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Showing posts from April, 2019
इतिहास युद्ध मे हार या जीत को याद नही करता। वो तो सिर्फ ये याद रखता है कि गोली पीठ और खाई गयी या सीने पे खाई गयी। भारत माँ का लाल, उसका सूर वीर बेटा एक तानशाही के सामने हार माने भी तो कैसे माने। टूट जाएगा मिट जाएगा लेकिन घमंडी सरकार को उसकी औकात पर लाकर रहेगा। जब सेना के जवान ने मोदी जी की जवानों के प्रति लापरवाही और नेताओं के नेता के पैसों पर भ्रस्टाचार को उजागर किया,तो उस जवान को नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया। मोदी सरकार की नीतियो का विरोध करते हुए उस जवान ने अपने 25 साल के बेटे की संदिग्ध परिस्थितयो में मौत को देखा। और जब मोदी जी खिलाफ चुनाव लड़ने का एलान किया तो अब साजिशन अब उसका नामांकन रद्द किया जा रहा है। तेज़ बहादुर को ये सजाये सिर्फ दो वजहों से दी जा रही है। एक सच बोलने का और ये सच्चा कृष्णवंशी यादव होने का।
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गंगा साफ करने का सबसे बेहतरीन फॉमूला मेरे पास है। या तो गंगा की धारा मोड़ कर भाजपा दिल्ली आफिस से निकालो ये तो गंगा के रास्ते मे दो तीन जगह बीजेपी का आफिस बनवा दिया जाए। मैली गंगा पक्का साफ हो जाएगी। क्योकि बीजेपी में जाने के बाद बड़े बड़े आतंकवादी, हत्यारो, भ्रस्टाचारियो, उठाईगीरों का गंदा दामन साफ हो गया और वो "ईमानदार" "देशभक्त" और शरीफ हो गए। और इतने साफ की अब आकर सीधे शहीदों को देश द्रोही होने का सर्टिफिकेट बांट रहे है। अब इतने गंदे लोग भाजपा में जाकर " साफ" हो सकते है तो फिर गंगा क्यों नही ???
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देशभक्ति और ईश्वरश्रद्धा , बलिदानी और शांतिपूर्ण होती है। दंगाई और उपद्रवी नही। लफंगों, लम्पटों और लफंटरो ने आज देशभक्ति और ईश्वर भक्ति का ठेका ले रखा है। जिन्हें धर्म और देश से कोई लेना देना नही वो आज धर्म का ठप्पा और देशभक्ति की सर्टिफिकेट बांट रहे है। धर्म और राष्ट्रवाद को राजनीति को अड्डा बना दिया गया है। या यूं कहें कि राजनीति की अखाड़े में मुद्दों पर पिट चुके पहलवान अब धर्म और राष्ट्रवाद के मुर्गे राजनीति के अखाड़े में लड़ा रहे है । जो भगत सिंह , सरदार पटेल , सुभाष बोस के सपनो वाले भारत की परिभाषा से कोसो दूर और बिल्कुल उसकी विपरीत है।
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आदर्श आचार संहिता ?? कहा है कोई बताएगा ?? हमे न तो दिखाई दे रही है ना सुनाई। प्रधानमंत्री इसके दौरान टीवी पर लाइव आते है। अपनी शेखी बघारते है, सब कुछ सरकारी खर्चे पर। लेकिन आचार संहिता का उल्लघंन ?? न बिल्कुल न ! बाबा , साहेब और उनकी पार्टी के खास लोगो पर आचार संहिता उल्लघन का दोष लगाकर लोगो को "लोया" थोड़े बनना है। चुनाव आचार संहिता इसीलिए "बिना दाँत का कानून" बना पड़ा है। अगर ये दांत है भी तो सिर्फ ये हाथी वाला दांत है । क्योंकि इसे लागू करने वालो की इच्छाशक्ति बेहद कमजोर है। और वो भी किसी न किसी विचारधार से प्रभावित है या दबाए गए है।
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