इश्क दी लाग
बावरें इश्क दी लाग तो बड़ी अंधी,अंधी इसकी लकीर
एह रोग लगे सब डूबने है, फिर क्या राजा क्या फकीर
डूब गया दरिया नैनन बिच, से नैना खोजें उसकी दीद
वो हरजाई सब कुछ लूट गया अब थमाऊ कोहे रसीद
किस मसी लिखे है किस्मत को,लगी किस बन की राई
के कागद ते नसीबा उकेरा,से मोरा मुरशिद नही बताए
ना अगियन की ताप लगे, ना लगे कोई पाथर रोड़ा
जो एह पाने राह चला,उसने जग की सब राह है छोड़ा
जो अखियन नू प्यास बुझाऊं, दिलवा रह जाए प्यासा
ज्यों जे झोली तो भर जावे पर खाली रह जाए कासा
मुसुकी है जे झूठी तेरी, झूठी है तेरे महफिल दी बातें
जे आंसू ले अंखिया में बावरें बता काटी कितनी रातें
अंखियां नू ये लाग लगाऊं, जियारा नू लगाऊं ये रोग
नैनन में वो सूरत बसाऊं, भुलाऊं जोगी दा सब जोग
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