हम यू ही  "पराक्रमो विजयते" डबल फर्स्ट नही है। लड़ना और जीतना हमारी आदत हैं। हमने गद्दारी नही सीखी। हम गद्दार "खुशवंत सिंह, शादीलाल बत्रा, यशपाल सिंह या वीरभद्र तिवारी " नही है। हम जांबाज योगेंद्र यादव, सिंह राम यादव, अहीर  कंपनी , ब्रिगेडियर राय सिंह यादव है। मैं फिर दोहराना चाहता हु। हम गोबर कंडे बिन कर भैंस चरा कर काम चला लेंगे लेकिन हम अपनी आत्मा और जमीर का सौदा नही करेंगे।जैसा कि हमे कंडे बिनने की सलाह देने वालो ने किया।

न तो मैं जातिवाद में विश्वास करता हु और न ही किसी जाती के खिलाफ हु। लेकिन आज कुछ ढोंगियों और पाखंडियो को जवाब देना बेहद जरूरी हो गया। बार बार यादव होने का बोल कर अंट शंट बकने वाले चिलम धरियो, गंजेडीयो और भंगेडियो के खिलाफ बोलने की जरूरत है। ये पोस्ट  मनुवाद की भावना की खिलाफ है । न कि किसी सामान्य व्यक्ति की जाति के खिलाफ। मैं हर जाति और धर्म के लोगो की बराबर इज़्ज़त और सम्मान करता हु। मेरे लिए जाती और धर्म से पहले देश आता है। लेकिन आज पूर्वजो के नाम पर हुए अपमान का जवाब देने की जरूरत है मुझे। ये पोस्ट उन्ही ढोंगियों को एक जवाब है।मेरे खुद ऐसे बहुत दोस्त और जाने वाले है जो सवर्ण है और गरीबो की पिछडो की लड़ाई पूरी ईमानदारी और निष्ठा से लड़ रहे है। उन्हें मेरा सलाम है। और उनकी लड़ाई को नमन करता हु। क्योकि अपनी लड़ाई लड़ना आसान होता हैं। दूसरो के लिए उनकी लड़ाई लड़ने बहुत कठिन। 

यादवो से नफरत इस कदर है कि सरेआम स्टेज से कभी गोबर कंडे बिनने वाला बोला जा रहा है तो कभी ये कहा जा रहा है कि संविधान ना होता तो जमींदारों और ठाकुरो की भैंस चराते। इन बेशर्मो , निर्लज्जो को जरा भी समझ नही की ये किस किस पद बैठे है। इन बेशर्मो पर जातिवाद का घोर नशा चढ़ा हुआ है। मनुवाद का चरस बो दिया गया है इन लोगो के दिमाग मे। पिछडो और यादवो से नफरत इस कदर होगी ये तो तभी समझ आ गया जब लालू यादव के केस के फैसले की सुनाई करते हुए मनुवादी जज बोला कि  "आप तो भैस पाल कर भी काम कर सकते है" ।

दरसअल ये कोई नया नही है। और न ही ये चुनावी नफरत है। ये सब पुरानी नफरत है। ये वो मनुवाद का बीज है जो इन लोगो ने दिमाग मे पिछले पांच हज़ार साल से बोया जा रहा है। इनके कुछ लोग तो इस सोच से बाहर आ गए , और वो आज समाज के साथ कंधे से कंधा मिला कर समाज उत्थान में लगे हुए है। लेकिन कुछ आज भी ऐसे है जो उसी मनुवाद  को मानते हैं। जिसमे ये लिखा गया कि शुद्र जाति का लड़का कितना भी पढ़ा लिखा और अच्छा क्यों न हो उसे कभी शीर्ष स्थान नही देना चाहिए। और फलाने जाति का लड़का कितना भी अनपढ़ और पापी क्यों न हो उसे ही राजा मानना चाहिए।

और जब अब शुद्रो को , पिछडो को समान स्थान मिल रहा है, जब वो साथ मे उठ बैठ सकते है। जब वो बराबरी का मुकाबला दे सकते है। जब वो मुकाबले में हरा सकते है। जब वो इनके हज़ारो सालो के ग़ुलामी और जुल्म को टक्कर देकर अपने समाज को इनके जुल्म से बाहर निकाल रहे है तब इन फ़र्ज़ी बाबाओ के मन मे डर बैठ जाता है। डर अपने कर्मकांड की दुकान के बंद होने का, डर अपने ढोंग के खुल जाने का, डर अपनी निरंकुशता को धर्म के आड़ में छुपाने के सच का, डर धर्म के नाम पर शुद्रो और पिछडो को सदियों तक अपना गुलाम बना कर रखने की योजना का।

धर्म के जो इतने प्रपंच रचे गए है ना , वो सिर्फ इसीलिए की कुछ खास जाति से खास विचारधारा के लोग अपने मनुवाद वाले सिद्धांत को लागू कर , कथित निचली जाति के लोगो को अपना दास बना कर रख सके। इनको कैसे बर्दास्त होगा कि कोई शुद्र इनके गांव के बीच से अपनी बारात निकाल ले। कैसे बर्दास्त होगा कि कोई अहीर इनके सामने बड़का साहेब बन कर आ जाये। कैसे बर्दास्त होगा कि हरिजन का लड़का घोड़े पर बैठ जाये।   कैसे बर्दास्त होगा कि पासी का लड़का इनके कुओ से पानी निकाल ले। कैसे बर्दास्त करेंगे कि कोई पिछड़ा इनके त्योहारों में शरीक हो जाये।

ये सब कैसे बर्दास्त कर सकते है ये ?  धर्म और जाति के इन ढोंगी "बाहुबलियो" को तो सिर्फ "कटप्पा" जैसा दास चाहिए। जो इनके एक निवाला खिला देने से खुश हो जाये, और जिंदगी भर इनके खाने पीने का इंतज़ाम में लगे रहे। जो इनके "मामा" कह देने से अपने सारे रिश्ते नाते भूल कर सिर्फ इन्ही की सेवा में अपना जीवन न्योछावर कर दे।  जो सारी उम्र अपनी इनको मालिक कहते कहते बिता दे और जवाब में इनको "कुत्ता" मिले। ऐसा कटप्पा चाहिए जो इनके एक आदेश पर किसी को भी बिना सवाल पूछे मार दे। और इन सब के एवज में पिछड़े शुद्र कटप्पा को "सिंहासन का ग़ुलाम" बता कर उसको भरमाया रखा जा रहा है।

पिछडो के नेताओ से इतनी नफरत क्यों है इनको ? लालू, मुलायम, मायावती, शरद यादव, और तेजस्वी क्यों पसंद नही इनको ? इस लिए क्योकि इन नेताओं ने पिछडो की आवाज बन कर उनको सम्मान दिलाया। दलितों को अत्याचार से मुक्त करवा उनको समानता का अधिकार दिया। राष्ट्रीय स्तर पर पिछडो के नेताओ लालू मुलायम मायावती की वो कि छवि बन  गयी जिस छवि पर कभी सिर्फ कथित "ऊंची"  जाति वाला नेता का अधिकार होता था। और वो वही से दलितों की पिछडो की लड़ाई लड़ने का हम भरता था। हालांकि ऐसे कुछ ही लोग है। जब हम जनेश्वर मिश्र, लोहिया और भी कई जननायकों को देखते है तो लगता है कि इन लोगो ने सही मायनों में शुद्रो की लड़ाई लड़ी। उनके लिए समानता की लड़ाई लड़ी।

दलितों की, पिछडो की , शुद्रो की लड़ाई सिर्फ दलित और शूद्र ही लड़ सकते है। एक दलित रहते जो अधिकार बाबा साहेब ने शुद्रो को दिया। जो अधिकार मंडल ने पिछड़ा होते हुए पिछडो को दिलाया वो अधिकार कोई मनुवादी कभी देने की सोचता भी नही।ये सिर्फ जनेश्वर मिश्र, लोहिया, या आज़ाद, या बिस्मिल के ही बस का था जो एक समान सबके लिए लड़े। बाकी जिन्होंने शुद्रो की लड़ाई लड़ने का दावा किया उन्होंने हक ही मारा।  वो सिर्फ उतना ही देता जिससे कि इनका पेट भरा रहे । ये सिर्फ रोटी कपड़ा मकान जैसे मूलभूत अवश्यकताओ को पूरा करते करते ही मर जाये। उसके बाद कि चीज़ों  शिक्षा, विकाश , उन्नति, और समानता पर उनका ध्यान न जाये।

लेकिन ये माहौल बदला , जब लालू यादव , मुलायम यादव , कांशीराम जैसे गरीब और कथित "निचली" जाति  से नेता राष्ट्रीय पटल पर आए और उन्होंने पीछड़ो और दलितों के लिए भारतीय राजनीति, नौकरशाही, उद्योग जगत के रास्ते खोल दिये। अब  शुद्र कथित सवर्णो के साथ बैठ कर खा सकता था, उनसे वाद विवाद कर सकता था। उनको राजनीति में सीधा टक्कर दे सकता था।  माने अब वो जमाना जा चुका था जब गाड़ी में सवार " बाऊसाहेब" या "गुरूबाबा" की उतनी अहमियत नही रह गई थी।

जब अपने "कटप्पा" चले जाएं तो हर "बाहुबली" और हर "भल्लालदेव" को दुख तो होगा ही। इतने सालों से जो "कुत्ता" ग़ुलामी कर रहा हो और अचानक से ग़ुलामी करना बंद करके सवाल पूछना शुरू कर दे। अचानक से बगल वाली कुर्सी ओर बैठने लगे, अचानक से फैसलो पर सवाल उठाने लगे, अचानक से विरोध करने लगे । तो बुरा तो लगेगा ही। ईगो तो हर्ट हो ही जाएगी " शिवगामी" की।  तब ये " बाहुबली, भल्लाल, और शिवगामी" सारे मिलकर उस "कट्टपा" को समानता का अधिकार दिलाने वाले, उसे विरोध करने की ताकत देने वाले, उसे सवाल पूछना सिखाने वाले "मुलायम, लालू, काशीराम" को भ्रस्टाचारी, "माहिष्मती" का देश द्रोही, गद्दार और न जाने क्या क्या साबित करने में लग जाते है।

और जब इन सब से भी डाल नही गलती  है तो फिर निकाला जाता है धर्म। माने ऐसी चीज जिससे आप फिर से अपनी सत्ता वापस पा सकते है। इसमें आपसे कोई सवाल नही पूछ सकता। इसमें आप अपने दुश्मनो को आराम से धर्म विरोधी घोषित कर सकते है। भारत मे धर्म है ही इसीलिए की पीछड़ो और दलितों को मानसिक ग़ुलाम बना कर रखा जाए। इनके ग्रंथ पढ़ लो।क्या कहते है वो?  "रामायण बाल्मीकि ने नही किसी कौए ने लिखी। भगवत गीता का उपदेश कृष्ण यादव ने नही बल्कि किसी तोते ने दिया"।

माने उपदेश और ग्रंथ किसी जानवर या पशु पक्षी से लिखवा लेंगे , लेकिन ये बर्दास्त नही की बोल दे कि ये लिखा या बोला किसी दलित ने या पिछड़े ने है। सिस्टम भी ऐसे बना कर रखा है, ये आपके घर आएंगे, आपका खाना भी खाएंगे, आपसे पैसे भी लेंगे और आप इनका पैर चाटेंगे। यही सिस्टम यही व्यवस्था बना रखी है इन लोगो ने। बड़की जात वाला बाबा कराएगा तभी शादी हो पाएगी। बाबा पूजा कराएगा तभी भगवान स्वीकार करेंगे। बाबा को दक्षिणा दो तो भगवान आशीर्वाद देंगे। भले ही बाबा उस दक्षिणा के पैसे से शाम को एक खंभा और  एक गर्म मुर्गे की व्यवस्था में ही क्यों न हो।

मैं फिर से दोहराता हु धर्म की सारी व्यवस्था सिर्फ दलितों और शुद्रो को ग़ुलाम बनाने के लिए ही है। अगर ऐसा नही है तो हर मुख्य धार्मिक काम में जाति विशेष के लोगो को ही प्रतिनिधित्व क्यों दिया जाता है ?  किस भगवान ने ये बोला कि फलाने जाती वाला ही मेरी पूजा करेगा।  कभी देखा है किसी दलित को मंदिर का मुख्य पुजारी बने हुए ? कभी देखा है किसी "गुरूबाबा" को मैला ढोते हुए ?  जाति के आधार पे श्रेष्ठता का बंटवारा यही इनकी योजना है। धर्म को ढाल बना कर शुद्रो को गुलाम बनाये रखना और उनकी आवाज को दबाना। ये कुछ ढोंगी मनुवादी यही करना चाह रहे है।

और अब जबकि ये अपने मंसूबो में कामयाब नही हो पा रहे है। जब ये गुलाम पलट कर इन ढोंगियों से  सवाल पूछने लगता है। तो ये बौखला जाते है। और उल्टा सीधा बोलते हैं। मैंने अक्सर खुद पर जातिगत टिप्पणी सुनी है। कभी  पड़वा कहा गया तो कभी दूध और दही के नाम से चिढ़ाया गया।  और अब तो इन लोगो की हिम्मत इतनी बढ़ गयी है कि सरेआम मंच से कभी भैंस पालने , तो कभी गोबर कंडे उठाने तो कभी भैंस चराने की बात बोलते है। ये जातिगत नफरत ही है इन ढोंगियों के दिमाग मे जो इन्हें ये बर्दास्त नही की ये अहीर कैसे इनके टक्कर में खड़ा है।

खुद बात करते रहेंगे ये जी ये सबसे ज्यादा दलितों और पीछड़ो कि लड़ाई लड़ रहे है । लेकिन सच्चाई में देखो तो ये दिखता है कि 1925 से लेकर अब तक गैर ब्राह्मण आरएसएस का सर संघ संचालक नही बना।  बीजेपी के सरकार में 90 प्रतिशत तक मंत्री पदों पर पिछड़े ये दलित नदारत हैं। संघ और बीजेपी के बड़े और जिम्मेदार पदों पर से भी पिछड़े और दलित नदारत हैं। और जो स्वर्ण इनकी सोच से इत्तेफ़ाख नही रखते उन्हें देशद्रोही और धर्मविरोधी बना दिया है। इनके अस्सी प्रतिशत मंत्री उसी मनुवादी सोच के है।

जातिगत नफरत की भावना की बीज बोकर , 84 में से 54 एसडीए यादव होने की बात से , थानों में यादव होने की बात तक हर जगह अफवाह और नफरत फैला कर अन्य पीछड़ो से धोखा कर के ये लोग सरकार में आते है। और हर तरह से यादव को अपमानित करने का भरसक प्रयास करते है। इनकी दिमागी स्तर का पता इसी बात से लग सकता है कि जब एक यादव घर से निकला तो उसका शुद्धिकरन किया गया और पूरे घर को गंगाजल।से धुलवाया गया।  एक पिछड़े, ये यादव जाति से इतनी घृणा ??
चलिए एक सैर कराता हु यादव जाति के कुछ शौर्य और वीरता भरे इतिहास से आपको।

इतिहास गवाह रहा है कि हम यदुवंशियो ने देश से बड़ा कुछ नही समझा, युद्ध जैसी आपात स्थिति में होश से वीरता दिखाकर  योगेंद्र यादव परमवीर चक्र लिया।

 और थोड़ा और पीछे जाए तो हम 1962 में भारत चीन युद्ध मे देखते है, जहा पर हमारा देश चीन से हर मोर्चे पर रहा था, लेकिन उस वक़्त भी रेजांगला का चुशूल एक ऐसा मोर्चा था जहाँ पर चीन को कई बार हार का सामना करना पड़ा, वहां पर 13 कुमाऊ की वीर अहीर बटालियन थी, जिसमे 120 जवान थे, चीन की सेना के आक्रमण होने पर उनको पीछे हटने का विकल्प दिया गया, लेकिन उन्होंने उसे न चुनकर मातृभूमि की रक्षा किया, चीन को वहां से आगे नही बढ़ने दिया, और सर्वोच्च बलिदान को प्राप्त किया।114 सैनिको ने मेजर शैतान सिंह भाटी के नेतृत्व में शहादत दिया।एक युद्ध को "लास्ट मैन लास्ट राउंड " का भी युद्ध कहा जाता है।दुनिया के 5 सबसे बड़े युद्धों में इसे शामिल किया गया है,।

आज़ादी से पहले भी यदुवंशियो ने देश के लिए मर मिटने का काम किया ।चौरी-चौरा काण्ड से भला कौन अनजान होगा। इस काण्ड के बाद ही महात्मा गाँंधी ने असहयोग आन्दोलन वापस लेने की घोषणा की थी। कम ही लोग जानते होंगे कि अंग्रेजी जुल्म से आजिज आकर गोरखपुर में चैरी-चैरा थाने में आग लगाने वालों का नेतृत्व भगवान यादव ने किया था। इसी प्रकार भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान गाजीपुर के थाना सादात के पास स्थित मालगोदाम से अनाज छीनकर गरीबों में बांँटने वाले दल का नेतृत्व करने वाले अलगू यादव अंग्रेज दरोगा की गोलियों के शिकार हुये और बाद में उस दरोगा को घोड़े से गिराकर बद्री यादव, बदन सिंह इत्यादि यादवों ने मार गिराया।

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने जब ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा‘ का नारा दिया तो तमाम पराक्रमी यादव उनकी आई0एन0एस0 सेना में शामिल होने के लिए तत्पर हो उठे। रेवाड़ी के राव तेज सिंह तो नेताजी के दाहिने हाथ रहे और 28 अंग्रेजों को मात्र अपनी कुल्हाड़ी से मारकर यादवी पराक्रम का परिचय दिया। आई0एन0ए0 का सर्वोच्च सैनिक सम्मान ‘शहीद-ए-भारत‘ नायक मौलड़ सिंह यादव को हरि सिंह यादव को ‘शेर-ए-हिन्द‘ सम्मान और कर्नल राम स्वरूप यादव को ‘सरदार-ए-जंग‘ सम्मान से सम्मानित किया गया। नेता जी के व्यक्तिगत सहयोगी रहे कैप्टन उदय सिंह आजादी पश्चात दिल्ली में असिस्टेंट पुलिस कमिश्नर बने एवं कई बार गणतंत्र परेड में पुलिस बल का नेतृत्व किया।

मातादीन यादव (जार्ज क्रास मेडल), नामदेव यादव (विक्टोरिया क्रास विजेता), राव उमराव सिंह(द्वितीय विश्व युद्ध में उत्कृष्ट प्रदर्शन हेतु विक्टोरिया क्रास), हवलदार सिंह यादव (विक्टोरिया क्रास विजेता), प्राणसुख यादव (आंग्ल सिख युद्ध में सैन्य कमाण्डर), हवलदार राम सिंह यादव (मरणोपरान्त वीर चक्र), मेजर शैतान सिंह भाटी (मरणोपरान्त परमवीर चक्र), कैप्टन राजकुमार यादव (वीर चक्र, 1962 का युद्ध), बभ्रुबाहन यादव (महावीर चक्र, 1971 का युद्ध), ब्रिगेडियर राय सिंह यादव (महावीर चक्र), चमन सिंह यादव (महावीर चक्र विजेता), जहा ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव के (1999 में कारगिल युद्ध में उत्कृष्टम प्रदर्शन के चलते सबसे कम उम्र में 19 वर्ष की आयु में 7 गोली लगने के बाद भी 10 पाकिस्तानी सैनिकों को मार कर उनकी सूचना अपने कैम्प तक पहुचकर सर्वोच्च सैन्य पदक परमवीर चक्र प्राप्त किया।

तो वही हवलदार राम सिंह ने रेज़ांगला के चुशूल में गोली खत्म हो जाने के बाद चीनियों का गला दबा दबा कर और चट्टानों पे पटक पटक के मार कर वीर चक्र प्राप्त किया । और सर्वोच्च बलिदान को प्राप्त किया। ऐसे न जाने कितने यादव जाबांजों की सूची शौर्य-पराक्रम से भरी पड़ी है। कारगिल युद्ध के दौरान अकेले 91 यादव जवान शहादत को प्राप्त हुए। गाजियाबाद के कोतवाल रहे ध्रुवलाल यादव ने कुख्यात आतंकी मसूद अजगर को नवम्बर 1994 में सहारनपुर से गिरतार कर कई अमेरिकी व ब्रिटिश बंधकों को मुक्त कराया था। उन्हें तीन बार राष्ट्रपति पुरस्कार (एक बार मरणोपरान्त) मिला।

ब्रिगेडियर वीरेन्द्र सिंह यादव ने नामीबिया में संयुक्त राष्ट्र शांति सेना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पूर्व सांसद चैधरी हरमोहन सिंह यादव को 1984 के दंगों में सिखों की हिफाजत हेतु असैनिक क्षेत्र के सम्मान ‘शौर्य चक्र‘ (1991) से सम्मानित किया जा चुका है। संसद हमले में मरणोपरान्त अशोक चक्र से नवाजे गये जगदीश प्रसाद यादव, विजय बहादुर सिंह यादव अक्षरधाम मंदिर पर हमले के दौरान आपरेशन लश आउट के कार्यकारी प्रधान कमाण्डो सुरेश यादव तो मुंबई हमले के दौरान आर0पी0एफ0 के जिल्लू यादव तथा होटल ताज आपरेशन के जाँबाज गौरी शंकर यादव की वीरता यदुवंशियों का देशप्रेम और त्याग सबके सामने पेश किया।

इतने सारे त्याग और बलिदान देने के बाद भी आज हमेंं औरंगजेब की संज्ञा दी जा रही है, आज भी हमे गोबर कंडे बिनने वाला और भैंस चराने वाला बोला जा रहा है। हमारी देशभक्ति और राष्ट्रीयता पर धर्म के ढोंग का सहारा लेकर सवाल खड़ा किया जा रहा है। जबकि इन ढोंगियों के खुद के आका सावरकर और श्यामा  मुखर्जी अंग्रेजो के तलवे चाटते मर गया। और इनका भी हाल उनसे अलग नही  है।ये आये है हम यदुवंशियो को देश भक्ति का पाठ पढ़ाने ?  यदुवंशियो को गोबर कंडा बिनने की सलाह देने वाले। हम मेहनत लगन और ईमानदारी में विश्वाश रखते है। हम गोबर कंडे भी बीनते है, भैंस भी चराते है। और देश के दुश्मनो की छाती पर चढ़ कर भारत माँ को विजय तिलक लगाते है।

सेना और पुलिस में सबसे ज्यादा हमारी भर्री किया जाता है, क्योकि हम सुबह उठकर  दूध पीकर दौड़ने जाते है । न कि सुबह सुबज उठकर बेड टी मांगते है। आज भी पट्टिआहिरान और पूर्वांचल में ज्यादा से ज्यादा संख्या में यादव जवान सेना में जा रहे है, देश की सेवा कर रहे है।जब हम देश की कुल आबादी के 22% है तब तो हर जगह बेशक हम ही दिखेंगे।

कथित देशभक्तो को यादवो की नौकरों सेना और पुलिस में ज्यादा दिखती है, लेकिन उन जाहिलो को शहीदों के नाम मे यादव नही दिखाई देता। क्योकि उन्हें अपना जातिगत स्वार्थ जो सिद्ध करना होता है।

तो सुनो बाबाजी अगली बार यदुवंशियो कुछ कहने से पहले रेज़ांगला, राम सिंह, शैतान सिंह भाटी, अहीर कंपनी, योगेंद्र यादव, संजय कुमार सबको याद कर लेना, यकीनन इन शूरवीरो ने तम्हारे कथित वीरो की तरफ पीठ नही दिखाया, ये आगे बढ़े और सीने पे गोली खाये। मुझे गर्व है कि मैं ऐसे वंश में जन्मा हु, जिसका इतिहास और वर्तमान वीरता और शौर्य से भरा हुआ है, जिसपे कही से एक भी दाग नही है। और जब भी माँ भारती के ऊपर कुर्बान हुए शहीदों की रथे आती है ना तो उन शहीदों में यादव नाम देख कर हमारा सीना गर्व से फूल जाता है कि हमारे लोग माँ भारती के ऊपर कुर्बान होने वालों में शामिल हैं। हम विजय या वीरगति में विश्वास करते है । हम भारत के लिए जीते है और जीकर भारत के लिए करना चाहते है।

हम यू ही  "पराक्रमो विजयते" डबल फर्स्ट नही है। लड़ना और जीतना हमारी आदत हैं। हमने गद्दारी नही सीखी। हम गद्दार "खुशवंत सिंह, शादीलाल बत्रा, यशपाल सिंह या वीरभद्र तिवारी " नही है। हम जांबाज योगेंद्र यादव, सिंह राम यादव, अहीर  कंपनी , ब्रिगेडियर राय सिंह यादव है। मैं फिर दोहराना चाहता हु। हम गोबर कंडे बिन कर भैंस चरा कर काम चला लेंगे लेकिन हम अपनी माँ का सौदा नही करेंगे। जैसे कि हमे भैंस चराने और गोबर कंडे बिनने की सलाह देने वालो ने किया। अपनी आत्मा तक बेच चुके ये दलाल हमे हमारा काम सीखा रहे हैं ???

समय है अब गद्दारो और  गद्दारो के वंशजों को जवाब देने का।  समय है वीरभद्र तिवारी और यशपाल सिंह जैसे गद्दारो की सोच वाले वंशजो के खात्मे का। अहीर गोबर कंडे भी  उठाएगा और इन गद्दारो को , इन घटिया सोच वालो को उनकी औकात भी दिखायेगा।

ये भी होता है "डबल फर्स्ट"

जय हिंद।

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