पत्रकार कहू इनको या कहू मैं भाट, ये तो सत्ता के दलाल है।

सत्ता की करके जी हुजूरी , ये सारे बने मालामाल है।
बरकत इनकी हुई है जो, वो साहेब के कृपा का कमाल है।
पत्रकारिता को टके के भाव बेच , नंगे खड़े ये सरेआम है
पत्रकार कहू इनको या कहू मैं भाट, ये तो सत्ता के दलाल है।

बेचते है दिन रात ये जो ये वो धर्म की दुकान का ही समान है,
साहेब के हुक्म का एक एक शब्द , इनके हाव भाव मे विद्यमान है,
विपक्ष को तार तार कर ,सिर्फ सत्ता का गान करे, ऐसा इनका प्रतिदान है।
सच को छुपाये धर्म की आड़ में ,धर्मान्ध की धनुष का ये वो कमान है।
शीर्ष चाटुकारिता में पड़े , हर वक़्त ये उनके लिए बनते ढाल है।
पत्रकार कहू इनको या कहू मैं भाट, ये तो सत्ता के दलाल है।

कभी मंदिर का विषय उठाये ,
तो कभी रोजगार पर बरगलाए, इनका न कोई ईमान है।

हर सच को राष्ट्रावाद , हिंदुत्व में छुपाये,
झूठ को प्रसाद की तरह फैलाये, ये नंगे हुए बेईमान है।

बिना रीढ़ के झुके हुए सत्ता की गोद मे, गोदी मीडिया नाम ही प्रमाण है।

साहेब के तलवे चाट , ये चाटुकार पत्रकारिता का स्वर्णिम काल है
पत्रकार कहू इनको या कहू मैं भाट, ये तो सत्ता के दलाल है।

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