है कि तब यह पत्रकार सत्ता की दलाली चोरी छुपे करते थे,  लोगों के सामने नहीं आते थे । अब के दौर में यह पत्रकार सीधे-सीधे लोगों के सामने आकर छाती ठोक कर सत्ता पक्ष की गुलामी कर रहे हैं। 

और सत्ता की तरफ से विपक्ष से सवाल पूछ रहे हैं । जो पावर में है,  जो सारी चीजों के लिए जिम्मेदार है , उनसे एक बार भी सवाल पूछने की ना तो इनमें कूवत है , ना तो इनका साहस है । इन पत्रकारों ने देश को बर्बाद करने में बहुत ही अहम योगदान दिया है । देश में सांप्रदायिक दंगों से लेकर के झूठा अफवाह हर जगह गोदी मीडिया और दलाल पत्रकारिता ने देश को बर्बादी और तबाही के रास्ते पर भेजा।

देश के संविधान  और देश के लोकतंत्र  के मुख्य चार स्तंभ माने गए हैं,   कहा जाता है कि इन्हीं चार स्तंभों पर देश का लोकतंत्र टिका हुआ है । पहला न्यायपालिका , दूसरा कार्यपालिका , तीसरा विधायिका , और चौथा पत्रकारिता ।न्यायपालिका का हाल यह है कि सुप्रीम कोर्ट के  जज  आकर प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बताते हैं कि "सुप्रीम कोर्ट की हालत खराब है ।" कार्यपालिका की हालत यह है कि  कोई भी अधिकारी बिना घूस लिए,  एक ढेला तक उठाने की जहमत नहीं करता ।

विधायिका की हालत यह है कि  दिन रात  साथ बैठकर चाय पीने वाले , पकौड़े खाने वाले नेता संसद में एक दूसरे के ऊपर कुर्तियां उछालते हैं, गाली गलोज करते हैं,  पेपर फेंकते हैं और कोई काम नहीं करने देते। सदन में बैठकर पोर्न देखते हैं।  और बाहर निकलने पर फिर एक साथ फोटो खिंचवाते हुए दांत चियार देते हैं।

टीवी चैनल तो टीवी चैनल, अब तो सत्ता के प्रति अपनी वफादारी साबित करने में शहरों के छोटे छोटे पत्रकार भी रेस में लगे हुए हैं। वह पत्रकार जो शायद हाईस्कूल या इंटर  पास नहीं हुए । कहीं नौकरी नहीं मिली।  तो लोगों से इधर उधर से चंदा मांगकर खबरें जुटा जुटा कर पत्रकारिता के बिजनेस में उतर पड़े ।और इसे पूरी तरह से धंधा बना दिया । इन पत्रकारों के पास ना तो इनका कोई एजेंडा है ना तो कोई इनका उद्देश्य । यह सिर्फ चाटुकारिता और विपक्ष को कटघरे में खड़े करने के लिए ही पैदा हुए हैं ।


पत्रकारिता की इतनी बुरी हालत समझ से परे है ।आखिरी गोदी मीडिया के पत्रकार साबित क्या करना चाहते हैं ?


दिन रात टीवी पर अखबारों में फ़र्ज़ी राष्ट्रवाद और फ़र्ज़ी धर्म के नाम जहर परोसा जा रहा है। कुछ कथित धर्मभक्त और राष्ट्रभक्त देश के नाम पर भगवान के नाम शहीदों के नाम पर सेना के नाम पर दिन रात लोगो के मन मे नफरत और असहिष्णुता का चरस बो रहे है। और इस चरस को देश के लोगों में दिन रात अखबारों और टीवी के माध्यम से लोगों को खिलाया पिलाया जा रहा है । धर्म को बचाने की एक अंधी रेस शुरू कर दी गई है । जिसमें लोग बिना देखे  कभी भगवान को बचाने तो कभी मंदिर बनाने के लिए दौड़ रहे हैं । और एक दूसरे का गला काट रहे हैं।


और जब सभी मुद्दों पर  सरकार फेल होने लगी  तो सहारा ले लिया  युद्ध का और  दलाल मीडिया का ।न्यूज़ रूम को एक वार रूम में बदल रखा है। वह लगातार देश की जनता की भावनाओं को युद्ध के लिए ना सिर्फ भड़का रहे हैं बल्कि इस युद्ध की भावना को लेकर देश की जनता को इशारों ही इशारों में और कुछ तो खुले रूप से बीजेपी को वोट देने की बातें भी कर रहे है।  हम चुप कर बात करने में यकीन नहीं रखते । इसलिए मैं सीधा सीधा नाम लेना चाहूंगा । युद्ध का माहौल बनाने और बीजेपी के लिए इस माहौल को पक्ष में करने का काम सबसे ज्यादा से शुरू से अर्णब गोस्वामी की रिपब्लिक टीवी और सुभाष चंद्रा के जी न्यूज़ के चैनल कर रहे हैं । यह लोग न्यूज़ रूम में बैठे बैठे ही वह माहौल बना रहे हैं । जैसे कि युद्ध एक खेल हो जो 10 मिनट में खत्म हो जाएगा ।असली औकात इन लोगों की तो समझ में आएगी जब इनको खुद बॉर्डर में भेज दिया जाएगा।


भारतीय मीडिया के एंकरों को देखा तो हैरान रह गया कि कैसे टीवी पर चीख़ते, बदला लेने के लिए जनता को उकसाते और सरकार पर दबाव बनाते टीवी चैनल ख़ून के प्यासे हो गए हैं।  नहीं होता कि कैसे उन्हें शांति की हर बात नागवार गुज़र रही है, वे हर उस आवाज़ को तुरंत दबाने के लिए तैयार बैठे हैं जो अंधराष्ट्रवाद और युद्ध का विरोध करती दिखाई पड़ती है।


पिछले एक दो सप्ताह में मीडिया ने झूठ और अधकचरेपन के नए कीर्तिमान रच डाले हैं, उसने दिखाया है कि वह कितना ग़ैर ज़िम्मेदार हो सकता है और ऐसा करते हुए उसे किसी तरह की शर्म भी नहीं आती, एकतरफ़ा और फर्ज़ी कवरेज की उसने नई मिसालें स्थापित की हैं, उसने उन पत्रकारों को शर्मसार किया है जो पत्रकारिता को एक पवित्र पेशा समझते हैं और उसके लिए जीते-मरते हैं। सच तो यह है कि इस दौरान भारतीय और पाकिस्तानी अधिकतर पत्रकार, मीडिया की तरह काम कर ही नहीं रहा थे, वे एक प्रोपेगंडा मशीन में बदल चुके थे। वे सत्ता और उसकी विचारधारा के साथ खड़े दिखाई दे रहे थे,  उनका प्रचार-प्रसार कर रहे थे, बिना हिचक के देशभक्ति के नाम पर युद्धोन्माद फैला रहे थे।


पुलवामा हमले के बाद सिलसिला शुरू हुआ भावनाओं को उभारने का। भारतीय मीडिया ने ख़ास तौर पर जवानों के शवों और अंतिम संस्कार के दृश्यों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया। इसका लाभ सत्तारूढ़ दल बीजेपी को मिलना तय है क्योंकि उसके नेता अंतिम संस्कार में शामिल होने पहुँच रहे थे, सैनिको के परिजनों से वे बदला लेने के बयान दिलवा रहे थे। दुर्भाग्यपूर्ण यह रहा कि मीडिया सवाल करना बिल्कुल भूल गया जबकि प्रश्न करना ही उसका मुख्य काम है। उसे याद नहीं रहा या फिर उसने यह भूल जाना ठीक समझा कि ज़रा ख़ुफ़िया एजंसियों की नाक़ामी के बारे में भी सवाल करे।


सरकार से पूछे कि जवानों और सेना के कैंपों पर एक के बाद एक बड़े हमले हुए हैं मगर वह कुछ कर क्यों नहीं पा रही।
उन्होंने ने ये पूछने की हिम्मत नही उठायी की क्यों जवानों को एयरलिफ्ट करने की मांग ठुकरा दी गयी।

उन्होंने ये नही पूछा कि पहले से हमले का इनपुट होने के बाद भी हमला कैसे हो गया ?

अजीत डोभाल से उनकी नाकामी के बारे में कोई सवाल पूछा गया क्या ?


चैनल युद्ध का माहौल बनाकर कवियों से दरबार सजवा रहे हैं।  और प्रधानमंत्री हैं कि शांति पुरस्कार लेकर घर आ रहे हैं। कहां तो ज्योति बने ज्वाला की बात थी, मां कसम बदला लूंगा का उफ़ान था लेकिन अंत में कहानी राम-लखन की हो गई है ,वन टू का फोर वाली।  तरह तरह से भारत की सीमाओं का और भारत के हत्यारों का एक प्रदर्शनी एक झांकी लगी हुई है न्यूज़ चैनलों पर । कभी कोई भारत की ब्रह्मोस मिसाइल के प्रभाव को दिखा रहा है। तो कभी कोई राफेल आ जाने के बाद भारत की बड़ी हुई शक्तियों को दिखा रहा है । न्यूज़ चैनलों ने एक मंच सजा कर तरीके से युद्ध को बेच कर वोट  और टीआरपी कमाने का बढ़िया जुगाड़ कर लिया।


हाल  में ही मेरे सामने किसी एक पत्रकार ने एक बड़े स्तर के नेता का इंटरव्यू लिया। सारा इंटरव्यू मेरे सामने हुआ । और  उस पत्रकार ने मोबाइल में रिकॉर्ड भी करवाया । लेकिन जब उस इंटरव्यू के छपने के बाद उसे पढ़ा तो मैं भी बहुत हैरान था ।क्योंकि उसमें जो भाषा लिखी थी वह एक पत्रकार की नहीं बल्कि किसी एक सत्ता के बहुत बड़े अंध भक्त की भाषा लग रही थी। पत्रकार का काम नेताओं द्वारा कही गई बात को उसी तरह उसी रूप में जनता के सामने रखना होता है, जब तक की नेता की भाषा आपत्तिजनक ना हो।


लेकिन ये कथित पत्रकार उस नेता की बातों को जो कि इंटरव्यू में मूलतः बोली गई उसमें से किसी भी हिस्से को जनता के सामने नहीं रखता है। और सिर्फ उस इंटरव्यू के आधार कथित  स्वतंत्र विचार बना कर एक आकलन छापता है।  जिसमें सीधा-सीधा यह दिखता है कि किस तरह से सत्ता की दलाली करने के लिए उस नेता के नकारात्मक इमेज को बनाने की कोशिश कर रहा है।  मुझे इस बात पर हैरानी हुई क्योंकि पूरा इंटरव्यू मेरे सामने हुआ था ।और इंटरव्यू सकारात्मक तरीके से हुआ ।जितने सवाल जवाब हुए वे सब मुस्कुराकर और बेहतरीन तरीके से हुए ।


लेकिन जब इंटरव्यू के सवाल जवाबों को पेश ना करके सिर्फ उसके वन साइडेड आकलन को , जो कि किसी भी तरह से येन केन प्रकारेण तरीके में घुसते हुए विपक्ष को गलत दिखाने और उस नेता को गलत दिखाने की कोशिश करने वाला आर्टिकल सामने आया तो उस पत्रकार से सवाल पूछना भी बनता है ।जो कैमरा लेकर , माइक लेकर,  मोबाइल लेकर , रिकॉर्डर लेकर साल के 365 दिन दूसरे नेताओं से दूसरे लोगों से सवाल पूछते हैं। दूसरों लोगों की कार्यशैली पर प्रश्न चिन्ह उठाते हैं। दूसरे लोगों के काम का हिसाब मांगते हैं ।

 साल के एक दिन उन लोगों को भी अपने काम का हिसाब देना पड़ेगा । उन लोगों को भी साल के एक दिन दूसरे के सवाल का जवाब देना पड़ेगा । अपनी कार्यशैली को समझाना पड़ेगा । और गलत होने पर सुधार कर सच के साथ आना पड़ेगा । पत्रकारिता जो हमेशा सबसे सवाल पूछती है उसको भी एक दिन जवाब देना होगा।


आज हम भारतीयों की  और इन पत्रकारों की जो हालत है उसके लिए सिर्फ हमें ही जिम्मेदार हैं । हम वह हैं जब तक हमें खाने की , रहने की बेसिक चीजें नहीं मिलती तब तक हम हल्ला मचाते रहते हैं।  लेकिन जैसे ही हममें से कुछ लोगों को खाने पीने की बेसिक चीजें मिलने लगती हैं,  रहने की और सुरक्षा की बेसिक सुविधाएं मिलने लगती हैं,  हम अन्य लोगों की इन सुविधाओं के बारे में भूलकर हिंदू-मुस्लिम करने पर उतर आते हैं।


हम  अब इतने सेन्सलेस हो चुके है कि हम अपनी चीजों को अपनी तकलीफों को भूलकर , दूसरों की तकलीफ में अपनी खुशी खोजते हैं। इसका उदाहरण यहां से लिया जा सकता है कि , नोटबंदी के दौरान अक्सर लोगों को यही कहते सुना गया कि हम थोड़ी तकलीफ तो झेल लेंगे,  लेकिन इससे काला धन रखने वालों का पैसा बर्बाद हो जाएगा ।


हमें एक बात समझ में नहीं आती कि उनका पैसा बर्बाद होने से हमें क्या फायदा  ?


अगर उनका पैसा सरकार के खाते में जमा हो, और वह पैसा देश के विकास के कामों में सही सही उपयोग में लाया जाए , तो हमें खुशी हो सकती है।  उनके नोट फेंक देने से,  उनके नोट जला देने से हमें क्या फायदा होगा यह मुझे आज तक समझ में नहीं आया  ? लेकिन हम फिर भी खुश हैं क्योंकि हमें यह दिखाया गया कि देखो दूसरों को तकलीफ हो रही है ।


अगर हमारे विकसित होने का मतलब देश में हिंदू-मुस्लिम करना ही है , तो फिर हमें अविकसित ही रहना चाहिए । क्योंकि तब कम से कम लोग प्यार से रहेंगे,  और अपनी मूलभूत सुविधाओं की तलाश में भटकते रहेंगे।  नहीं तो जैसे ही मूलभूत सुविधाएं मिलेंगी हम फिर से टीवी खोलेंगे,  न्यूज़ चैनल लगाएंगे और हिंदू मुस्लिम करना शुरू करेंगे।


और हम भी हिंदू-मुस्लिम करने वाले पत्रकारों के फैन भी बन गए हैं।  उन्हें अपने आइकॉन की तरह देखने लगे हैं।  और हम जरा सा भी यह समझ नहीं रहे कि यह हिंदू मुस्लिम करने वाले दोगले पत्रकार हमारा और हमारे बच्चों का भविष्य चौपट करने पर लगे हुए हैं । यह हमारे हाथ से शिक्षा की किताबें हटाकर के उन्माद फैलाने वाले हथियार डालना चाहते हैं।


देश में यह चलन हो गया है कि जो पत्रकार सरकार की झूठी प्रशंसा कर रहा है वह दिन-रात फल फूल रहा है । इसमें "नेशन वांट टू नो" * कहकर गला फाड़ कर चिल्लाने वाला पत्रकार एक प्रमुख उदाहरण है । साथ ही जो पत्रकार देश की मूलभूत समस्याओं को सबके सामने ला रहा है,  जैसे बिजली , सड़क, पानी , शिक्षा,सुरक्षा।  उसे संघी दिन-रात गालियां देते हैं, और उन को निशाना बनाया जाता है। हाल फिलहाल एक वाकया हुआ।
इन गोदी पत्रकारों के चक्कर में देश के कुछ इमानदार पत्रकार भी  बदनाम हो गए । 

और जिन पत्रकारों ने इनके खिलाफ आवाज उठाया , सत्ता से सवाल पूछने की हिम्मत उठाई,  सत्ता को सवालों के कटघरे में घेरा उनको हमेशा हमेशा के लिए पार कर दिया गया   । देश के वरिष्ट पत्रकार और एबीपी न्यूज़ पर मास्टर स्ट्रोक कार्यक्रम से सरकार को कटघरे में खड़ा करने वाले पत्रकार पुण्य प्रसून वाजपेयी ने अब ABP न्यूज़ से भी इस्तीफा दे दिया है। उनके साथ ही चैनल के मैनेजिंग एडिटर व एक एंकर को भी छुट्टी पर भेज दिया गया था।


देश में लगतार स्वतंत्र संस्थाओं के काम में बाधा डाली जा रही है। देश में सरकार के खिलाफ और सरकार की जनविरोधी नीतियों को उजागर करने वाले पत्रकारों को लगातार परेशान किया जा रहा है। हाल ही के दिनों में एबीपी न्यूज़ पर मास्टर स्ट्रोक लाकर सरकार की बखिया उधेड़ने वाले वरिष्ट पत्रकार पुण्य प्रसून वाजपेयी ने अब एबीपी न्यूज़ से भी इस्तीफा दे दिया है। मीडिया और कुछ वरिष्ट पत्रकारों ने ट्वीट कर इसकी जानकारी साझा की है।


उन्होंने लिखा है कि भारी दबाव और सरकार की कुरीतियाँ उठाने को लेकर पुण्य प्रसून वाजपेयी पर यह कार्रवाई की गयी है। दरअसल पिछले कुछ समय से देश के बड़े पत्रकारों को परेशान किया जा रहा है जोकि टीवी या किसी भी अन्य माध्यम से सरकार की कथित नीतियों को जनता तक पहुंचाते थे। वहीँ सरकार के साथ साथ रिश्वत मांगने के आरोपी और तिहाड़ जेल जाने वाले पत्रकार भी पुण्य प्रसून वाजपेयी की मुखालफत करते दिखाई देते हैं।


इससे पहले वरिष्ठ पत्रकार पुण्य प्रसून बाजपेयी के ‘मास्टर स्ट्रोक’ शो को भी प्रभावित किया जाता रहा है,। उनके कार्यक्रम के समय ही सिग्नल की समस्या आती थी। वहीँ इससे पहले बुधवार यानी की 1 अगस्त को ABP न्यूज़ के मैनेजिंग एडिटर और डिजिटल डिपार्टमेंट के हेड मिलिंद खांडेकर ने भी अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। इतना ही नहीं सरकार की नीतियों की पोल खोलने वाले पत्रकार अभिसार शर्मा को भी छुट्टी पर भेज दिया गया है।
अभिसार शर्मा और पुण्य प्रसून वाजपेई से पहले भी पत्रकार इन संघियों के निशाने पर आते रहे।

 ये वह पत्रकार है जिनका चैनल सरकार के सामने झुका नहीं।  इसमें सबसे प्रमुख उदाहरण रवीश कुमार का ले सकते हैं।  जिसके उपलक्ष में रवीश कुमार ने प्राइम टाइम में एक या दो सो भी किया था । जिसमें उन्होंने बताया था कि किस तरह से बजरंग दल और आरएसएस के लोग उनको मारने की धमकियां देते हैं । व्हाटसअप पर उनके परिवार को लेकर गंदी गंदी गालियां लिखते हैं ।और जौनपुर का कोई बजरंग दल का कार्यकर्ता तो बकायदा एक वीडियो बनाकर उनको मारने की धमकी देता है ।


इसी क्रम में गौरी लंकेश जो केरल की एक वरिष्ठ पत्रकार थी , उनको मार दिया गया।  क्योंकि इन नपुंसकों को आलोचना बर्दाश्त नहीं होती । यह आलोचना सुनते ही मूर्खो की  भीड़ को किसी के पास भेज देते हैं, उसको मारने,  उसको ट्रोल करने के लिए । रवीश कुमार के ट्विटर हैंडल या फेसबुक अकाउंट पर जा कर देखिए , उनके पोस्ट पर कमेंट को पढ़िए देखिए उसमें कितनी गंदी गंदी गालियां लिखी है।


मीडिया में ही कुछ चैनल ऐसे हैं जो सरकार की गलत नीतियों को सपोर्ट करते हैं,  और सच्चाई सामने लाने वाले पत्रकारों को गलत सिद्ध करते हैं। ऐसे पत्रकार या ऐसी मीडिया हाउसेस जो पैसे लेकर या सरकार के साथ मिलकर किसी के भी खिलाफ गलत न्यूज़ यह फेक न्यूज़ चलाने का धंधा करते हैं।


ऐसे ही कुछ मीडिया हाउसेस और कुछ फर्जी पत्रकारों को कोबरा पोस्ट के कि स्टिंग ऑपरेशन में बेनकाब किया गया।  लेकिन हैरानी की बात यह रही कि वह कोबरापोस्ट का स्टिंग ऑपरेशन इक्का-दुक्का चैनलो को छोड़कर किसी भी मीडिया हाउस में नहीं चलाया गया।  यह इन दलाल पत्रकारों की मिलीभगत और सांठगांठ का ही नतीजा रहता है।


इस स्टिंग ऑपरेशन में जो कि "ऑपरेशन 136'
के नाम से चला था , इसमें देश की कई मीडिया हाउसेस भारतीय जनता पार्टी के लिए चुनावी हवा तैयार करने के लिए राजी होते हुए नजर आए । साथ ही विपक्ष के बड़े-बड़े नेताओं का चरित्र हरण और दुष्प्रचार करने के लिए झूठी अफवाह को गढ़कर फैलाने के लिए भी तैयार हो गए । कोबरापोस्ट के ऑपरेशन के तहत जो अभी पहला भाग जारी किया गया है उसमें कुल 16 मीडिया संस्थानों के नाम हैं।  

जिसमें सब नेटवर्क , अमर उजाला, दैनिक जागरण, पंजाब केसरी ,इंडिया टीवी,  जी न्यूज और यूएनआई साथ ही रेडिफ डॉट कॉम,  9X टशन,  समाचार प्लस , एच एन एन लाइव,  स्वतंत्र भारत, इंडिया वाच , आज हिंदी डेली , जैसे मीडिया संस्थानों को भी इस सौदेबाजी में लिप्त पाया गया।


कोबरा पोस्ट ने मीडिया संस्थानों से संपर्क साधा था, उनमें चार बिंदु शामिल थे। पहला, मीडिया अभियान के शुरुआती और पहले चरण में हिंदुत्व का प्रचार करेगा, जिसके तहत धार्मिक कार्यक्रमों के माध्यम से हिंदुत्व को बढ़ावा दिया जाएगा। दूसरा, इसके बाद विनय कटियार, उमा भारती, मोहन भागवत और दूसरे हिंदुवादी नेताओं के भाषणों को बढ़ावा देकर सांप्रदायिक तौर पर मतदाताओं को जुटाने के लिए अभियान खड़ा किया जाएगा। तीसरा, जैसे ही चुनाव नज़दीक आ जाएंगे, राजनीतिक प्रतिद्वंदियों को टारगेट किया जाएगा। 


राहुल गांधी, मायावती और अखिलेश यादव जैसे विपक्षी दलों के बड़े नेताओं को पप्पू, बुआ और बबुआ कहकर जनता के सामने पेश किया जाएगा, ताकि चुनाव के दौरान जनता उन्हें गंभीरता से न ले और मतदाताओं का रुख अपने पक्ष मे किया जा सके। चौथा, मीडिया संस्थानों को यह अभियान उनके पास उपलब्ध सभी प्लेटफॉर्म पर जैसे- प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक, रेडियो, डिजिटल, ई-न्यूज पोर्टल, वेबसाइट के साथ-साथ सोशल मीडिया जैसे- फेसबुक और ट्विटर पर भी चलाना होगा।


कोबरापोस्ट ने साथ ही स्टिंग ऑपरेशन में सहयोग करने वाले उत्तर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री श्री ओमप्रकाश राजभर को भी धन्यवाद दिया। राजभर की ही सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने पुष्प शर्मा को स्टिंग के दौरान पार्टी की मध्यप्रदेश इकाई का प्रदेश अध्यक्ष और प्रभारी के तौर पर नियुक्त करके पेश होने में मदद की।  कोबरापोस्ट के इस स्टिंग में लगभग सभी मीडिया हाउस इसने हिंदुत्व को एजेंडा रख कर के चुनाव में पेश करने की सहमति दिखाई । ध्रुवीकरण करने वाले मुद्दों और विज्ञापनों को प्रकाशित करने पर सहमत हुए । साथ ही सत्ता के विरोधियों की छवि खराब करने के लिए फेक न्यूज़ चलाने की सहमति दिखाई।
यह सारे मीडिया हाउस और सारे दलाल पत्रकार सत्ता पक्ष और प्रधानमंत्री मोदी जी द्वारा बोले गए झूठ को हर जगह सच मान कर दिखाने लगते हैं ।


और इन्हीं पत्रकारों को दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की मिलती है।  अभी हाल फिलहाल जब एक बड़ी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता ने एक दोगले पत्रकार को सरेआम "भड़वा" कह दिया तब लोगों को समझ में आया कि आखिर में चल क्या रहा है।


किस तरह से प्रधानमंत्री मोदी के झूठ को गीता से भी बड़ा सच मानकर मीडिया चैनल दिन-रात दिखा रहे हैं।प्रधानमंत्री मोदी को यह याद रहता है कि वे जब भी कहीं बोल रहे होते हैं तो उसे समूचे भारत में लोग टीवी पर सीधा प्रसारण में देख और सुन रहे होते हैं। इसलिए वे संसद में, विदेश में किसी मीटिंग में या फिर देश के किसी नुक्कड़ पर बोले जाने वाले स्टाइल और बातों में कोई फर्क नहीं करते हैं। उन्हें बुद्धिजीवियों या सोचने समझने वाले छोटे से तबके कोई फिक्र नहीं है, भले वह कितना भी सच बोले। वे सीधे ‘अपनी जनता’ को संबोधित करते हैं। यानी वह जनता जिसे सोचने-समझने के स्तर तक नहीं पहुंचने दिया गया।


उनके हर वक्तव्य को दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण वक्तव्य के रूप पेश करने वाली उनकी एक समूची फौज खड़ी है। इस फौज का संचार और संप्रेषण यानी खबरों को फैलाने के सभी साधनों-संसाधनों पर कब्जा है। यह फौज उनकी उन बातों को भी महान बता-बना कर पेश करती है, जिन पर बहुत अफसोस किया जाना चाहिए या शर्मिंदगी से भर जाना चाहिए।


तो उनकी सबसे बड़ी ताकत मूल रूप से यही टीवी मीडिया है जो उन्हें हर पल देश के हर कोने में अपनी पूरी तीव्रता से पहुंचाता है। झूठ या सनसनी पहले झोंक में पैदा करके एक राय बना दी जाती है, लेकिन बाद में अगर उस पर कोई दूसरा पक्ष आता है तो या तो उसे दबा दिया जाता है या फिर औपचारिकता के नाम पर कोई कोना दे दिया जाता और झूठ का असर बना रह जाता है।


भ्रम के हथियार से तो बड़ी-बड़ी हकीकतों को दफ्न कर दिया जाता है। आज मीडिया और खासकर टीवी मीडिया आरएसएस-भाजपा के पक्ष में वही भ्रम पैदा करने का औजार बन कर रह गया है, उसकी कोई स्वतंत्र हैसियत नहीं रह गई है, वह पत्रकारिता का दावा करने की स्थिति में नहीं रह गया है।


दिन-रात भारतीय जनता पार्टी द्वारा,   प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा , और न जाने कितने-कितने मंत्रालयों द्वारा मीडिया को मैनेज करने का काम किया जा रहा है।  इनका जो मूल काम है उस काम से इनको कोई मतलब नहीं । भले ही उनके विभाग में सौ खामियां हैं , लेकिन यह लोग सिर्फ मीडिया को मैनेज करने में लगे हैं । कई पत्रकारों ने सरेआम यह आरोप लगाया कि उनके पास पीएमओ से या फला मंत्रालय से किसी खबर को दिखाने या ना दिखाने के लिए फोन आते रहते हैं।


मेरा हमारे भारतीय प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेंद्र मोदी जी से आग्रह है की "अगर सारी न्यूज़ आपने ही चलानी है,  तो फिर न्यूज़ चैनल में बैठे हुए एडिटरों को हटवा दीजिए , और उनकी जगह आप खुद ही समाचार एडिट करिए । और समाचार ही एडिट क्यों करना , आप एंकरों को भी हटवा दीजिए,  और वहां पर भाजपा के प्रवक्ताओं को बैठाकर के एंकरिंग करा दीजिए । जो आप के पक्ष में 4 घंटे कसीदे पढ़ कर चले आएंगे।


मोदी जी अगर इन सब तकलीफों से भी बचना है तो जिस तरह आप नोटबंदी के दौरान दस मिनट के लिए टीवी पर आए थे , उसी तरह रोज शाम को एक घंटे के लिए खुद ही पीएमओ से लाइव हो जाया करिए , और दिन भर का सारा समाचार पढ़ कर के लोगों को सुना दिया करिए।  इससे पत्रकारों को मीडिया हाउसेस को खरीदने का  उनको धमकाने का समय बच जाएगा।  और आप अपना प्रोपेगेंडा चलाने में सफल रहेंगे ।


तब आपको किसी पत्रकार को नौकरी से निकलवाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
तब आपको इंटरव्यू से पहले सवालों की लिस्ट थमाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
तब आपको एडिटरो को फोन करके अपने मनमुताबिक समाचार चलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी ।
तब आपको मीडिया हाउस के मालिकों को खरीदने के लिए उनको राज्यसभा भेजने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
बृजेश यदुवंशी




Comments

Popular Posts