फलक से उतारे गए

फरिश्तों की क्या मेयार,हो बेनूर फलक से उतारे गए
जहां जहां ये चांद गया, पीछे पीछे उसके सितारे गए

एक तरफ  उसका घर था, एक तरफ थी दुनियादारी
मेरे मालिक, हम जिस ओर गए,  उसी ओर मारे गए

मयस्सर नहीं हो पाया बादशाह के लिए शेर लिखना
तभी हुस्न के कसीदे किसी  ताजमहल पे उकारे गए

नाज़ था जिनको लहरों पर हुकूमत करने का बावरेँ 
उन  कश्तियों  की मंजिल से आज सारे किनारे गए

मै थक गया चंद अल्फाजों को पिरोते पिरोते इलाही
"मीर"खुदा ही जाने तुझसे कैसे इतने शेर संवारें गए

बज्म ए जन्नत में एक अदद मुफलिसी रही जाहिद
सूरत ए हाल हम शराब लिए दोजख में सिधारे गए

जब जब गालिब के पैराहन लहू से बदन पे चिपके है
एक एक  मतले में ना जाने कितने ज़ौक पुकारे गए

गिल्ली डंडा, वो लचियालचान, वो पिट्ठू वाले खेल
जाने गांव  से कहा अब  वो बचपन वाले नजारे गए

चश्मा ए भक्तई का  जरा आलम तो देखिए जनाब।
जिस दोजख  में साहब गए, उधर ही भक्त सारे गए

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