फकीर को जगाने आये थे

मेरे  ख्वाब  और  मेरी उम्मीद  से उठाने आये थे
थक के सो चुके एक फकीर को जगाने आये थे

मेरे हक़ूक़  का  वक़्त दूसरों  को  देकर  इलाही
वो अपने मशरूफियत की घड़ियां गिनाने आये थे

हमने सोचा की हमारी झोली में कुछ डालेंगे वो
किसे पता था वो मेरा कश्कोल जलाने आये थे

उनके  पास बताने   को  कुछ नही बचा इलाही
कल ख्वाब में  वो बस यही बात बताने आये थे

वो जो वादा करते थे  साथ जीने साथ  मरने के
मेरी रुखसती में वो दुनियादारी निभाने आये थे

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