"हिंदुस्तान किसी के बाप का थोड़ी है" जनाब राहत इंदौरी ने जो लिखा वो सिर्फ शायरी न होकर देश के न जाने कितने लोगों के अंतरात्मा की आवाज है, ये वो लोग है जिन्हें हर दिन अपना प्यार अपने वतन के लिए सिद्ध करना पड़ता है, एक गुंडा मव्वाली भी इसने ये सबूत मांगता है, ये वो लोग है जिन्हें हमेशा पाकिस्तान जाने की सलाह दी जाती है। ये वो लोग है जिन्होंने बंटवारे के समय आने धर्म के नाम पर बने देश मे जाने की जगह इसी मुल्क में रह कर इसी मुल्क की मिट्टी में दफन होना मंजूर किया। शायद उनको उस वक़्त आज के इस हालत का अंदाजा नही रहा होगा। वो तो गांधी और नेहरू के सपनो वाले भारत की कल्पना में यहाँ रुके, देश और मातृभूमि में रहना पसंद किया।
किसी ने क्या खूब कहा कि जो आदमी में दसवीं पास की मार्कशीट नहीं दिखा पा रहा है वह पूरे देश से 1970 का पेपर मांग रहा है। उन लोगों का क्या जिनका घर बाढ़ में बह गया ? उन लोगों का क्या जिनके घर भूकंप में ढह गए ? जिन लोगों के घरों में आग लग गई या जिन लोगों घर में चोरी हो गई ? वो लोग अपना 1970 पहले का पेपर कहां से लेकर आएंगे ?
यह तो ना सोचा गया, और ना ही दिखाया गया । दरअसल अंग्रेजों ने जो काम आजादी से पहले भारत में किया , की जब सारे देश का फोकस आजादी पर था , तो उन्होंने हिंदू मुसलमान दंगे करवा दिये। इसके लिए अंग्रेजों ने अपने दो अपने खास चेलो, पहले जिन्नाह और सावरकर को चुना। जो एक दूसरे के खिलाफ खड़े हुए नजर आते थे , लेकिन असल में वह दोनों काम अपने आका अंग्रेजों के लिए ही करते थे। आज फिर उसी तरह से आज देश में आर्थिक आजादी , सामाजिक आजादी की बात चल रही है , और लोगों को नौकरी रोजगार दिलाने की बात चलने लगी, तब सावरकर द्वारा बनाए गए दल के नेता जो कि सत्ता में हैं , उन्होंने फिर से यही सुर छोड़ने शुरू किए।
और तरह-तरह बातों से हिंदू मुसलमान कर के देश में सिर्फ अपनी सत्ता कायम करना चाहते हैं । शिक्षा से जुड़ा कोई भी बड़ा कदम नहीं उठाया, ना स्वास्थ्य से जुड़ा कोई बड़ा कदम उठाया , रोजगार, विकास , सामाजिक सुधार मानसिक सुधार , सुरक्षा, इन सब से जुड़ा हुआ एक भी कोई बड़ा कदम मोदी सरकार में नहीं उठाया गया। अगर बड़े कदम उठाए गए तो ट्रिपल तलाक, 370, एन आर सी , एनपीआर , सीएबी, फलाना ढीमकना और न जाने क्या-क्या । सिर्फ लोगों को भटकाने के लिए, और उनका ध्यान विकास के मुद्दे से हटाने के लिए , सुरक्षा के मुद्दे से हटाने के लिए , रोजगार के मुद्दे से हटाने के लिए , यह शिगूफे फिर छोड़े जाते हैं ।
इसका लेटेस्ट उदाहरण यह है कि, जब पूरा देश बलात्कार के खिलाफ खड़ा हो गया, और बलात्कारियों के लिए सख्त कानून बनाने की मांग करने लगा। तो वहां से जनता का ध्यान हटाने के लिए अमित शाह संसद में सीएबी लेकर आ गए। लाते भी क्यों ना। अगर जनता की मांग मांगने पर मजबूर हो जाएं, और मान ले तो कानून बनेगा कि बलात्कारियों को 1 महीने के अंदर सजा देनी है। और जैसे ही यह कानून बनेगा उस दिन 70% भाजपा साफ हो जाएगी । बड़े बड़े नेता , पदाधिकारी भारतीय जनता पार्टी के, फांसी पर लटके हुए नजर आएंगे । सेंगर से लेकर चिन्मयानंद इसके सटीक उदाहरण है।
पूरे देश को नाराजगी असंतोष और पशोपेश की स्थिति में डालने वाले इस बिल को मोदी जी ने एक हथियार की तरह इस्तेमाल करके पूरे देश में धार्मिक ध्रुवीकरण का एक बढ़िया आधार बना दिया है। प्रदर्शन को कंट्रोल करने के नाम पर पुलिस द्वारा जो मनमानी की जा रही है,। वह सभी लोगों को साफ साफ दिख रही है। सैकड़ों वीडियो और फोटो वायरल हुई जिसमें साफ-साफ देखा जा सकता है कि पुलिस वाले खुद ही गाड़ियों के शीशों को तोड़ रहे हैं , खुद ही पुलिस वाले घरों में पत्थर मार रहे हैं। और नाम लगाकर दूसरे लोगों को उठा ले रहे हैं। पुलिस की मनमानी सिर्फ पुलिस की मन से नहीं बल्कि यह उत्तर प्रदेश में बैठे हुए योगी महाराज और मोदी की मर्जी से हो रही है ।
कम से कम यूपी में ही 100 से ज्यादा वीडियो देखने को मिली, जहां पर खुद पुलिस वाले लोगों की खिड़कियों के कांच तोड़ रहे हैं, गाड़ियों के कांच तोड़ रहे हैं। जामिया में पुलिस सरेआम कॉलेज के अंदर घुसकर लाइब्रेरी में बच्चों को मारती है । और पूरे लाइब्रेरी को तहस-नहस कर देती है ।और बाद में वही पुलिस अपनी रिपोर्ट में यह मानती है कि जामिया के विद्यार्थियों का प्रदर्शन में कोई भी योगदान नहीं था। और अगर योगदान नहीं था तो फिर जामिया के बच्चों को मारा क्यों ? योगी आदित्यनाथ कहते हैं कि प्रदर्शन में हुए नुकसान की भरपाई पकड़े हुए लोगों से की जाएगी , तो क्या योगी आदित्यनाथ ने अभी तक जितने भी प्रदर्शन में नुकसान करवाया है , जितनी भी आगजनी और तोड़फोड़ करवाए हैं, यहाँ तक की उनके साथ ऊपर धारा 302 , 307 और 506 तक के मुकदमे लगे हुए है, उन सब की भरपाई वह अपने पैसे से करेंगे ?
क्या योगी आदित्यनाथ या मोदी जी दिल्ली पुलिस द्वारा जामिया में घुसकर तोड़फोड़ करने की भरपाई जामिया प्रशासन को करेंगे ? क्या पुलिस वालों की सैलरी काट कर के जामिया के नुकसान की भरपाई हो जाएगी ?
दरअसल यह संशोधन बिल सिर्फ एक दिखावा है। क्योंकि इसके पहले भी बहुत सारे विदेशियों ने भारत की नागरिकता ली । और बिल्कुल आराम से लिया। अदनान सामी भी उनमें से एक ही है। जो पाकिस्तान के नागरिक थे , और उन्होंने भारतीय नागरिकता ली। फिर भी हमको यह जानना जरूरी है कि यह नागरिकता बिल किस तरह से संविधान के आर्टिकल 14 को चुनौती देती है। जिसमें किसी के साथ भी धर्म जाति संप्रदाय लिंग के आधार पर भेदभाव ना करने की गारंटी दी गई है। अभी तक हम पूरी दुनिया में धर्मनिरपेक्ष होने का डंका बजाते हुए पाकिस्तान जैसे देश को आईना दिखाते थे । और उन्हें यह आईना उनके कट्टर होने की वजह से दिखाते थे । और हम यह कहते थे कि हम धर्मनिरपेक्ष हैं ।हम सभी लोगों का सभी धर्मों का सम्मान करते हैं।
लेकिन जब यह सीएबी सामने आएगा और लागू होगा तब ना तो हम खुद को धर्मनिरपेक्ष कहने लायक बचेगे, और ना ही खुद को लिबरल कहने लायक रहेंगे। वैश्विक स्तर पर हम अपनी पहचान खो देंगे । और एक कट्टर देश के तौर पर जाने जाएंगे। पूरी दुनिया की इतिहास देख लिया जाए तो धार्मिक आधार पर बने सारे देशों में केवल एक या 2% देश ही विकासशील या विकसित हैं । बाकी सारे देशों की हालत बांग्लादेश , पाकिस्तान और सोमालिया जैसी है। आज हमारी सरकार ने पाकिस्तान से खुद को कंपेयर करते-करते पाकिस्तान की श्रेणी में ही देश को लाकर खड़ा कर दिया है । हमारा जीडीपी या हमारा उत्पादन रेट इन देशों से कम हो चुका है। लेकिन इससे इस देश की मूर्ख जनता को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। उन्हें सिर्फ चाय की चुस्कियों के साथ हिंदू मुसलमान के चर्चे चाहिए ।
और ये काम नागरिकता संशोधन विधायक बहुत अच्छे से कर रहा है। हमें एक बार जानना ही चाहिए की आखिरी अभी तहत किस तरह से देश के असली आत्मा को मार रहा है।
नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019” विधेयक नागरिकता कानून 1955 में संशोधन के लिए लाया गया है। क्योंकि नागरिकता अधिनियम, 1955 अवैध प्रवासियों के भारत की नागरिकता हासिल करने पर प्रतिबंध लगाता है।नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 के कानून बन जाने के बाद अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आने वाले अल्पसंख्यक शरणार्थी भारत की नागरिकता प्राप्त कर सकेंगे।इस नागरिकता (संशोधन) विधेयक के तहत केवल 6 धर्मो हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के शरणार्थियों को ही भारत की नागरिकता प्रदान की जाएगी।
मुस्लिम धर्म के शरणार्थियों को भारत की नागरिकता प्रदान नहीं की जाएगी। क्योंकि भारत सरकार का तर्क है कि अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान एक मुस्लिम बाहुल्य देश हैं और वहां रहने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के अल्पसंख्यक लोगों को प्रताड़ित किया जाता है। अतः केवल इन्हीं धर्म के लोगों को भारत की नागरिकता प्रदान की जाएगी।
31 दिसंबर 2014 तक बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से धार्मिक अत्याचार के कारण वहां से भागकर आये अल्पसंख्यक समुदाय के भारत में प्रवेश करने वाले लोगों को भारत की नागरिकता प्रदान की जाएगी।
नागरिकता संशोधन बिल में बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आये अल्पसंख्यक शरणार्थियों के लिए भारत में निवास अवधि की बाध्यता को 11 वर्ष से घटाकर 6 वर्ष करने का प्रावधान है। अर्थात बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आये अल्पसंख्यक शरणार्थी को भारत में रहते हुए अगर 6 वर्ष हो चुकें हों तो वह भारत की नागरिकता के लिए आवेदन कर सकता है, जिसकी समयावधि पहले 11 वर्ष (नागरिकता अधिनियम, 1955 के अनुसार) थी।
जिन भी शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता दी जायेगी वे भारत में कहीं भी (किसी भी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश) रहने और काम करने के लिए स्वतंत्र होंगे।
सही जांच प्रक्रिया और राज्य सरकारों एवं जिले के अधिकारियों की सिफारिश के बाद ही इन अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता दी जाएगी।इस विधयेक से एनआरसी (NRC) में जगह न पाने वाले गैर-मुस्लिमों (हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म) को राहत मिल सकेगी और उन्हें भारत का ही नागरिक माना जाएगा।
नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 में धर्म आधारित भेदभाव किया जा रहा है जोकि संविधान के आर्टिकल 14 का उल्लंघन है।आर्टिकल 14 सबको समानता का अधिकार देता है। इस संशोधन को 1985 के असम करार का उल्लंघन भी बताया जा रहा है, असम करार के अनुसार वर्ष 1971 के बाद बांग्लादेश से आए सभी धर्मों के नागरिकों को निर्वासित (deport) करने की बात है।
पूर्वोत्तर के लोगों का मत है कि इस विधेयक के कारण वहां के मूल लोगों के सामने पहचान और आजीविका का संकट पैदा हो जाएगा।
सबके विरोध की अलग-अलग वजहे हैं। उत्तर पूर्व के लोग यह विरोध संविधान और अपनी संस्कृति बचाने के लिए कर रहे हैं, तो उत्तर भारत के लोग संविधान के धर्मनिरपेक्ष और मूल ढांचे को बचाने के लिए सड़कों पर उतरे हुए हैं।
लेकिन यह लड़ाई संविधान बचाने की तो है ही साथ ही यह मुसलमानों के अस्तित्व की भी लड़ाई है। इससे सिर्फ उत्तर पूर्व के नागरिकों का अस्तित्व ही नहीं, देश के मुसलमानों का अस्तित्व भी संकट में आ सकता है।
1930 के दशक में जब दुनियाभर में यहूदियों के साथ अत्याचार हो रहा था, तो ब्रिटिश हुकूमत ने अत्याचार का सामना कर रहे यहूदियों को अरब देश के फिलिस्तीन के पास बसाया और उस समय यहूदियों को रहने के लिए एक छोटी सी जगह दी गई।लेकिन जब अरब देशों और इज़राइल के बीच मतभेद हुआ तो फिलिस्तीन और वहां रह रहे लोगों की हालत खराब हुई। बेशक संयुक्त राष्ट्र ने फिलिस्तीन को नॉन ऑबज़र्वर देश मान लिया है लेकिन कई राष्ट्रों ने अभी भी इसे संप्रभु राष्ट्र के रूप में मान्यता नहीं दी है।
यहां तक कि इज़राइल में भी अरब मूल के लोगों के साथ दोयम दर्ज का व्यवहार होता है। फिलिस्तीन के लोगों की हालत तो किसी से छुपी नहीं है। एक ऐसा देश जिसके पास सबकुछ था, अब उन्हें ही उजाड़ दिया गया। वहां के अरब आज एक स्टेटलेस सिटिज़न या राज्यविहीन नागरिक की तरह रह रहे हैं। ऐसा ही करने की साज़िश यह भाजपा कर रही है।
लोकसभा में इस बिल को पेश करते हुए गृहमंत्री ने कहा कि वह पूरे भारत में एनआरसी लागू करेंगे। इससे ना जाने सभी धर्मों के कितने लोग एनआरसी से इसलिए बाहर नहीं रह जाएंगे कि वे विदेशी हैं, बल्कि इसलिए बाहर रह जाएंगे क्योंकि वे अपने सभी डॉक्यूमेंट पेश नहीं कर पाएं, जिनसे वे अपने आपको भारतीय साबित करें। इसमें सबसे ज़्यादा देश के मुसलमान राज्यविहीन हो जाएंगे।
एनआरसी के बाद राज्यविहीन मुसलमानों को शायद डिटेंशन कैम्प भेजा जाए, जैसे कि असम में भेजे गए। क्योंकि उनको बांग्लादेश तो भेजा नहीं जाएगा, जैसा हमारे प्रधानमंत्री और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री कहती हैं।अपने देश के अल्पसंख्यकों के अधिकारों की चिंता नहीं है, बल्कि दूसरे देशों के अल्पसंख्यकों के अधिकारों की चिंता है। इसी देश में दिन दहाड़े अल्पसंख्यकों को जय श्री राम ना बोलने पर या उनके खाने की वजह से उनकी मॉब लिंचिंग हो जाती है और भाजपा को दूसरे देशों के अल्पसंख्यकों की चिन्ता है।
अगर भाजपा को पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों की चिन्ता है तो बताए कि प्रधानमंत्री और विदेश मंत्रालय ने इसके लिए कितनी बार पड़ोसी देशों पर दबाव बनाया है? सिर्फ तीन पड़ोसी देश ही क्यों चुने गए जिनका राजधर्म इस्लाम है। यही भाजपा के लोग म्यांमार से धार्मिक कारणों से प्रताड़ित होकर आए रोहिंग्या मुसलमानों को घुसपैठिया कहते थे। ऐसी हिपोक्रेसी यह भाजपा के लोग जाने कैसे कर लेते हैं।रही बात पाकिस्तान की तो वहां तो अहमदिया मुसलमानों पर भी ज़ुल्म होता है, तो उनको भी शामिल करना चाहिए इस कानून में।
राज्यसभा में जैसा कि गुलाम नबी आज़ाद ने कहा कि अफगानिस्तान में तो सबसे ज़्यादा ज़ुल्म मुसलमान औरतों पर होता है तो उनको भी शामिल कीजिए इस कानून में। बांग्लादेश और पाकिस्तान के दो लेखकों ने भी धार्मिक प्रताड़ना की वजह से ही भारत में शरण ली दोनों ही मुसलमान थे। पाकिस्तान से तारिक फतेह और बांग्लादेश से तस्लीमा नसरीन।
भाजपा को अगर पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों की चिंता होती तब तो उनको भी शामिल करते ना। भाजपा का इस बिल में मुसलमानों को शामिल ना करना यह साबित करता है कि वह यह मानते हैं कि हिन्दुस्तान सिर्फ हिन्दुओं के लिए है। अनुच्छेद 370 हटाने के बाद हिंदू राष्ट्र की ओर यह दूसरा कदम साबित होगा।
इसी के साथ जिक्र हो रहा है एनआरसी का, यानी नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस। इससे पता चलता है कि कौन भारतीय नागरिक है और कौन नहीं। जिस व्यक्ति का सिटिजनशिप रजिस्टर में नाम नहीं होता उसे अवैध नागरिक माना जाता है। देश में असम इकलौता राज्य है जहां सिटिजनशिप रजिस्टर की व्यवस्था लागू है।और उसमें भी ऐसे लोगो को भारत का नागरिक मानने से मना कर दिया जाता है जो सेना में 20 साल सेवा देकर , राष्ट्रपति से वीरता का पुरस्कार लेकर आता है , उस फौजी को सिर्फ मुसलमान नाम की वजह से डिटेंशन सेंटर में डाल दिया गया।
NRC को लागू करने का मुख्य उद्देश्य राज्य में अवैध रूप से रह रहे अप्रवासियों खासकर बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान करना है। इसकी पूरी प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में चल रही थी। इस प्रक्रिया के लिए 1986 में सिटीजनशिप एक्ट में संशोधन कर असम के लिए विशेष प्रावधान किया गया। इसके तहत रजिस्टर में उन लोगों के नाम शामिल किए गए हैं, जो 25 मार्च 1971 के पहले असम के नागरिक हैं या उनके पूर्वज राज्य में रहते आए हैं। आपको बता दें कि वर्ष 1947 में भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद कुछ लोग असम से पूर्वी पाकिस्तान चले गए, लेकिन उनकी जमीन असम में थी और लोगों का दोनों ओर से आना-जाना बंटवारे के बाद भी जारी रहा।
इसके बाद 1951 में पहली बार एनआरसी के डाटा का अपटेड किया गया। इसके बाद भी भारत में घुसपैठ लगातार जारी रही।असम में वर्ष 1971 में बांग्लादेश बनने के बाद भारी संख्या में शरणार्थियों का पहुंचना जारी रहा और इससे राज्य की आबादी का स्वरूप बदलने लगा।
नागरिकता कानून के प्रावधान में मुस्लिम समुदाय को बाहर रखा गया है। कांग्रेस से सहित पूरा विपक्ष जहां इसे संविधान के मुताबिक धर्मनिरपेक्ष कदम नहीं मान रहा है।वहीं संसद में गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि कानून में हिंदुओं के अलावा ईसाई, पारसी, सिख, जैन और बौद्ध शामिल किए हैं , लेकिन सिर्फ मुसलमानों को ही न शामिल करने पर सभी इसे धर्मनिरपेक्ष नहीं मान रही है। दरअसल बीजेपी के लिए इन कानूनों पर जितना ही विवाद होगा उसके लिए फायदा हो सकता है। क्योंकि जहा जीतना कीचड़ होगा उतना अच्छा कमल खिलेगा, तो क्यो न पूरे देश को ही कीचड़ बना दिया जाए।
इन पर विवाद सीधे-सीधे ध्रुवीकरण को बढ़ावा दे रहे हैं और 'ध्रुवीकरण' की राजनीति मेें बीजेपी को हमेशा से ही फायदा होता रहा है। और इसी के सहारे ये 2 से 303 पर पहुँचे है। यही वजह है बीजेपी की इस रणनीति की काट के लिए कांग्रेस ने गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और राजस्थान के विधानसभा चुनाव के दौरान 'सॉफ्ट हिंदुत्व' का सहारा लिया था। अब उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में हैं विधानसभा चुनाव। अगले 2 सालों में उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, दिल्ली में विधानसभा चुनाव होने हैं। और ऐसा लग रहा है कि बीजेपी कोशिश कर रही है कि उत्तर प्रदेश और बंगाल में विधानसभा चुनाव आने तक ईटा ज्यादा हिन्दू मुसलमान की नफरत बढ़ा दिया जाए कि लोग पेट की भूख छोड़ कर सिर्फ हिन्दू मुसलमान करने लगें ।
साथ कि ध्रुविकरण के सिलसिले में इन कानूनों के जरिए बीजेपी चाहती है कि बहुसंख्यक समुदाय तक इस बात को अच्छे से पहुंचा दिया जाए कि इन कानूनों से देश का भला होगा । और कांग्रेस विपक्ष सिर्फ तुष्टीकरण की राजनीति कर रही है। बीजेपी इसी रणनीति के तहत अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की बात भी बड़े जोर-शोर से कर रही है। बीजेपी की इस रणनीति को बंगाल की सीएम ममता बनर्जी पूरी तरह से भांप चुकी हैं और वह इन दोनों कानूनों का विरोध कर रही हैं। लेकिन लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने हिंदुत्व की राजनीति को खूब बढ़ावा दिया और पार्टी को इसका फायदा भी हुआ।
हमारे देश में देश के लोगों की अजीब विडंबना रही है कि हमेशा ही अपनी समस्या छोड़कर दूसरों के सुख को खत्म करने के चक्कर में लगे रहते हैं। भले ही 400 का सिलेंडर 1000 में मिलने लगे, भले ही ₹30 वाली प्याज ढाई सौ की मिलने लगे। लेकिन हमारे यहां लोगों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है, उनको फर्क पड़ता है तो सिर्फ इस बात से कि मेरा मंदिर रहना चाहिए और उसकी मस्जिद टूटना चाहिए । या मेरा मस्जिद रहना चाहिए और उसका मंदिर टूटना चाहिए।
ये सब एक क्षादिक बहकावा है, जिसे लोगों को समझना पड़ेगा वरना, आने वाले समाज की पीढ़ियां और उनकी नस्लें खराब हो जाएंगे, बर्बाद हो जाएंगे। लेकिन इस सब मे सुखद ये है कि आज भी लोगो मे गांधी और समाजवाद का एहसास जिंदा है। हमारे देश में समाजवाद और गांधीवाद की आत्मा अभी तक जिंदा है , हमें उसको लोगों में फिर से उसका एहसास दिलाते हुए उनको चलाना होगा , और पूरे देश को एक साथ आगे बढ़ कर ऐसे तानाशाह और ध्रुवीकरण करने वाले नेताओं और दलों को सत्ता से उखाड़ कर फेंक देना चाहिए।
वैसे भी भारत एक साथ खड़ा है। यह सरकार पूरी तरह से बेनकाब हो चुकी है और इसकी कोई विश्वसनीयता नहीं बची है। यह एक ऐसा दिन है जब प्रेम और एकजुटता मिलकर कट्टरता और उग्रवाद का सामना करेंगे। हर कोई असंवैधानिक नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के खिलाफ विरोध में साथ आ रहा है। हम दलित, मुस्लिम, हिदू, ईसाई, सिख, आदिवासी, मार्क्सवादी, आम्बेडकरवादी, किसान, मजदूर, शिक्षक, लेखक, कवि, पेंटर्स और सबसे अधिक छात्र हैं जो कि देश का भविष्य हैं। इस बार ये सावरकर और अंग्रेजो के चेले हमें नहीं रोक पाएंगे। इस देश से गद्दार सरकार को सत्ता से बेदखल करके यहाँ पर देशभक्तो को लाना ही होगा ।
और अंत मे जाते जाते इन फ़र्ज़ी सस्ते देशभक्तो को आइना दिखाने के लिए राहत इंदौरी का पूरा शेर जरूर पढ़ना चाहता हूँ -
अगर खिलाफ है होने दो जान थोड़ी है
ये सब धुआ है कोई आसमान थोड़ी है..
लगेगी आग तो आएगे घर कई ज़द मे
यहा पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है..
हमारे मुँह से जो निकले वही सदाक़त है
हमारे मुँह मे तुम्हारी ज़ुबान थोड़ी है..
मै जानता हू के दुश्मन भी कम नही लेकिन
हमारी तरह हथेली पे जान थोड़ी है..
जो आज साहिब-ए-मसनंद है कल नही होगे
किरायेदार है जाती मकान थोड़े है..
सभी का खून है शामिल यहा की मिट्टी मे
किसी के बाप का हिन्दुस्तान थोड़ी है..
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